पूर्वोत्तर में शांति की एक और पहल, अमित शाह का प्रयास, उल्फा से होगा शांति समझौता

By: Rajesh Bhagtani Thu, 28 Dec 2023 6:44:20

पूर्वोत्तर में शांति की एक और पहल, अमित शाह का प्रयास, उल्फा से होगा शांति समझौता

नई दिल्ली। भारत सरकार और उल्फा संगठन के बीच शुक्रवार को गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में शांति समझौते पर हस्ताक्षर होंगे। यह भारत सरकार के पूर्वोत्तर में शांति प्रयास की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। उल्फा पिछले कई सालों से उत्तर पूर्व में सशस्त्र सुरक्षा बलों के खिलाफ हिंसात्मक संघर्ष कर रहा था। इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद सशस्त्र संगठन उल्फा के हजारों कमांडर आत्मसमर्पण करेंगे और मुख्य धारा में शामिल होंगे।

यह समझौता 29 दिसंबर को शाम 5 बजे नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री और सहकारिता मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में होगा। इस मौके पर भारत सरकार, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के प्रतिनिधियों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। गृह मंत्री अमित शाह, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के एक दर्जन से अधिक शीर्ष नेता यहां शांति समझौते पर हस्ताक्षर के समय उपस्थित रहेंगे।

वार्ता समर्थक गुट का नेतृत्व अरबिंद राजखोवा करते हैं। पिछले 1 साल से भारत सरकार इस शांति समझौते पर कार्यरत थी और उल्फा के शीर्ष नेता जिसमें अनूप चेतिया भी शामिल हैं, से भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी वार्ता कर रहे थे। गृहमंत्री अमित शाह की पहल पर यह अहम समझौता हो रहा है।

इससे जुड़े सूत्रों ने कहा कि इस समझौते में लंबे समय से चले आ रहे असम से संबंधित राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा। इसके अलावा यह मूल निवासियों को सांस्कृतिक सुरक्षा और भूमि अधिकार प्रदान करेगा। परेश बरुआ के नेतृत्व वाले उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं होगा क्योंकि वह सरकार के प्रस्तावों को लगातार अस्वीकार कर रहा है।

सूत्रों ने कहा कि राजखोवा समूह के दो शीर्ष नेता अनूप चेतिया और शशधर चौधरी पिछले सप्ताह राष्ट्रीय राजधानी में थे। उन्होंने शांति समझौते को अंतिम रूप देने के लिए सरकारी वार्ताकारों के साथ बातचीत की। सरकार की ओर से जो लोग उल्फा गुट से बात कर रहे हैं, उनमें इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा शामिल हैं।

परेश बरुआ के नेतृत्व वाले गुट के कड़े विरोध के बावजूद राजखोवा के नेतृत्व वाले उल्फा गुट ने 2011 में केंद्र सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू की थी। राजखोवा के बारे में माना जाता है कि वह चीन-म्यांमार सीमा के पास एक जगह पर रहते हैं।उल्फा का गठन 1979 में संप्रभु असम की मांग के साथ किया गया था। तब से यह संगठन विघटनकारी गतिविधियों में शामिल रहा है। केंद्र सरकार ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था।

भारत सरकार के लिए क्यों महत्वपूर्ण है यह शांति समझौता

दरअसल यह समझौता भारत सरकार के लिए बहुत अधिक मायने रखता है और इसका उद्देश्य पूर्वोत्तर राज्य में दीर्घकालिक शांति बहाली का लक्ष्य है। समझौते के समय असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और उल्फा के वार्ता समर्थक गुट के एक दर्जन से अधिक शीर्ष नेता मौजूद रहेंगे। सूत्रों ने बताया कि इस समझौते में लंबे समय से चले आ रहे सभी मुद्दों का ध्यान रखा जाएगा। देश के पूर्वोत्तर राज्यों सक्रिय उग्रवादी संगठन उल्फा का गठन 1979 में हुआ था और इसकी सबसे प्रमुख मांग संप्रभु असम की थी। यह लगातार हिंसक और तोड़फोड़ की गतिविधियों में शामिल रहा। इसे 1990 में प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया गया था।

लंबे समय से हो रहे थे प्रयास, सरकार और उल्फा के बीच कई दौर की हुई चर्चा

सूत्रों ने बताया कि शांति समझौते का माहौल बनाने और उसके लिए संगठन को राजी करने के लिए लंबे समय से प्रयास हो रहे थे। इधर, बीते एक हफ्ते से इसको लेकर दिल्ली में संगठन और सरकार के बीच बातचीत हो रही थी। राजखोवा गुट के दो लीडर अनूप चेतिया और शशधर चौधरी नई दिल्ली में सरकारी वार्ताकारों के संपर्क में थे। दोनों पक्षों के बीच कई दौर की चर्चा हुई है। इंटेलीजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका और पूर्वोत्तर मामलों पर सरकार के सलाहकार एके मिश्रा ने सरकार की तरफ से संगठन के नेताओं से चर्चा की थी।

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