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गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को: गुरु के ध्यान और आशीर्वाद से बनते हैं बड़े काम, वेदव्यास को माना जाता है इस परंपरा का आदिगुरु

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि इस बार 10 जुलाई 2025, गुरुवार को पड़ रही है, जिसे गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाएगा। यह पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु–शिष्य परंपरा का प्रतीक है। यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है

Posts by : Rajesh Bhagtani | Updated on: Tue, 08 July 2025 10:20:38

गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई को: गुरु के ध्यान और आशीर्वाद से बनते हैं बड़े काम, वेदव्यास को माना जाता है इस परंपरा का आदिगुरु

आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि इस बार 10 जुलाई 2025, गुरुवार को पड़ रही है, जिसे गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाएगा। यह पर्व भारतीय संस्कृति में गुरु–शिष्य परंपरा का प्रतीक है। यह दिन महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव के रूप में भी जाना जाता है, जिन्होंने वेदों, पुराणों, महाभारत और श्रीमद्भागवत जैसे अमर ग्रंथों की रचना की।

वेदव्यास: जिनके ज्ञान से संपूर्ण हिंदू धर्म ग्रंथ आकार में आए


महर्षि वेदव्यास का जन्म द्वापर युग में आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। उनके पिता महर्षि पाराशर और माता सत्यवती थीं। वे एक द्वीप पर जन्मे, इसलिए उनका नाम पड़ा — 'कृष्णद्वैपायन'। बाद में उन्होंने चारों वेदों का संकलन, छँटाई और संपादन किया, जिसके कारण उन्हें 'वेदव्यास' कहा गया। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में महाभारत, 18 पुराण, ब्रह्मसूत्र और श्रीमद्भागवत प्रमुख हैं।

वेदव्यास को भगवान विष्णु का अवतार और अष्टचिरंजीवी (अविनाशी संत) माना जाता है। माना जाता है कि वे हर युग में रहते हैं और साक्षात् ब्रह्म ज्ञान के मूर्त स्वरूप हैं।

गुरु के ध्यान से शुरू करें बड़े कार्य


गुरु पूर्णिमा का मूल उद्देश्य अपने आध्यात्मिक, शैक्षणिक या व्यक्तिगत गुरु के प्रति आभार प्रकट करना है। इस दिन शिष्य गुरु का पूजन करके आशीर्वाद लेते हैं। यदि साक्षात गुरु उपलब्ध न हों, तो मानसिक रूप से भी गुरु का ध्यान किया जा सकता है।

शास्त्रों में भी उल्लेख है कि जब भगवान राम, जनकपुर में सीता स्वयंवर में शिव धनुष उठाने जा रहे थे, तब उन्होंने मन ही मन अपने गुरु का स्मरण किया था। उसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए आज भी कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने से पहले गुरु का स्मरण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

वेदव्यास के महान शिष्य

महर्षि वेदव्यास ने ज्ञान की ऐसी धारा बहाई, जिससे अनेक महान ऋषि–मुनि निकले। उनके प्रमुख शिष्यों में शामिल थे:

—पैल

—जैमिन

—वैशम्पायन

—सुमन्तु मुनि

—रोमहर्षण

इन्हीं शिष्यों के माध्यम से वेदों का प्रचार-प्रसार और पुराणों की वाचिक परंपरा आगे बढ़ी। यही नहीं, वेदव्यास की तप शक्ति से ही धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म संभव हो पाया था।

गांधारी को दिया था सौ पुत्रों का वरदान

महाभारत के प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि जब वेदव्यास हस्तिनापुर आए, तब गांधारी ने उनकी श्रद्धा से सेवा की। वेदव्यास इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने गांधारी को सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दे दिया। गर्भवती गांधारी के गर्भ से मांस का एक पिंड निकला, जिसे वेदव्यास ने सौ टुकड़ों में बांटकर घी से भरे पात्रों में रखवाया। समय आने पर उन्हीं पात्रों से कौरवों का जन्म हुआ।

गुरु पूजा की विधि

इस दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें, फिर गुरु के चित्र या चरणों के पास दीप, पुष्प, धूप, फल, मिठाई अर्पित करें। गुरु गीता, गुरु स्तोत्र, गुरु चालीसा या गुरुपादुका स्तोत्र का पाठ करें। यदि आप शारीरिक रूप से गुरु से मिल नहीं पा रहे हैं, तो मानसिक पूजन भी स्वीकार्य है।

गुरु के बिना जीवन अंधकारमय


गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाले गुरु के प्रति आभार प्रकट करने का अवसर है। जैसे सूर्य प्रकाश देता है, वैसे ही गुरु ज्ञान का आलोक देते हैं। इस दिन उन्हें श्रद्धा से स्मरण करें, क्योंकि गुरु की कृपा से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति संभव होती है।

डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक मान्यताओं, पुराणों और शास्त्रों में वर्णित प्रसंगों पर आधारित है। इसमें दी गई जानकारी केवल सामान्य धार्मिक जानकारी हेतु है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी पूजन विधि या परंपरा को अपनाने से पहले योग्य आचार्य या धार्मिक मार्गदर्शक की सलाह अवश्य लें। इस लेख का उद्देश्य किसी विशेष मत या परंपरा का समर्थन या विरोध नहीं है।



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