महाकुंभ में स्नान का सही तरीका, सबसे पहले किस अंग पर डालें जल? प्रेमानंद महाराज ने बताया नहाने का शास्त्रीय तरीका
By: Priyanka Maheshwari Mon, 27 Jan 2025 1:02:39
हिंदू धर्म में स्नान का महत्व दान के बराबर माना गया है। यह न केवल शारीरिक स्वच्छता का माध्यम है, बल्कि मानसिक और आत्मिक शुद्धि का भी एक तरीका है। पवित्र नदियों में स्नान करने से लेकर घर पर स्नान करने तक, सही तरीके से किया गया स्नान व्यक्ति को ऊर्जा और सकारात्मकता प्रदान करता है। इसके महत्व को समझने के लिए प्रयागराज के महाकुंभ मेले का उदाहरण लिया जा सकता है, जहां लाखों श्रद्धालु कठोर सर्दी के बीच त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं।
वृंदावन के प्रसिद्ध गुरु प्रेमानंद महाराज के अनुसार, नहाने का एक शास्त्रीय तरीका है, जो न केवल शरीर को बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है। इस लेख में हम महाराज जी द्वारा बताए गए स्नान के शास्त्रीय तरीके को समझेंगे।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, स्नान के लिए हमेशा ठंडे पानी का उपयोग करना चाहिए। ठंडे पानी से स्नान करने से शरीर के विकार दूर होते हैं और यह मन और शरीर को स्वस्थ रखता है। ठंडा पानी शरीर की ऊर्जाओं को जाग्रत करता है और हमें तरोताजा महसूस कराता है। महाराज जी बताते हैं कि नहाते समय सबसे पहले पानी नाभि पर डालना चाहिए। नाभि हमारे शरीर का केंद्र है, और इसे पहले जल स्पर्श कराने से शरीर की ऊर्जा का संतुलन बना रहता है। इसके बाद, पूरे शरीर पर पानी डालना चाहिए। विशेष रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों के लिए यह तरीका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना गया है। आजकल के रासायनिक उत्पादों के विपरीत, महाराज जी का मानना है कि शरीर को साफ करने के लिए साबुन और सोडा का उपयोग करना अनिवार्य नहीं है। उनके अनुसार, शरीर पर मैल तेल के कारण चिपकता है, जिसे रज यानी मिट्टी से साफ किया जा सकता है। मिट्टी से स्नान करने पर शरीर को प्राकृतिक रूप से स्वच्छ किया जा सकता है और यह त्वचा को नुकसान भी नहीं पहुंचाता।
बाल धोने का सही तरीका
प्रेमानंद महाराज का मानना है कि ब्रह्मचर्य का पालन करने वालों को अपने बालों को रीठा या अन्य प्राकृतिक और पवित्र चीजों से धोना चाहिए। उनका मानना है कि साबुन और शैंपू का उपयोग न केवल अनावश्यक है, बल्कि इससे मानसिक राग उत्पन्न होता है, जो ब्रह्मचर्य की भावना के विपरीत है। महाराज जी कहते हैं कि यदि शरीर पर तेल न लगाया जाए, तो त्वचा स्वाभाविक रूप से साफ रहती है और किसी रासायनिक उत्पाद की आवश्यकता नहीं पड़ती।
स्नान के प्रकार
शास्त्रों के अनुसार स्नान चार प्रकार के होते हैं, और हर प्रकार का स्नान अपनी विशेषता और महत्व रखता है:
ऋषि स्नान : सूर्योदय से पहले तारों की छाया में किए जाने वाले स्नान को ऋषि स्नान कहा जाता है। यह स्नान ऋषियों और तपस्वियों का तरीका माना गया है, जो ध्यान और साधना में लीन रहते हैं।
ब्रह्म स्नान : ब्रह्म मुहूर्त में किया गया स्नान ब्रह्म स्नान कहलाता है। यह समय सुबह 4 बजे से पहले का होता है और इसे गृहस्थ लोगों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। इस समय स्नान करने से व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध रहता है।
देव स्नान : तीर्थ स्थानों और पवित्र नदियों में किए जाने वाले स्नान को देव स्नान कहते हैं। यह स्नान आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक है।
दानव स्नान : सूर्योदय के बाद, खाना-पीना करने के बाद स्नान करने को दानव स्नान कहा गया है। इसे शास्त्रों में अनुचित माना गया है, क्योंकि यह आलस्य और शारीरिक अशुद्धि को बढ़ावा देता है।
गृहस्थ जीवन में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना सबसे उचित माना गया है, क्योंकि यह शारीरिक और मानसिक शुद्धि का माध्यम है।
स्नान करते समय मंत्रों का महत्व
स्नान को आध्यात्मिक प्रक्रिया बनाने के लिए मंत्रों का जप करना अत्यंत प्रभावी होता है। यह न केवल शरीर, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करता है। स्नान के दौरान निम्न मंत्रों का जप किया जा सकता है:
ॐ का जप
नहाते समय केवल "ॐ" का उच्चारण करना अत्यंत लाभकारी है। यह मन को शांत करता है और आंतरिक शक्ति को जागृत करता है।
पवित्र नदियों का स्मरण
स्नान के दौरान निम्न मंत्र का जाप करना भी शुभ माना गया है:
"ॐ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।"
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