समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंगलवार को

By: Shilpa Mon, 16 Oct 2023 10:13:49

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंगलवार को

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की अपील वाली याचिकाओं पर मंगलवार को अपना फैसला सुनाएगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक सुनवाई की थी। इसके बाद बेंच ने 11 मई को इन याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मालूम हो कि इस पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पी एस नरसिम्हा शामिल हैं। सूत्रों ने कहा कि फैसला मंगलवार को सुनाया जाएगा। साथ ही सारी जानकारियां एससी की वेबसाइट पर अपडेट की जाएंगी।

सुनवाई के दौरान केंद्र ने SC से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की अपील वाली याचिकाओं पर उसकी कोई भी संवैधानिक घोषणा कार्रवाई का सही तरीका नहीं हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि अदालत इसके नतीजों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी। केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर 7 राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं। राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है।

शादी की विकसित होती धारणा फिर से होगी परिभाषित?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई 18 अप्रैल को शुरू की थी। शीर्ष अदालत ने 20 अप्रैल को सुनवाई में कहा था कि सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद वह शादी की विकसित होती धारणा को फिर से परिभाषित कर सकता है। पीठ इस दलील से सहमत नहीं थी कि विषम लैंगिकों के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर सकते। वहीं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की अपील वाली याचिकाएं शहरी संभ्रांतवादी विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं। साथ ही विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए।

सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं

गौरतलब है कि मॉरीशस की सर्वोच्च अदालत ने बीते अक्टूबर में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। इस दौरान कोर्ट ने भारत के SC की पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा का हवाला दिया था। मल्होत्रा ने इस पर उम्मीद जताई कि अब दुनिया के कई न्यायालय भारत की शीर्ष अदालत के उस निर्णय का अनुकरण करेंगे, जिसमें कहा गया कि परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिंक संबंध अपराध नहीं हैं। मॉरीशस कोर्ट ने जस्टिस मल्होत्रा और इस समय एससी के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के 2018 में लिखे फैसलों का हवाला दिया था। SC की 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6 सितंबर, 2018 को कहा था कि निजी स्थान पर परस्पर सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन संबंध अपराध नहीं हैं। इससे जुड़ा ब्रिटिश काल का कानून समानता के अधिकार का उल्लंघन करता था।

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