नागौर: पर्यटन क्षेत्र में रखता है एक अहम् स्थान, सांभर झील देखने का मोह छोड़ नहीं पाते पर्यटक

By: Geeta Sat, 10 June 2023 10:20:01

नागौर: पर्यटन क्षेत्र में रखता है एक अहम् स्थान, सांभर झील देखने का मोह छोड़ नहीं पाते पर्यटक

अधिकांशत: यह देखा गया है कि बच्चों की छुटि्टयाँ शुरू होते ही घूमने के लिए प्रोग्राम बना लिए जाते हैं। हर व्यक्ति को घूमने के लिए अलग-अलग तरह की जगहें पसंद होती हैं। यदि आप इतिहास, प्राकृतिक खूबसूरती और सुन्दरता, ऐतिहासिकता से भरी जगह को देखना चाहते हैं तो आपको राजस्थान राज्य स्थित नागौर को जरूर देखना चाहिए। यह देश के सबसे बड़े खारे पानी वाली झील का शहर है। नागौर उत्तर में चूरू, उत्तर पश्चिम में बीकानेर और पूर्वोत्तर में सीकर, दक्षिण में पाली और पश्चिम व दक्षिण पश्चिम में जोधपुर हैं। इसके अलावा पूर्व में जयपुर व दक्षिण पूर्व में अजमेर से घिरा हुआ है। नागौर जिले के दक्षिण पूर्व में खूबसूरत अरावली श्रृंखला है, जबकि दक्षिण पश्चिम में भारत की सबसे बड़ी खारे पानी वाली सांभर झील है।

राजस्थान के बीच में स्थित नागौर को महाभारत काल में जांगलदेश के नाम से पुकारा जाता था। मुगल बादशाह शाहजहां ने राजा अमर सिंह राठौर को यह भेंट के रूप में दिया था और यह थार रेगिस्तान में यह फैला हुआ है। इस शहर पर कई बार आक्रमण हुआ और नागवंश, चौहान, राठौड़, मुगल और अंग्रेजों ने सालों तक राज किया।

नागौर के प्रमुख पर्यटन स्थल

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मीरा बाई स्मारक

यहां पर लाइट-साउंड शो के जरिए मीरा बाई का पूरा जीवन दिखाया जाता है। इसमें बचपन, भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, उनको पति और आराध्य मानने का किस्सा, मेवाड़ के राजकुमार के साथ मीरा बाई के विवाह, पति की मृत्यु, राजसी वैभव त्यागकर वैराग्य के मार्ग पर जाने, वृंदावन-द्वारका में प्रवास को बेहतरीन रंग-बिरंगी रोशनी, ऑडियो के जरिए लुभावने ढंग से प्रदर्शित किया जाता है। इस दौरान मीरा बाई से जुड़े संगीतमय भजनों से पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है।

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नागौर किला

राजपूत और मुग़ल स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने के रूप में मौजूद नागौर के किले के बारे माना जाता है इसे द्वितीय शताब्दी में नाग राजवंश शासक द्वारा निर्मित करवाया गया था। इसके बाद 12वीं शताब्दी में पुनर्निर्माण हुआ। तमाम लड़ाइयों का साक्षी यह किला उत्तर भारत के पहले मुग़ल गढ़ों में से एक होने के नाते राजपूत-मुग़ल स्थापत्य शैली का शानदार उदाहरण है। वर्ष 2007 में यहां फव्वारे और खूबसूरत उद्यान के साथ पुनर्निर्माण हुआ और इसकी चमक में चार चांद लग गए। यह सूफी संगीत उत्सव के आयोजन के लिए मशहूर है। राजपूत-मुगल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है। 12वीं शताब्दी की शुरुआत में निर्मित और बाद की शताब्दियों में बार-बार परिवर्तित, इसने कई लड़ाइयों को देखा। 2007 में बड़े नवीनीकरण हुए। बगीचों और इमारतों में अब 90 फव्वारे चल रहे हैं। किले की इमारतें और स्थान, दोनों बाहरी और आंतरिक, एक सूफी संगीत समारोह के स्थल, मंच और घर के रूप में काम करते हैं।

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लाडनूं

समूचे भारत में सूती साड़ियों में यहां की साड़ियों को काफी बेहतरीन माना जाता है और इन साड़ियों को चटक रंग के साथ मुलायम कपड़े के लिए पसंद किया जाता है। 10वीं सदी में बसा यह स्थान जैन धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र होने के साथ अहिंसा-करुणा का भी आध्यात्मिक केंद्र है। 10वीं सदी के जैन मंदिर ऐतिहासिक आकर्षण से भरपूर हैं। जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय - जैन धर्म का एक केंद्र; विचार का एक स्कूल; आध्यात्मिकता और शुद्धि का केंद्र; अहिंसा का एक समाज। राजस्थान के नागौर जिले में दधिमती माता का मंदिर।

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खींवसर किला

एक हैरिटेज होटल के रूप में विकसित किए जा चुके इस किले के बारे में माना जाता है कि इसे भी द्वितीय शताब्दी में नागवंश शासक द्वारा निर्मित करवाया गया था। थार रेगिस्तान के पूर्वी किनारे पर स्थित इस किले के आसपास काले हिरण घूमते नजर आ जाते हैं। खींवसर शहर - खिमसर किला - नागौर से 42 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 65 पर जोधपुर की ओर स्थित है; थार रेगिस्तान के बीच में 500 साल पुराना किला। मुगल बादशाह औरंगजेब यहां रहा करते थे; खिंवसर शहर में 25 छोटे मंदिर हैं; झुंड में घूमने वाला काला हिरण पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।

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कुचामन शहर

यहां बनी हवेलियां अपने शानदार वास्तुशिल्प के चलते शेखावाटी की हवेलियों से मिलती-जुलती दिखती हैं। यहां का सबसे महत्वपूर्ण कुचामन किला बहुत मशहूर है और दूर-दूर से लोग इसे देखने आते हैं। एक खड़ी पहाड़ी की चोटी पर बना यह राजस्थान का सबसे प्राचीन और दुर्गम किला है। इसके भीतर अपने आप में शानदार जल संचयन तकनीक, ख़ूबसूरत महल के साथ अद्भुत भित्ति चित्र सैलानियों को काफी आकर्षित करते हैं। यहां पर जोधपुर के शासक की सोने-चांदी के सिक्कों की टकसालें भी मौजूद थीं। इस किले से ना केवल शहर बल्कि झील का मनोरम दृश्य और शहर के पुराने मंदिर, जाव की बावड़ी और ख़ूबसूरत हवेली भी आसानी देखी जा सकती है।

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खाटू

खाटू का पुराना नाम शतकुप (छह कुएँ) था। जब शक शासक भारत आए तो वे अपने साथ दो नए कुएँ भी लाए जिन्हें शकंधू (सीढ़ी) और कलंध (राहट) कहा जाता था। पृथ्वीराज रासो के अनुसार खाटू का पुराना नाम खाटवान था। पुराना खाटू लगभग नष्ट हो चुका है। अब दो गाँव हैं, एक का नाम बारी खाटू और दूसरा छोटा खाटू है। छोटी खाटू की पहाड़ी पर एक छोटा किला खड़ा है। किले का निर्माण पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था। छोटी खाटू में एक पुरानी बावड़ी स्थित है, जिसे फूल बावड़ी के नाम से जाना जाता है, माना जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण गुर्जर प्रतिहार काल में हुआ था। यह बावड़ी अपनी स्थापत्य शैली में कलात्मक है।

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अहिछत्रगढ़ किला और संग्रहालय

नागौर में बने अहिछत्रगढ़ को ’फोर्ट ऑफ हुडेड कोबरा’ यानी ‘नागराज का फन’ का नाम दिया गया है। करीब 36 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस किले को 1985 में मेहरानगढ़ म्यूज़ियम ट्रस्ट के संरक्षण में सौंप दिया गया था। यहां के महलों में ऐतिहासिक राजसी कुर्सी, मेज, सोफा, पलंग आदि लगे हुए हैं और दीवारों पर शाही चित्रकारी के अलावा बेहतरीन सजावटी सामान मौजूद है। 2002 में नागौर किले को संस्कृति विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को एशिया के पैसिफिक हैरिटेज अवार्ड से सम्मानित किया गया। हर साल नागौर किले में वर्ल्ड सेक्रेड स्पिरिट फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है।

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रोल

जिसे रोल शरीफ के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय राज्य राजस्थान में नागौर जिले की जायल तहसील का एक गाँव है। गांव में शाही जामा मस्जिद सहित कई मस्जिदें हैं। मुहम्मद के जुब्बा मुबारक हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि उनके पास बुखारा, रूस से काजी हमीदुद्दीन नागौरी द्वारा लाया गया पवित्र अवशेष है। इस अवसर को मनाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से भक्त क़ाज़ी साहब के उर्स में इकट्ठा होते हैं। गांव में एक वार्षिक उर्स मेला (उर्स मेला) आयोजित किया जाता है।

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झोरड़ा

नागौर का झोरड़ा एक छोटा गांव है और कवि ’कानदानकल्पित’ तथा प्रसिद्ध सूफी संत ’बाबा हरिराम’ की जन्मस्थली है और इसके मशहूर होने की भी वजह है। हर साल भाद्रपद की चतुर्थी-पंचमी को सालाना मेला लगता है, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश समेत अन्य स्थानों के लोग आते हैं। यह नागौर के उत्तर में लगभग 30 किमी की दूरी पर स्थित है।

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बड़े पीर साहब दरगाह

मशहूर पवित्र स्थान होने के चलते बड़े पीर साहब की दरगाह को 17 अप्रैल 2008 को बतौर संग्रहालय के रूप में भी खोल दिया गया। यहां मशहूर क़ुरान शरीफ है, जिसे हजरत सैयद सैफुद्दीन अब्दुल जीलानी ने सुनहरी स्याही में लिखा था। इसके साथ उनकी छड़ी, पगड़ी/टोपी के साथ ऐतिहासिक महत्व की तमाम चीजें भी मौजूद हैं। यहां 1805 तक के प्राचीन भारतीय सिक्के, अब्राहम लिंकन की छवि वाले अमेरिकी सिक्के भी मौजूद हैं।

कुर्की

कुर्की नागौर जिले की मेड़ता तहसील का एक छोटा सा गांव है। मेड़ता से लगभग 30 किमी दूर यह राजकुमारी और कवयित्री मीरा बाई की जन्मस्थली है।

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खरनाल

यह नागौर-जोधपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नागौर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह लोक देवता वीर तेजाजी की जन्मस्थली है। ऐसा माना जाता है कि खरनाल की स्थापना धवल खीची ने की थी जो जायल राज्य के चौधन शासक गुंडल राव खीची की 5वीं पीढ़ी में थे। वीर तेजाजी का जन्म जाट के ढोलिया गोत्र में हुआ था।

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बंशीवाला मंदिर

नगर के भीतर स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचीन बंशीवाला मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है, इस मंदिर की दीवारों पर शीशे के टुकड़े जोड़ने की कला देखते ही बनती है, मनोरम कारीगरी का प्रदर्शन करती है।

जायल

दधिमती माता मंदिर - गोठ-मंगलोद मंदिर के रूप में भी जाना जाता है; नागौर से 40 किमी; गुप्त वंश (चौथी शताब्दी) के दौरान निर्मित जिले का सबसे पुराना मंदिर; दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी।

मेड़ता

मीरा बाई मंदिर - जिसे चारभुजा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है; 400 साल पुराना; सबूत कैसे कुल समर्पण ईश्वरीय गुणों को प्राप्त करने में मदद करता है; कितना गहरा विश्वास जहर को 'अमृत' में बदल देता है।

कैसे पहुंचे नागौर

यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट जोधपुर में है और यह 137 किलोमीटर दूर है। जबकि जोधपुर, जयपुर और बीकानेर जैसे शहरों से नागौर तक सड़क मार्ग से बस सेवा उपलब्ध हैं। इंदौर, मुंबई, कोयम्बटूर, सूरत, बीकानेर, जोधपुर, जयपुर आदि शहरों से नागौर रेल के माध्यम से भी जुड़ा हुआ है।

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