एक और बीमारी साथ लेकर आ रहा कोरोना वायरस, बच्चों को बना रही अपना शिकार; पटना के अस्पतालों में अब तक 7 मामले
By: Pinki Mon, 31 May 2021 1:47:50
कोरोना वायरस और ब्लैक फंगस के बाद अब एक नई बीमारी देश में अपने कदम बढ़ा रही है। इस बीमारी का नाम है मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन (Multi-System Inflammatory Syndrome)। यह बीमारी बच्चों को अपना शिकार बना रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना वायरस से उबर रहे बच्चों में MIS-C के मामलों में बढ़त देखी जा रही है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, MIS-C का शिकार होने के बाद मरीज को बुखार आता है। साथ ही इस दौरान ह्रदय, फेफड़ों और मस्तिष्क में सूजन आ जाती है। बुखार, सांस लेने में परेशानी, पेट दर्द, त्वचा और नाखुनों का नीला पड़ना इस बीमारी के लक्षण हैं। यह बीमारी 6 महीने से 15 साल की उम्र के बच्चों को अपना शिकार बना रही है। अब तक सबसे ज्यादा मरीज 5 और 15 साल की उम्र के बीच मिले हैं। MIS-C संक्रमण कोरोना से ठीक होने के दो से छह सप्ताह बाद तक उभरता है। इस संक्रमण से 12 वर्ष से नीचे वालों को खतरा ज्यादा है।
बिहार में MIS-C से पीड़ित सात बच्चों का इलाज अस्पतालों में चल रहा है। पीएमसीएच में शिशु रोग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ निगम प्रकाश नारायण ने बताया, पटना व खगडिय़ा जिले के एक-एक बच्चे आए थे, जिनमें MIS-C की पुष्टि हुई है। उनकी हालत में सुधार है। वहीं, पांच बच्चे महावीर वात्सल्य में इलाज करा रहे हैं। इस रोग में लगातार तीन या अधिक दिन से बुखार हो, त्वचा में चकत्ते, कंजेक्टवाइटिस, हाथ-पांव ठंडा होना यानी शॉक सिंड्रोम, कॉर्डियक इन्वाल्वमेंट मार्कर पॉजिटिव हो या बीपी लो, उल्टी-दस्त, पेटदर्द व गंभीर निमोनिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
इसके अलावा आंखों-जीभ में लाली, हाथ-पैर में सूजन या छिल जाना, थकान, सांस में तकलीफ, दिल की धड़कन तेज होना, होंठ या नाखून का नीला पडऩा में से कोई भी दो एक साथ हों तो यह एमआइएस-सी हो सकता है। सीआरपी और डि-डाइमर जैसी जांचों से इसकी जानकारी आसानी से हो सकती है। ऐसे रोगियों की कोरोना जांच रिपोर्ट निगेटिव रहती है।
एक फीसद बच्चों को जान का खतरा
कोरोना मुक्त या संक्रमितों के संपर्क में आए बच्चों में से एक फीसद को ही यह रोग होने की आशंका होती है। इनमें से 99 फीसद बच्चे अस्पताल में कुछ स्टेरॉयड व अन्य सामान्य दवाओं से ठीक हो जाते हैं। एक फीसद को ही जान का खतरा होता है। इस बीमारी का कारण शरीर में अधिक मात्रा में एंटीबॉडी बनना है। अधिक एंटीबॉडी से लिवर, किडनी, हृदय समेत कई अंग प्रभावित हो जाते हैं। सही समय पर इलाज नहीं मिलने पर हृदय की धमनियां कमजोर हो जाती हैं और पर्याप्त रक्त नहीं मिलने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
इंडियन एकेडमी ऑफ पाडियाट्रिक्स इंटेंसिव केयर चैप्टर के निर्वाचित चेयरपर्सन डॉक्टर धीरेन गुप्ता कहते हैं, 'बच्चों में कोविड-19 का गंभीर संक्रमण दो बदलाव लाता है। बच्चे को निमोनिया हो सकता है या MIS-C की स्थिति बन सकती है।'
उन्होंने बताया, 'जल्द पहचान ही परेशानी को समय पर पकड़ने में मदद कर सकती है।' डॉक्टर गुप्ता सर गंगाराम अस्पताल में पीडियाट्रिशियन हैं।
भोपाल के कैंसर अस्पताल में कोविड से जुड़ी सेवाएं दे रहीं डॉक्टर पूनम चंदानी कहती हैं- शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जैसे- हार्ट, किडनी, लंग्स, आंखें, स्किन, ब्रेन में जो भी इंफेक्शन मिल रहा है, उन्हें मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम कहा जाता है। इस बारे में अभी डॉक्टरों के पास ज्यादा जानकारी नहीं है, इसलिए इसे एक बीमारी घोषित नहीं कर सिंड्रोम कहा जा रहा है।
इंडियन एकेडमी ऑफ पाडियाट्रिक्स इंटेंसिव केयर चैप्टर का डेटा बताता है कि कोविड-19 की पहली लहर में MIS-C के दो हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर जल्द पता लग जाए, तो इसका इलाज हो सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में SAIMS की पीडियाट्रिक्स विभाग प्रमुख डॉक्टर गुंजन केला ने कहा कि यह सिंड्रोम फेंफड़ों, नर्वस सिस्टम और ह्रदय समेत अलग-अलग अंगों को प्रभावित कर सकता है।
उन्होंने जानकारी दी, 'लेकिन अगर इसका जल्दी पता लगा लिया जाए, तो इलाज हो सकता है और इसके प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।' पैरेंट्स को खुद के स्वस्थ होने के 1 महीने के दौरान सतर्क रहने की सलाह दी जा रही है।
ये कैसे होता है?
मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम कैसे होता है, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। अभी तक जितने भी मामले आए हैं, उनमें देखा गया है कि या तो बच्चे खुद कोरोना से संक्रमित हुए थे या किसी कोरोना संक्रमित के संपर्क में आए थे।
ऐसे करें बचाव :
- बचाव के उपायों का सख्ती से पालन कर अभिभावक खुद को कोरोना संक्रमण से बचाएं, क्योंकि बच्चे उन्हीं से संक्रमित हो सकते हैं
- यदि घर का कोई सदस्य संक्रमित हो तो बच्चों को वहां से दूर रखें
- बच्चों को भीड़भाड़ वाली जगहों पर नहीं ले जाएं और अपनी बारी आने पर टीकाकरण जरूर कराएं
- कोरोना मुक्त होने के बाद भी बच्चों की निगरानी करें, बीमार पड़ते ही डॉक्टर से संपर्क करे
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