राजस्थान के उदयपुर में स्थित है सास-बहू मंदिर, बना ले देखने के प्रोग्राम

By: Pinki Thu, 26 May 2022 6:02:21

राजस्थान के उदयपुर में स्थित है सास-बहू मंदिर, बना ले देखने के प्रोग्राम

आपने हनुमान, शिव और विष्णु मंदिर तो कई देखे होंगे, लेकिन कभी आपने सास बहु मंदिर के बारे में सुना है? सास-बहु नाम सुनकर ही आपके दिमाग में एक ही सवाल आया होगा कि इस तरह के मंदिर आखिर है कहा। हम आपको बता दें, ये मंदिर राजस्थान के उदयपुर में स्थित है। इस मंदिर को देखने के लिए दूर-दूर से टूरिस्ट और श्रद्धालु आते हैं। वैसे तो इस मंदिर का असल नाम सहस्त्रबाहु है पर इसे सास-बहु मंदिर कहा जाता है। चलिए हम आपको इस लेख में आज इस मंदिर से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें बताते हैं।

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एक राजा ने अपनी पत्नी और बहू के लिए बनवाया था

राजस्थान के उदयपुर शहर से लगभग 23 किमी दूर नागदा गांव में, सास-बहु मंदिर देखने में बेहद आकर्षक है। इस मंदिर का निर्माण 1100 साल पहले कच्‍छपघात राजवंश के राजा महिपाल और रत्नपाल ने बनवाया था। लेकिन आपको बता दें, ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, ये सास और बहू से जुड़ा किसी भी तरह का मंदिर नहीं है। बल्कि कच्छवाहा राजवंश के राजा महिपाल ने इसे 10 वीं या 11 वीं शताब्दी ईस्वी में बनवाया था। राजा की पत्नी भगवान विष्णु की भक्त थीं। जब रानी के पुत्र का विवाह हुआ तो राजा ने अपनी बहू के लिए भगवान शिव का मंदिर बनवाया। क्योंकि उसकी बहू के ईष्ट देव शिव थे। जिस वजह से इस मंदिर का नाम सहस्‍त्रबाहू पड़ा। जो बाद में सास और बहू मंदिर हो गया। दरअसल, धीरे-धीरे लोग इस मंदिर को सहस्त्रबाहु से सास और बहू मंदिर बुलाने लगे जिस कारण यह मंदिर इसी नाम से जाना जाने लगा। जिसका अर्थ है 'हजारों भुजाओं वाला', भगवान विष्णु का पर्यायवाची। हालांकि, बाद में, जुड़वां मंदिरों सहस्त्रबाहु कहा जाने लगा।।जैसे-जैसे समय बीतता गया, नाम को भी कुछ और ही तरह से लोग बुलाने लगे। समय के साथ इसे लोग सास-बहू मंदिर के नाम से बुलाने लगे। ये मंदिर अन्य मंदिर की तुलना में अपेक्षाकृत बड़ा है। मंदिर में भगवान विष्णु की 32 मीटर ऊंची और 22 मीटर चौड़ी सौ भुजाओं वाली मूर्ती है।

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इस मंदिर के लिए इतिहासकारों का मानना है कि भारत में मुगल आए थे, तो मुगलों ने सास-बहु मंदिर को चुने और रेत से ढकवा दिया था और पूरे मंदिर पर अपना राज जमा दिया था। मंदिर के धनर विष्णु भगवान के अलावा शिव जी के साथ-साथ कई मूर्तियां थी, जिन्हें मुगलों ने खंडित कर दिया था। बाद में भारत में अंग्रेज आए और पूरे देश पर कब्जा करके इस मंदिर को फिर से खुलवा दिया था।

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