
ओडिशा के पवित्र शहर पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर अपनी दिव्य आभा, सदियों पुरानी परंपराओं और अनोखी मान्यताओं के कारण पूरी दुनिया में श्रद्धा का केंद्र है। लेकिन इन मान्यताओं में एक ऐसा नियम भी शामिल है, जो लोगों को चौंका देता है—यहाँ अविवाहित प्रेमी जोड़ों का प्रवेश वर्जित है। पहली नज़र में यह कोई सामाजिक या नैतिक नियम लगता है, लेकिन इसकी जड़ें एक प्राचीन पौराणिक कथा में छिपी हैं, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।
राधा रानी से जुड़ी मानी जाती है यह मान्यता
मंदिर में अविवाहित जोड़ों के प्रवेश निषेध का संबंध सीधे राधा रानी से जोड़ा जाता है। कथा के अनुसार, एक बार राधा जी भगवान श्रीकृष्ण के जगन्नाथ स्वरूप के दर्शन के लिए पुरी पहुंचीं। वे पूरी भक्ति के साथ मंदिर के अंदर प्रवेश करने ही वाली थीं कि वहीं मौजूद पुजारियों ने उन्हें रोक दिया।
राधा रानी को भी रोक दिया गया था
राधा जी आश्चर्यचकित रह गईं। उन्होंने पुजारियों से पूछा कि उन्हें अंदर क्यों नहीं जाने दिया जा रहा। इस पर पुजारियों ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के गर्भगृह में केवल उन्हीं को प्रवेश की अनुमति है, जिनका कृष्ण से वैवाहिक संबंध हो। भगवान की पत्नियों तक को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जाती, ऐसे में राधा रानी का प्रवेश भी नियमों के विरुद्ध था।
राधा जी ने दिया था कठोर श्राप
यह सुनकर राधा रानी अत्यंत व्यथित और क्रोधित हो उठीं। मान्यता है कि दुख से भरे हृदय के साथ उन्होंने वहीं श्राप दे दिया कि अब से इस मंदिर में कोई भी अविवाहित प्रेमी जोड़ा प्रवेश नहीं कर पाएगा। कहा जाता है कि जो भी प्रेमी युगल इस प्रतिबंध को तोड़ने का प्रयास करेगा, उसे प्रेम में सफलता नहीं मिलेगी।
आज भी जारी है यह सदियों पुरानी परंपरा
इस श्राप की कथा पीढ़ियों से सुनाई जाती रही है और इसी वजह से जगन्नाथ मंदिर में यह नियम आज भी दृढ़ता से पालन किया जाता है। मंदिर प्रशासन और पुजारी इस परंपरा को श्रद्धा और अनुशासन के साथ निभाते हैं। यदि कोई अविवाहित कपल मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो उसे विनम्रता के साथ रोक दिया जाता है।














