
हमारे रोजमर्रा के जीवन में कई बार ऐसा होता है जब कोई शुभ घटना घटने पर या अपनी तरक्की का जिक्र करते हुए लोग अचानक कहते हैं – “टच वुड!” और पास पड़ी लकड़ी को छू लेते हैं। कई लोग इसे किसी अंधविश्वास से जोड़ते हैं, लेकिन असल में यह प्रथा किसी टोने-टोटके से नहीं, बल्कि बहुत पुरानी सभ्यताओं की मान्यताओं से जुड़ी हुई है।
भारत में तो नजर से बचने के लिए लोग नींबू-मिर्ची टांगते हैं, काले धागे बांधते हैं या मजाक में खुद पर थूकने का अभिनय भी कर लेते हैं। वहीं, पश्चिमी देशों में शुभता और सुरक्षा के लिए “Touch Wood” कहने की परंपरा रही है। आइए जानते हैं, आखिर इस अंग्रेजी वाक्यांश का असली इतिहास क्या है और इसे कहने की शुरुआत कहां से हुई थी।
‘टच वुड’ शब्द की जड़ें कितनी गहरी हैं?
इतिहासकारों के मुताबिक “टच वुड” शब्द का उद्गम प्राचीन पगान सभ्यताओं से हुआ। उस दौर में सेल्टिक लोग मानते थे कि पेड़ों में देवताएं और आत्माएं निवास करती हैं। जब कोई व्यक्ति पेड़ को छूता था, तो वह उन दैवीय शक्तियों से जुड़ने या अपनी अच्छी किस्मत को बुरी आत्माओं से बचाने की कोशिश करता था।
लकड़ी को छूना उनके लिए किसी प्रार्थना, धन्यवाद या सुरक्षा का प्रतीक माना जाता था। यानी यह केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के बीच आध्यात्मिक संबंध का प्रतीक थी।
ईसाई धर्म से भी है जुड़ाव
कई इतिहासकारों का मानना है कि “टच वुड” की परंपरा कैथोलिक ईसाई मान्यताओं से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि ईसा मसीह के क्रूस जिस लकड़ी पर बनाए गए थे, उसे “पवित्र लकड़ी” (Holy Wood) माना जाता था। लोगों का विश्वास था कि उस लकड़ी को छूने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है।
धीरे-धीरे यह परंपरा यूरोप के अन्य हिस्सों में फैल गई और “टच वुड” कहना एक आम वाक्यांश बन गया, जो आज भी सौभाग्य और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल होता है।
लकड़ी ही क्यों मानी गई शुभ?
पुराने समय में पेड़ जीवन, विकास और स्थिरता के प्रतीक माने जाते थे। माना जाता था कि लकड़ी को छूने से व्यक्ति के भीतर की सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है, जो उसे नकारात्मक शक्तियों से बचाती है। यह आदत मनुष्य के प्रकृति के प्रति सम्मान और आभार की भावना को भी दर्शाती है।
विशेषज्ञों की राय
ब्रिटिश लोककथाकार स्टीव राउड ने अपनी किताब ‘The Lore of the Playground’ में “टच वुड” शब्द की उत्पत्ति का दिलचस्प उल्लेख किया है। उनके अनुसार 19वीं सदी में “टिगी टचवुड” नामक एक लोकप्रिय खेल था, जिसमें अगर कोई बच्चा लकड़ी को छू लेता था, तो वह खेल में “आउट” होने से बच जाता था। यह नियम इस वाक्यांश के प्रति लोगों की आस्था को मजबूत करता गया।
हालांकि, इतिहासकारों में इस बात पर अभी भी मतभेद हैं कि “टच वुड” की उत्पत्ति कहां से हुई। लेकिन इतना तय है कि यह परंपरा नकारात्मकता से सुरक्षा और सकारात्मक ऊर्जा की प्रतीक रही है।














