
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए सोमवार रात अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर न सिर्फ देश को चौंका दिया, बल्कि संसद और राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी। हालांकि उन्होंने अपने इस्तीफे में स्वास्थ्य को कारण बताया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों और विपक्ष का मानना है कि इसके पीछे गहरे और रणनीतिक मतभेद छिपे हैं।
दरअसल, उनके इस्तीफे ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ये महज स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा था या फिर सरकार और उपराष्ट्रपति के बीच लंबे समय से चल रही तनातनी ने अंततः इस्तीफे की स्थिति पैदा की?
1. विपक्षी प्रस्ताव पर फैसला बना टकराव का बड़ा कारण
राज्यसभा में मानसून सत्र के पहले दिन उपराष्ट्रपति ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ विपक्षी सांसदों के प्रस्ताव को स्वीकार किया, जिससे सरकार असहज हो गई। सूत्रों के मुताबिक, यह प्रस्ताव पहले लोकसभा में लाने की रणनीति बनाई गई थी, जिससे विपक्ष भी सहमत था। लेकिन धनखड़ ने राज्यसभा में इसे स्वीकार कर सरकार की रणनीति को बाधित कर दिया।
NDTV और The Hindu की रिपोर्टों के अनुसार, यह घटनाक्रम सरकार के उच्च पदस्थ नेताओं को नागवार गुज़रा और इसे एकतरफा निर्णय माना गया, जिसके बाद सरकार और उपराष्ट्रपति के संबंधों में तनाव चरम पर पहुंच गया।
2. B.A.C. बैठक से दूरी और संवादहीनता
जगदीप धनखड़ ने इस घटनाक्रम के बाद एक B.A.C. (Business Advisory Committee) की बैठक बुलाई, लेकिन सरकार के प्रतिनिधियों ने उसमें हिस्सा नहीं लिया। यद्यपि सरकार की ओर से इसे ‘अन्य व्यस्तता’ बताया गया, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह उपराष्ट्रपति को राजनीतिक संदेश देने का तरीका था।
यह संवादहीनता भी सरकार की नाराजगी को दर्शाती है, जिसे लेकर विपक्ष अब सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या संवैधानिक पदों पर बैठने वालों के साथ भी इतनी दूरी बनाई जा सकती है?
3. न्यायपालिका पर टिप्पणी बनी विवाद का हिस्सा
धनखड़, जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील रह चुके हैं, न्यायपालिका की भूमिका पर कई बार खुलकर बोलते रहे हैं। उन्होंने न्यायिक सक्रियता और संसद की सर्वोच्चता पर सवाल उठाए, जिससे सरकार को यह संदेश देने की कोशिश मिली कि वह संस्था-प्रधान व्यवस्था के पक्षधर हैं, न कि व्यक्ति-प्रधान।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पीएमओ और विधि मंत्रालय इस तरह की टिप्पणियों को लेकर पहले भी धनखड़ से असहमति जता चुके थे, लेकिन वह अपने विचारों से पीछे नहीं हटे।
विपक्ष का हमला, सत्तापक्ष की चुप्पी
जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्स' पर पोस्ट कर उन्हें "किसान पुत्र" और "प्रेरणादायक नेता" बताया, वहीं सरकार की ओर से किसी ने आधिकारिक तौर पर उनके इस्तीफे पर कोई टिप्पणी नहीं की।
कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर धनखड़ ने इस्तीफा क्यों दिया। उन्होंने कहा, "जब उन्होंने सरकार का आभार जताया, तो सरकार को भी धन्यवाद देना चाहिए था।"
जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा कि “प्रधानमंत्री के ट्वीट ने इस इस्तीफे को और रहस्यमय बना दिया है। वह एक किसान पुत्र को सम्मानजनक विदाई तक नहीं दे सके।”
भाजपा की अंदरूनी रणनीति से भी जुड़ रहा मामला
कुछ राजनीतिक सूत्रों का मानना है कि भाजपा 2025 तक बड़े सांगठनिक बदलावों की तैयारी कर रही है, जिसमें कई बड़े फैसले और चेहरे बदले जा सकते हैं। धनखड़ का इस्तीफा उसी प्रक्रिया का हिस्सा माना जा रहा है, जहां शीर्ष नेतृत्व "क्लीन-स्लेट" नीति के तहत निर्णय ले रहा है।
वहीं तेजस्वी यादव ने इसे बिहार की एनडीए रणनीति से जोड़ते हुए कहा कि इससे भाजपा नीतीश कुमार को गठबंधन का नेता बनाए रखने की मजबूरी पर पुनर्विचार कर सकती है। यह बयान खुद में भाजपा-जद(यू) समीकरणों में तनाव का संकेत देता है।
JNU में दिया गया बयान और संसद में सन्नाटा
हैरानी की बात यह है कि महज 10 दिन पहले दिल्ली के JNU कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा था कि वह 2027 तक इस पद पर बने रहेंगे। इसके बावजूद इस्तीफे से पहले किसी तरह की हलचल संसद या सियासी मंचों पर नहीं देखी गई। यह दर्शाता है कि या तो निर्णय अचानक लिया गया या फिर लंबे समय से चल रही नाराजगी कूटनीतिक तरीके से सामने लाई गई।














