
हिंदू धर्म प्रचारक साध्वी ऋतंभरा हाल ही में दिए अपने एक बयान को लेकर विवादों में घिर गई थीं। एक कार्यक्रम के दौरान महिलाओं के कपड़ों और सोशल मीडिया पर उनके व्यवहार को लेकर दिए गए उनके तीखे शब्द सोशल मीडिया पर वायरल हो गए थे। इस वीडियो के सामने आने के बाद साध्वी को तीव्र आलोचना का सामना करना पड़ा। अब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगते हुए कहा है—"मैं भी एक इंसान हूं और मुझसे गलती हो गई।"
क्या कहा था पुराने वीडियो में?
करीब तीन महीने पहले किसी धार्मिक मंच से साध्वी ऋतंभरा ने महिलाओं के व्यवहार को लेकर कड़ा वक्तव्य दिया था। उन्होंने कहा था, "हिंदू स्त्रियों को देखकर शर्म आती है। क्या अब पैसा कमाने का तरीका यह रह गया है कि तुम कपड़े उतार दो? अश्लील नृत्य करो और बेहूदे गीतों पर अभिनय करो?" उन्होंने आगे सवाल किया था, "इन महिलाओं के पति और पिता इस व्यवहार को कैसे सहन करते हैं?" साध्वी का मानना था कि भारतीय समाज की गरिमा को बनाए रखने के लिए महिलाओं को शालीनता और मर्यादा के दायरे में रहकर जीवन जीना चाहिए। हालांकि उनका यह बयान महिला अधिकारों के दृष्टिकोण से असंवेदनशील माना गया और सोशल मीडिया पर इसकी तीखी आलोचना हुई।
"मैं अपने लोगों के बीच थी" – अब दी सफाई
एनडीटीवी को दिए इंटरव्यू में साध्वी ऋतंभरा ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी महिला को अपमानित करना नहीं था। उन्होंने कहा, "अगर मेरी बातों से किसी बहन को ठेस पहुंची है, तो मैं दिल से क्षमा मांगती हूं।" उन्होंने यह भी कहा कि उस वक्त वह अपने परिचितों और अनुयायियों के बीच थीं, इसलिए अपनी भावनाएं खुलकर रख दीं। "जब आप अपनों के बीच होते हैं, तो मान लेते हैं कि आपको सच बोलने का हक है। मैंने जो देखा, उस पर मन बहुत आहत हुआ और उसी पीड़ा में ये बातें निकलीं।" उन्होंने कहा।
टोन में बदलाव, शब्दों के चयन पर अफसोस
बातचीत के दौरान साध्वी ने यह स्वीकार किया कि उन्हें शब्दों का चयन अधिक जिम्मेदारी से करना चाहिए था। "शायद मुझे ‘नग्न’ या ‘न्यूड’ जैसे शब्दों के बजाय ‘निरावरण’ या ‘अशालीन’ जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग करना चाहिए था।" उन्होंने यह भी जोड़ा कि उनके विचार समस्त महिलाओं पर लागू नहीं होते, बल्कि उन्होंने कुछ विशेष घटनाओं और ट्रेंड्स को देखकर पीड़ा व्यक्त की थी।
"शास्त्रीय नृत्य सुंदर है, लेकिन अश्लीलता नहीं"
साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि वे भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं की समर्थक हैं और मानती हैं कि शास्त्रीय नृत्य और कला एक महान विरासत हैं, लेकिन आज सोशल मीडिया पर जो ट्रेंड्स उभर रहे हैं, वे नैतिकता और गरिमा के विरुद्ध हैं। "जो रील्स में होता है, वह न कला है, न ही संस्कृति। यह केवल आत्म-प्रदर्शन है, जिसमें गरिमा का अभाव है।"
"अनुशासनहीनता को स्वतंत्रता नहीं कहा जा सकता"
अपने बयान के बचाव में साध्वी ने यह भी कहा कि किसी भी समाज की असली ताकत उसके नागरिकों की नैतिकता होती है। उन्होंने कहा, "स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई भी कुछ भी करे। जब आप एक राष्ट्र का हिस्सा हैं, तो आपकी ज़िम्मेदारी बनती है कि आप उसकी गरिमा को बढ़ाएं।"
"मेरा इरादा किसी का अपमान नहीं था"
अंत में उन्होंने दोहराया कि वह महिला विरोधी नहीं हैं और ना ही उन्होंने सभी महिलाओं पर टिप्पणी की थी। "मैं एक सामान्य व्यक्ति हूं। कभी-कभी भावनाओं में बहकर कुछ ऐसा कह देती हूं जो लोगों को आहत कर सकता है। मेरा ऐसा कोई उद्देश्य नहीं था।"
माफी और आत्मविश्लेषण
साध्वी ऋतंभरा की इस सफाई और माफी के बाद यह बहस जरूर उठ खड़ी हुई है कि सार्वजनिक मंच पर धर्मगुरुओं को अपनी भाषा और शब्दों के चयन को लेकर कितनी सजगता बरतनी चाहिए। उनके बयान ने एक ओर जहां नैतिकता बनाम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चर्चा को जन्म दिया है, वहीं यह भी स्पष्ट किया है कि प्रभावशाली हस्तियों के शब्द लाखों लोगों को प्रभावित करते हैं।














