
सावन का महीना, जो 11 जुलाई से शुरू हो रहा है, भगवान शिव के भक्तों के लिए केवल एक पंचांग तिथि नहीं, बल्कि आस्था और प्रेम का पर्व है। इस महीने में जब कांवड़िए दूर-दराज से शिवालयों में जल चढ़ाने निकलते हैं, तो हर कदम पर उनकी श्रद्धा झलकती है। इसी पुण्य अवसर पर बात करते हैं भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम और अत्यंत पवित्र घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की, जिसकी कथा न सिर्फ अद्भुत है, बल्कि हर भक्त को आस्था की गहराई में डुबो देती है।
महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के वेरुल गांव में स्थित इस मंदिर को घुश्मेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी कथा भगवान शिव की परम भक्त घुश्मा से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की अनोखी कथा
शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार, देवगिरि पर्वत के पास, एक धर्मपरायण ब्राह्मण सुधर्मा अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहते थे। संतान सुख न होने के कारण पड़ोसियों के तानों से आहत सुदेहा ने अपने पति का विवाह अपनी छोटी बहन घुश्मा से करवा दिया। घुश्मा भगवान शिव की अनन्य भक्त थीं। वे प्रतिदिन 101 पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करतीं और उन्हें समीप स्थित सरोवर में विसर्जित कर देती थीं।
भगवान शिव की कृपा से घुश्मा को एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिससे पूरा परिवार आनंदित हुआ। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, सुदेहा के मन में जलन घर कर गई। उसे लगा कि सुधर्मा का स्नेह अब उसकी बहन की ओर झुक गया है। इस सौतिया डाह में वह इतनी अंधी हो गई कि उसने घुश्मा के पुत्र की हत्या कर शव को सरोवर में फेंक दिया।
घुश्मा की भक्ति और धैर्य ने रच दिया इतिहास
सुबह जब बहू ने अपने पति की रक्तरंजित शैय्या देखी, तो रोती हुई दोनों सासों को बुलाया। सुदेहा ने विलाप करना शुरू किया, लेकिन दूसरी ओर, घुश्मा शिव पूजन में लीन थीं। उन्होंने घर के मातम, रोते-बिलखते परिजन और पुत्र के शव को देखकर भी अपने मन को विचलित नहीं होने दिया। वह उसी श्रद्धा और शांति से पूजा करती रहीं।
फिर जैसे ही उन्होंने रोज की भांति शिवलिंगों का विसर्जन किया, पीछे से किसी ने पुकारा – "माँ!" ये आवाज उनके मृत समझे गए पुत्र की थी। पूरा परिवार स्तब्ध था। घुश्मा ने इस चमत्कार को भी भोलेनाथ की इच्छा मानकर नतमस्तक हो प्रार्थना की।
भगवान शिव का प्रकट होना और घुश्मा को दिया वरदान
आकाशवाणी हुई – "हे घुश्मा! तेरी सौत सुदेहा दुष्टा है, उसने तेरे पुत्र को मारा है, अब मैं उसका विनाश करूंगा।" लेकिन घुश्मा ने स्तुति करते हुए कहा – "प्रभु! मेरी बहन को क्षमा करें, उसकी बुद्धि निर्मल कर दें। आपके दर्शन मात्र से ही पाप नष्ट हो जाते हैं। उसे भी इस पुण्य का लाभ मिले।"
शिव प्रसन्न हुए और प्रकट होकर बोले – "हे घुश्मा! मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं। आज से इस स्थान पर मैं घृष्णेश्वर के नाम से वास करूंगा। यह सरोवर शिवलिंगों का आलय कहलाएगा और तुम्हारे नाम से अमर रहेगा।"
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से प्राप्त होते हैं अद्भुत फल
शिवपुराण के अनुसार, घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से भक्त सभी पापों से मुक्त हो जाता है। उसे जीवन में भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से, जो भी भक्त यहां संतान प्राप्ति की इच्छा लेकर आता है, उसकी कामना भगवान शिव अवश्य पूरी करते हैं।














