घर के बुजुर्गों को ले जाएं इन तीर्थ स्थल, मिलती है हेलीकॉप्टर की सुविधा

By: Neha Thu, 15 Dec 2022 1:23:55

घर के बुजुर्गों को ले जाएं इन तीर्थ स्थल, मिलती है हेलीकॉप्टर की सुविधा

भारत अध्यात्म, धर्म और आस्था का देश है, जहां कई सारे तीर्थ स्थल हैं। भारत में ऐसे कई तीर्थ स्थल हैं, जहां लोगों को दर्शन करने मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। तीर्थ स्थानों पर जाकर मन को एक अलग सुकून मिलता है। यही वजह है कि लोग फैमिली के साथ दर्शन करने के लिए तीर्थ स्थानों पर जाने का मन बनाते हैं। आपको हमेशा से ही तीर्थ स्थलों पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। ऐसे में कई लोग अपने बुजुर्गों को भी तीर्थ स्थलों की यात्रा करवाने की चाह रखते हैं, लेकिन चढ़ान की वजह से ले जा पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे तीर्थ स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां हेलीकॉप्टर की सुविधा मिल जाती हैं और बुजुर्गों को इसमें ले जाया जा सकता हैं। आइये जानते हैं इन तीर्थ स्थलों के बारे में...

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वैष्णो देवी, जम्मू और कश्मीर

भारत के सबसे पवित्र और प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में वैष्णो देवी का नाम है। वैष्णो देवी की हिंदू धर्म में बहुत मान्यता है। जम्मू के कटरा में त्रिकुटा पर्वत पर एक गुफा में माता वैष्णो देवी का दरबार है। यह सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से हैं जहां साल भर भक्तों की भीड़ रहती है। लेकिन यहां पहुंचने के लिए लंबी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। मंदिर की ऊंचाई करीब 5200 फीट है। ऐसे में कटरा से भवन तक 12 किलोमीटर तक का सफर पैदल तय करना पड़ता है। हालांकि रास्ते में घोड़े, खच्चर, रोप वे और कुछ किलोमीटर तक टैक्सी की सुविधा मिलती है लेकिन इतनी लंबी चढ़ाई के लिए वैष्णो देवी में हेलीकॉप्टर की सुविधा भी दी जाती है। जिसकी बुकिंग आप माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की वेबसाइट या काउंटर से कर सकते हैं।

त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की स्वयंभू तीन मूर्तियां हैं। देवी काली (दाएं), सरस्वती (बाएं) और लक्ष्मी (मध्य), पिण्डी के रूप में गुफा में विराजित हैं। इन तीनों पिण्डियों के सम्मिलित रूप को वैष्णो देवी माता कहा जाता है। इस स्थान को माता का भवन कहा जाता है। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फीट है। इस गुफा में एक बड़ा चबूतरा बना हुआ है। इस चबूतरे पर माता का आसन है जहां देवी त्रिकुटा अपनी माताओं के साथ विराजमान रहती हैं। भवन वह स्थान है जहां माता ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा के समक्ष भैरो का शरीर मौजूद है और उसका सिर उड़कर तीन किलोमीटर दूर भैरो घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया। जिस स्थान पर सिर गिरा, आज उस स्थान को 'भैरोनाथ के मंदिर' के नाम से जाना जाता है। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरो मंदिर तक 15 किलोमीटर है।

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गंगोत्री, उत्तराखंड

देवभूमि उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री का नाम भी देश के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में गिना जाता है। वहीं गंगोत्री के समीप स्थित गोमुख से गंगा नदी का उद्गम होता है। जिसके चलते कई लोग मोक्ष प्राप्ति की आशा लेकर गंगोत्री के दर्शन करने आते हैं। मगर रोड के रास्ते गंगोत्री पहुंचने का सफर काफी थका देने वाला होता है। ऐसे में आप देहरादून से हेलीकॉप्टर की सवारी करके मिनटों में गंगोत्री धाम पहुंच सकते हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण गंगा मां का यह पवित्र स्थान समुद्र तल से 3,048 मी की ऊंचाई पर स्थित है। हिमालयी क्षेत्र होने के कारण यह धाम साल में 6 माह के लिये खुलता है। बैसाख की अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खुलते हैं व दिवाली के शुभदिन पर कपाट बन्द होते हैं। शीत ऋतु के लिये गंगोत्री से 20 किमी नीचे मुखबा गांव के मुखयमनाथ मंदिर में पूजा के लिये लायी जाती है। गंगोत्री नदी के बगल से भगीरथी नदी बहती है। गंगोत्री धाम से 19 किमी की दूरी पर गोमुख ग्लेशियर से भागीरथी नदी का उदगम होता है। भागीरथी नदी आगे जाकर देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलकर, जहां से दोनों नदियां एक हो जाती है,जहां से यह नदी गंगा कहलाती है। इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा कराया गया था। अभी वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा कराया गया।

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केदारनाथ, उत्तराखंड

केदारनाथ मंदिर भी देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में हर साल लाखों तीर्थयात्री आते हैं। इसे भारत के सबसे कठिन तीर्थ ट्रेकों में से एक माना जाता है। लेकिन अब मंदिर तक पहुंचना थोड़ा आसान और आरामदायक हो गया है, क्योंकि उत्तराखंड में कई सरकारी और निजी हेलीकॉप्टर सेवाएं उपलब्ध हैं। केदारनाथ की यात्रा के लिए आप हेली राइड्स को पहले से बुक कर सकते हैं।

समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित केदारनाथ मंदिर भगवान शिव का मंदिर है। भगवान केदार या शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर में है। साल के अधिकतर महीनों केदारनाथ धाम भारी बर्फ से ढका रहता है। केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के लिए 16 किलोमीटर का पैदल ट्रेक करना पड़ता है। इतनी ऊंचाई पर स्थित होने के बावजूद भारी मात्रा में श्रद्धालु हर वर्ष केदारनाथ मंदिर दर्शन के लिए पहुंचते हैं। केदारनाथ से थोड़ा और ऊंचाई पर चौराबाड़ी झील है जहां से मंदाकिनी नदी निकलती है। ऋषिकेश से केदारनाथ की दूरी लगभग 227 किलोमीटर है।


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अमरनाथ, जम्मू और कश्मीर

अगर आपको बर्फ से ढके पहाड़ों को देखना पसंद है, तो आप अमरनाथ की यात्रा का मन बना सकते हैं। यह माना जाता है कि अमरनाथ वहीं गुफा है, जहां भगवान शिव ने देवी पार्वती को जीवन के अनंत काल का रहस्य समझाया था। देश भर के लोगों के लिए यह यात्रा किसी दिलचस्प अनुभव से कम नहीं होती है। बता दें कि इस यात्रा में हेलीकॉप्टर सवारी मिलती है, जिसे असहाय यात्री आराम से दर्शन कर सकें, हालांकि की इस मंदिर के कपाट लंबे समय के बाद खुलते हैं, ऐसे में आपको महीनों पहले बुकिंग करनी पड़ती है।

इस स्थान की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक बर्फ से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू बर्फ का शिवलिंग भी कहते हैं यह शिवलिंग लगभग 10 फुट ऊचा बनता है। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखो लोग यहां आते है। चन्द्रमा के घटने-बढ़ने के साथ-साथ इस बर्फ का आकार भी घटता-बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटा होता जाता है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।

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