18 जून को मनाई जाएगी निर्जला एकादशी, जानें क्या है पौराणिक महत्व, व्रती करें इन नियमों का पालन
By: Karishma Wed, 12 June 2024 11:03:47
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकदशी निर्जला एकादशी कहलाती है। निर्जला एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यह एकादशी साल में एक बार आती है और इसे ज्येष्ठ माह (मई-जून) की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस साल निर्जला एकादशी 18 जून को मनाया जाएगा। निर्जला एकदशी हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण एकादशी व्रतों में से एक है। यह ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत में जल का सेवन नहीं किया जाता, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह त्रयोदशी तिथि में आते हुए "सर्वार्थ सिद्धि योग" और "अमृत सिद्धि योग" का निर्माण कर सकती है, जो अत्यंत शुभ माने जाते हैं।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का महत्व विशेष रूप से इस बात पर है कि इस दिन व्रती व्यक्ति को पूरे दिन बिना जल के रहना पड़ता है। यह एक सख्त व्रत होता है जिसमें भोजन के साथ साथ जल का भी त्याग किया जाता है। इसलिए, इसे "निर्जला" एकादशी कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है "बिना जल के"। निर्जला एकादशी को मनाने से व्रती को आध्यात्मिक उत्थान की अद्वितीय अवस्था प्राप्त होती है। इस व्रत को मनाने से व्यक्ति के मन में संयम, ध्यान, और आत्मसमर्पण की भावना विकसित होती है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से अनेक पापों का नाश होता है और व्रती को आत्मिक ऊर्जा, सामर्थ्य और शक्ति मिलती है। इस दिन का व्रत ब्रह्मांड में निर्जला एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, निर्जला एकादशी का व्रत करने से संसारिक संघर्षों और अपार्थिविक संकटों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति का मानसिक और आध्यात्मिक विकास होता है। इसलिए, निर्जला एकादशी को मनाना धार्मिक दृष्टि से उत्तम माना जाता है।
पूजन विधि और नियम
इस दिन प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।तुलसी के पत्ते, फल, फूल, धूप, दीप, नारियल, पान, सुपारी, और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर के साथ पूजा करें। इस दिन जल भी नहीं पीना चाहिए। फलाहार के रूप में आप फल और दूध का सेवन कर सकते हैं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जाप करें। भगवान को भोग लगाकर प्रसाद वितरित करें।विष्णु भजन और कीर्तन करें।
पौराणिक मान्यता
निर्जला एकादशी के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो महाभारत काल से संबंधित है। यह कथा भीमसेन और राजा युधिष्ठिर के बीच हुई एक घटना पर आधारित है। कथा के अनुसार, महाभारत काल में भीमसेन, पांडवों का एक पुत्र, एकादशी व्रत को बहुत ही श्रद्धापूर्वक मानता था, लेकिन उसके वजह से वह बहुत ज्यादा भूखा हो जाता था। युधिष्ठिर ने उसे सलाह दी कि उसे निर्जला एकादशी का व्रत करना चाहिए, जिसमें वह पूरे दिन बिना जल के रहेगा। भीमसेन को अपने भूखे शरीर के बावजूद भगवान विष्णु की पूजा करने की बहुत श्रद्धा थी, और उसने अपने भाई की सलाह मानकर व्रत किया। इस दिन उसकी भुजा का वजन बड़ा हो गया था। वह भी भूख से अत्यंत परेशान था। तब युधिष्ठिर ने उसे बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से उसे साल भर की सभी एकादशियों का फल मिल जाएगा। इसके बाद भीमसेन ने व्रत को बिना जल के तोड़ा और उसके बाद उसे पूर्ण भोजन मिला। उसे अपने पूर्व के सभी पापों का नाश हो गया और वह सद्गति को प्राप्त हुआ। इस पौराणिक कथा के आधार पर, निर्जला एकादशी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और व्रती को अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, इस व्रत को करने से व्यक्ति को आत्मिक शक्ति, ध्यान, और उत्तम स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
निर्जला एकदशी पर करें यह काम
दिन की शुरुआत में स्नान करें और पवित्र वस्त्र पहनें। इससे आपका मन और शरीर शुद्ध होता है।भगवान विष्णु की पूजा करें और उनका ध्यान करें। विष्णु सहस्त्रनाम या अन्य भजनों का पाठ करें।विष्णु मंत्रों का जप करें और मन्त्र ध्यान में लगें।धार्मिक ग्रंथों को पढ़ें और सत्संग में भाग लें।गरीबों और ब्राह्मणों को दान देकर पुण्य का अधिकार प्राप्त करें। इस दिन आप मेधा और ध्यान का विकास करने के लिए अधिक समय दें, अपने परिवार और समाज की सेवा में अपना योगदान दें। भगवान की स्तुति के लिए भजन-कीर्तन करें और उनका आनंद लें। आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें और आत्मा के उद्धारण के लिए ज्ञान अर्जित करें। आसपास के लोगों की सहायता करें और उनके साथ साझा करें।
निर्जला एकदशी पर भूल कर भी ना करें यह काम
निर्जला एकदशी व्रत का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे ध्यानपूर्वक मनाना चाहिए। यहाँ कुछ ऐसी गलतियाँ हैं जो व्रत के दौरान की जा सकती हैं, इन्हें भूल कर भी नहीं करना चाहिए:
जल का सेवन: निर्जला एकदशी में जल का सेवन करना व्रत का उल्लंघन माना जाता है।
अन्न का सेवन: अन्न का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
अधिक व्यायाम: अधिक शारीरिक व्यायाम करना या थकाने वाले कार्य करना भी व्रत का उल्लंघन हो सकता है।
अशुभ विचारों में रहना: इस दिन नकारात्मक विचारों में रहना और किसी के प्रति असंतोष या क्रोध बच्चा चाहिए।
अनैतिक क्रियाएँ: अनैतिक कार्यों का परिहार किया जाना चाहिए और इस दिन किसी भी प्रकार की अनैतिक क्रिया करने से बचना चाहिए।
इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए, निर्जला एकदशी का व्रत सम्पन्न किया जाना चाहिए। यह एक उत्तम अवसर है अपने आपको आत्मनिर्भर बनाने और भगवान की शरण में समर्पित होने का।