डुप्लीकेट सॉफ्टवेयर से बिना फास्ट टैग वाली गाड़ियों से वसूली, 13 राज्यों के 200 टोल प्लाजा निशाने पर, 120 करोड़ की ठगी

By: Rajesh Bhagtani Fri, 24 Jan 2025 12:26:16

डुप्लीकेट सॉफ्टवेयर से बिना फास्ट टैग वाली गाड़ियों से वसूली, 13 राज्यों के 200 टोल प्लाजा निशाने पर, 120 करोड़ की ठगी

जयपुर। मप्र-राजस्थान और गुजरात समेत 13 राज्यों के 200 टोल प्लाजा के कंप्यूटर में एनएचएआई के सॉफ्टवेयर जैसा दूसरा सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करके बिना फास्ट टैग गाड़ियों से करोड़ों की टोल टैक्स चोरी पकड़ी गई है। यूपी एसटीएफ ने सॉफ्टवेयर बनाने वाले इंजीनियर सहित टोल प्लाजा के दो कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है।

यूपी एसटीएफ ने मंगलवार को मिर्जापुर के अतरैला टोल प्लाजा पर छापा मारकर 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया था। ये लोग टोल प्लाजा पर लगे NHAI के कंप्यूटर में अपना सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करके बिना फास्टैग के टोल से निकलने वाले वाहनों से होने वाले कलेक्शन में गबन कर रहे थे। हर दिन एक टोल प्लाजा से 45 हजार का घोटाला होता था। लखनऊ स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने देशभर के 42 टोल प्लाजा पर सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर 120 करोड़ रुपए के घोटाले का पर्दाफाश किया है। एसटीएफ ने सरगना आलोक कुमार सिंह सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

मास्टरमाइंड आलोक सिंह से पूछताछ में पता चला यह घोटाला दो साल से चल रहा है। एनएचएआई को 120 करोड़ की चपत लगाई गई है। रीजनल ऑफिस ने सभी अफसरों को एडवायजरी जारी की है। इस घोटाले में टोल टैक्स ठेकेदार की भी मिलीभगत की जानकारी मिली है। एसटीएफ ने घोटाले के मास्टरमाइंड के साथ तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।

आलोक के खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के लालगंज स्थित अतरैला टोल प्लाजा पर छापा मारकर दो कर्मचारियों मनीष मिश्रा (निवासी कंजवार, मध्यप्रदेश) और राजीव कुमार (निवासी प्रयागराज) को गिरफ्तार किया गया। इस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम और गुजरात सहित कई राज्यों के टोल प्लाजाओं पर किया जा रहा था। फिलहाल एसटीएफ मामले की जांच कर रही है। टोल प्रबंधन और अधिकारियों पर भी कार्रवाई हो सकती है।

नियमानुसार फास्टैग रहित वाहनों से वसूले जाने वाले टोल टैक्स की 50 प्रतिशत राशि एनएचआई के खाते में टोल प्लाजा से जमा करनी होती है, लेकिन आरोपी आलोक के इंस्टॉल किए गए सॉफ्टवेयर के माध्यम से टोल प्लाज मालिक या प्रबन्धक के बिना फास्टैग वाले वाहनों से वसूली गई पूरी राशि का गबन कर लिया जाता है। गबन के बाद टोल प्लाजा मालिक, प्रबन्धक, आईटी और अन्य कर्मियों की ओर से यह राशि को आपस में बांट लेते थे। आरोपी आलोक ने खुद 42 टोल प्लाजा पर सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया था। आलोक से हुई पूछताछ में सामने आया है कि उसके सॉफ्टवेयर से प्रतिदिन एक टोल प्लाजा पर 45 हजार रुपए का गबन होता है। इस प्रकार दो साल में इस गैंग ने अनुमानित 64।80 अरब रुपए का गबन किया है।

मिलीभगत कर बनाया सॉफ्टवेयर


गबन के लिए आलोक ने टोल प्लाजा प्रबन्धकों से मिलीभगत कर एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया, जो टोल बूथ पर काम करने वाले आईटी कर्मियों के जरिए एनएचएआई के सॉफ्टवेयर में इंस्टॉल कर देता, जिसका सीधा ऑनलाइन एक्सेस आलोक के निजी लैपटॉप से रहता था।
टोल प्लाजा से गुजरने वाले फास्टैग रहित वाहनों से लिए जाने वाला दोगुना टोल शुल्क आलोक के बनाए गए सॉफ्टवेयर के माध्यम से वसूला जाता था। उसकी प्रिन्ट पर्ची एनएचएआई के सॉफ्टवेयर के समान ही रहती है। प्रत्येक टोल बूथ ट्रांजेक्शन का विवरण आलोक सिंह के लैपटॉप में प्रदर्शित किया गया था। आलोक सिंह ने बताया कि टोल प्लाजा पर बिना फास्टैग गुजरने वाले वाहनों से शुल्क और पेनाल्टी वसूला जाता है। ठगी के लिए टोल की किसी लेन के सिस्टम में सॉफ्टवेयर को इंस्टाल कर दिया जाता है, जो भी गाड़ी बिना फास्टैग गुजरती है, उसको पास कराकर फर्जी रसीद काटकर दोगुना पैसा वसूल लेते हैं।

प्रदेश के फुलेरा टोल प्लाजा जयपुर, कादीशहना टोल प्लाजा, शाहपुर टोल प्लाजा और शाउली टोल प्लाजा पर गबन हुआ। इनके अलावा यूपी, एमपी, छत्तीत्तगढ़, असम, जम्मू, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा , हिमाचल और तेलंगाना राज्यों के टोल बूथों भी गबन किया गया है।

यूपी एसटीएफ ने बताया कि आलोक ने जिन 42 टोल प्लाजा पर नकली सॉफ्टवेयर इंस्टाल किए हैं, उनमें 9 यूपी, 6 मप्र, 4-4 राजस्थान-गुजरात-छत्तीसगढ़, 3 झारखंड, 2-2 पंजाब-असम-महाराष्ट्र-प। बंगाल और 1-1 ओडिशा-हिमाचल-जम्मू-तेलंगाना में है। इनमें ज्यादातर एकेसीसी कंपनी के हैं। राजस्थान में फुलेरा, शाहपुरा, कादीसहना और शाउली टोल प्लाजा पर फर्जी साफ्टवेयर लगाए थे।

एसटीएफ एसएसपी विशाल विक्रम सिंह ने बताया, यूपी के अतरैला शिव गुलाम टोल प्लाजा लालगंज, मिर्जापुर पर इंस्टॉल उक्त सॉफ्टवेयर से रोज औसतन 45,000 रु। टोल गबन हो रहा था।

आलोक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, जो एनएचएआई के सॉफ्टवेयर बनाने और इंस्टाल करने का काम करता है। आलोक ने एमसीए किया है और पहले टोल प्लाजा पर काम करता था। इसी दौरान टोल प्लाजा का ठेका लेने वाली कंपनियों के संपर्क में आया।

नकली सॉफ्टवेयर से निकाली गई टोल टैक्स की पर्ची एनएचएआई जैसी होती थी। बिना फास्ट टैग वाले वाहनों में 5% को ही एनएएचआई सॉफ्टवेयर पर बुक किया जाता। जिन वाहनों की दोगुने टैक्स की पर्ची निकालते, उसे टोल फ्री श्रेणी में रखते थे

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