पर्यटन के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखता है छत्तीसगढ़ का कवर्धा नगर

By: Geeta Thu, 08 June 2023 7:44:39

पर्यटन के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखता है छत्तीसगढ़ का कवर्धा नगर

कवर्धा भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के कबीरधाम जिले में स्थित एक नगर है। यह जिले का मुख्यालय भी है।कवर्धा सकरी नदी के तट पर कवर्धा नगर बसा हुआ है। पहले यहां पर नागवंशी और हेहेवंशी शासकों का शासन था। उन्होंने यहां पर अनेक मन्दिर और किले बनवाए थे। इन मन्दिरों और किलों के अवशेष आज भी देखे यहां जा सकते हैं। पर्यटकों को यह अवशेष बहुत पसंद आते हैं। किलों और मन्दिरों के अलावा पर्यटक यहां पर सतपुड़ा की पहाड़ियों की मैकाल पर्वत श्रृंखला देख सकते हैं। इसकी अधिकतम ऊंचाई 925 मी. है। पर्यटक चाहें तो इन पहाड़ियों पर रोमांचक यात्राओं का आनंद ले सकते हैं। कवर्धा का पर्यटन के क्षेत्र में अपना एक अलग मुकाम है। छत्तीसगढ़ आने वाले पर्यटकों में से ज्यादातर पर्यटक कवर्धा को देखने आते हैं।

प्रमुख आकर्षण

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कवर्धा महल

इतालवी मार्बल से बना कवर्धा महल बहुत सुन्दर है। इसका निर्माण महाराजा धर्मराज सिंह ने 1936-39 ई. में कराया था। यह महल 11 एकड़ में फैला हुआ है। महल के दरबार के गुम्बद पर सोने और चांदी से नक्काशी की गई है। गुम्बद के अलावा इसकी सीढ़ियां और बरामदे भी बहुत खूबसूरत हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं। इसके प्रवेश द्वार का नाम हाथी दरवाजा है, जो बहुत सुन्दर है।

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राधाकृष्ण मन्दिर

इस मन्दिर का निर्माण राजा उजीयार सिंह ने 180 वर्ष पहले कराया था। प्राचीन समय में साधु-संत मन्दिर के भूमिगत कमरों में कठिन तपस्या किया करते थे। इन भूमिगत कमरों को पर्यटक आज भी देख सकते हैं। मन्दिर के पास एक तालाब भी बना हुआ है। इसका नाम उजीयार सागर है। तालाब के किनारे से मन्दिर के खूबसूरत दृश्य दिखाई देते हैं, जो पर्यटकों को बहुत पसंद आते हैं।

राधाकृष्ण मन्दिर के अलावा पर्यटक यहां पर भोरमदेव माण्डवा महल और मदन मंजरी महल मन्दिर भी देख सते हैं। यह तीनों मन्दिर एक-दूसरे के काफी नजदीक हैं। भोरमदेव माण्डवा महल और मदन मंजरी महल मन्दिर पुष्पा सरोवर के पास स्थित हैं। इन दोनों मन्दिरों के निर्माण में मुख्य रूप से मार्बल का प्रयोग किया गया है। सरोवर के किनार पर्यटक चहचहाते पक्षियों को भी देख सकते हैं।

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भोरमदेव मंदिर

भोरमदेव मंदिर जिला मुख्यालय कवर्धा से उत्तर पश्चिम में 18 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा मैकल पहाड़ियों के पाद तल में बसे हुए चौरा गांव में स्थित है। भोरमदेव मंदिर का निर्माण फणी नागवंश के छठवें राजा गोपाल देव द्वारा 11 वीं शताब्दी 1087 ई में कराया गया था। मंदिर में बनाए गए तीन प्रवेश द्वार जो तीनों की आकृति अर्द्ध मंडप जैसी ही दिखाई देती है। इस मंदिर मंडप में 16 स्तंभ तथा चारों कोनों पर चार अलंकृत भित्ति स्तंभ है। मंदिर के वर्गाकार गर्भगृह में हाटकेश्वर महादेव विशाल जलाधारी के मध्य प्रतिष्ठित है। गर्भगृह में ही पद्मासना राजपुरूष सपत्नीक,पदमासना सत्पनीक ध्यान मग्य योगी,नृत्य गणपति की अष्ठभूजी प्रतिमा तथा फणीनागवंशी राजवंश के प्रतीक पांच फणों वाले नाग प्रतिमा रखी हुई है। काले भूरे बलुआ पत्थरों से निर्मित मंदिरी की वाहय दीवानों पर देवी देवताओं की चित्ताकर्षक एवं द्विभुजी सूर्यप्रतिमा प्रमुख है। मंदिर के वाह्य सौदर्य दर्शन का सबसे उपयुक्त स्थल ईशान कोण अर्थात भोरवदेव के ठीक सामने है,यहां से मंदिरन रथाकार दिखाई देखता है। यह मंदिर तल विन्यास से सप्तरथ चतुरंग,अंतराल,अंलकृत, स्तंभों से युक्त वर्गाकार मण्डप है। उध्र्व विन्यास में उधिष्ठान जंघा एवं शिखर मंदिर के प्रमुख अंग हे। मंदिर के जंघा की तीन पंकित्यों में विभिन्न देवी देवताओं की कृष्णलीला, नायक-नायिकाओं, अष्ठद्विकपालों, युद्ध एवं मैथुन दृष्यों में अलंककरण किया गया है।

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छेरकी महल

छेरकी महल भोरमदेव मंदिर के दक्षिण-पश्चिम में एक किलोमीटर की दूरी पर यह छेरकी महल स्थापित है। इस ऐतिहातिक एवं पुरात्व महत्व के छेरकीमहल में शिव भगवान विराजित है। ईंट प्रस्त्र निर्मित इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है। 14 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में निर्मित इस मंदिर में छेरी बकरी का गंध आज भी आती है, इसलिए इस मंदिर नुमा महल को छेरकी महल के नाम से जाना जाता है। द्वार चैखट की वाम पाश्र्व द्वारा शाखा में नीचे चर्तुभूजी शिव एवं द्विभुजी पार्वती खड़े है। मंदिर का गर्भगृह वर्गाकार है। मध्य में कृष्ण प्रस्तर निर्मित शिवलिंग जलाधारी पर स्थापित है।

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मड़वा महल

भोरमदेव मंदिर से आधे किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण में चैरा ग्राम के समीप एक प्रस्तर निर्मित पश्चिमांभिमुख एक शिव मंदिर है, जिसे मड़वा महल कहा जाता है। स्थानीय लोग इस दूल्हादेव मंदिर के नाम से जानते है। इस मंदिर का निर्माण फणिनागवंश के चैबीसवें राजा रामचन्द्र देवराज द्वारा 1349 ई में रतनपुर राज्य की कलचुरी राजकुमारी अंबिका देवी के संग विवाहोपरांत करवाया गया था। मड़वा महल के शिलालेख से मिलती हे। इस शिलालेख में फणिनावंश की उत्पत्ति तथा वंशावली दी गई है।

आवागमन

वायु मार्ग - कवर्धा रायपुर से 120 कि॰मी॰ की दूरी पर स्थित है। रायपुर में पर्यटकों के लिए हवाई अड्डे का निर्माण किया गया है और यहां से पर्यटक आसानी से कवर्धा तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग - रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनंदगांव, डोंगरगढ़ और जबलपुर रेलवे स्टेशन से आसानी से कवर्धा तक पहुंचा जा सकता है। रायपुर से कवर्धा आने के लिए पर्यटकों को ज्यादा आसानी रहती है क्योंकि वहां से कवर्धा तक काफी अच्छी बस सेवा है।
सड़क मार्ग - पर्यटक रायपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 30 से आसानी से कवर्धा तक पहुंच सकते हैं। इनके अलावा रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, राजनंदगांव, डोंगारगाह और जबलपुर से पर्यटक बसों और टैक्सियों द्वारा आसानी से कवर्धा तक पहुंच सकते हैं।

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