
आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी है, जिसे बैकुंठ चतुर्दशी या बैकुंठ चौदस कहा जाता है। हिंदू धर्म में यह दिन हरि (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शिव) की संयुक्त उपासना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन विधिवत पूजा करने से पापों का नाश होता है, जीवन से दुख दूर होते हैं और घर में समृद्धि का वास होता है।
काशी (वाराणसी) में इस पर्व का विशेष महत्व है। बाबा विश्वनाथ मंदिर में आज के दिन पारंपरिक रूप से भव्य पूजन और महाआरती का आयोजन किया जाता है। भक्त प्रातःकाल मणिकर्णिका घाट पर पवित्र स्नान कर पूजा की तैयारी करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा रात्रि के निशीथकाल में तथा भगवान शिव की आराधना अरुणोदय काल यानी सूर्योदय से पहले की जाती है। इस दिन शिवजी को तुलसी और विष्णुजी को बेलपत्र अर्पित करने की परंपरा है, जो हरि–हर एकता का प्रतीक मानी जाती है।
शुभ मुहूर्त
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 4 नवंबर सुबह 2:05 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 4 नवंबर रात 10:36 बजे
निशीथकाल पूजा मुहूर्त: 5 नवंबर रात 11:39 से 12:31 बजे तक
कुल लगभग 52 मिनट इस विशेष पूजन के लिए अत्यंत शुभ माने गए हैं।
पूजा सामग्री
साफ वस्त्र
कमल या गेंदा के फूल
तुलसी और बेलपत्र
घी का दीपक व धूप
शुद्ध जल या गंगाजल
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल)
खीर, फल या मिठाई
अक्षत, शंख और घंटी
🙏 पूजा विधि
प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
घर या मंदिर के पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
भगवान विष्णु और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पहले भगवान विष्णु का पूजन करें, तत्पश्चात भगवान शिव का।
इस भावना के साथ पूजा करें कि हरि और हर एक-दूसरे की आराधना कर रहे हैं — शिवजी विष्णुजी को तुलसी अर्पित करते हैं और विष्णुजी शिवजी को बेलपत्र।
अंत में दीप जलाकर आरती करें और नैवेद्य (भोग) अर्पित करें।
विशेष उपाय
इस दिन घर के बाहर दीपक जलाना अत्यंत शुभ होता है।
कई भक्त 365 बत्तियों वाला दीप प्रज्ज्वलित करते हैं, जिससे पूरे वर्ष सुख-शांति बनी रहती है।
विष्णु मंत्र: “ॐ नमो नारायणाय नमः।”
शिव मंत्र: “ॐ नमः शिवाय।”
बैकुंठ चतुर्दशी की पौराणिक कथा
कथानुसार, जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागे, तो वे काशी पहुंचे और भगवान शिव की आराधना का संकल्प लिया। उन्होंने वचन दिया कि वे महादेव को 1000 कमल फूल अर्पित करेंगे। पूजा के दौरान जब एक कमल कम पड़ गया, तो भगवान विष्णु ने बिना हिचक अपने कमल समान नेत्र को निकालकर अर्पित कर दिया।
भगवान विष्णु की इस अद्भुत भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनकी आंख वापस कर दी और उन्हें सुदर्शन चक्र का वरदान प्रदान किया। यह दिव्य घटना कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन ही घटी थी, इसलिए यह तिथि “बैकुंठ चतुर्दशी” के नाम से प्रसिद्ध हुई।














