पापों से मुक्ति दिलाता हैं अजा एकादशी का व्रत, जानें इसका महत्व, पूजा विधि और कथा
By: Ankur Mundra Thu, 02 Sept 2021 08:40:48
कल 3 सितंबर, शुक्रवार को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि हैं जिसे अजा एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। सालभर में करीब 24 एकादशी तो आती ही हैं और सभी का अपना महत्व होता हैं। लेकिन अजा एकादशी का विशेष महत्व माना गया हैं जिसे करने से ना सिर्फ सभी पापों से मुक्ति मिलती हैं बल्कि कष्टों का निवारण भी हो जाता हैं। इस दिन सभी भगवान विष्णु के प्रति आस्था दिखाते हुए व्रत रखते हैं। इस व्रत का पूरा लाभ मिल सके इसलिए आज हम आपको व्रत के महत्व, पूजा विधि और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
अजा एकादशी व्रत का महत्व
सनातन परंपरा में अजा एकादशी को भक्ति और पुण्य कार्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। श्रीकृष्ण ने बताया है कि अजा एकादशी का व्रत करने से सभी पाप और कष्ट से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद इंसान को मोक्ष की प्राप्ति होती है। जितना पुण्य हजारों वर्षों की तपस्या से मिलता है, उतना पुण्य फल सच्चे मन से इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु का प्रिय व्रत है और कृष्ण जन्माष्टमी के बाद यह पहली एकादशी है। इस दिन नारायण कवच और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। साथ ही दान-तर्पण और विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए।
अजा एकादशी व्रत पूजा विधि
अजा एकादशी का व्रत करने वाले जातक ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य क्रिया से निपटने के बाद भगवान विष्णु का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। पूजा से पहले घट स्थापना की जाती है, जिसमें घड़े पर लाल रंग का वस्त्र सजाया जाता है और उसकी पूजा की जाती है। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें और गंगाजल से चारों तरफ छिड़काव करें। इसके बाद रोली का टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें। इसके बाद भगवान को पीले फूल अर्पित करें और व्रत कथा का पाठ करें। साथ ही विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकते हैं। फिर घी में थोड़ी हल्दी मिलाकर भगवान विष्णु की आरती करें। जया एकादशी के दिन पीपल के पत्ते पर दूध और केसर से बनी मिठाई रखकर भगवान को अर्पित करें। इस दिन दान का भी विशेष महत्व बताया है। एकादशी के व्रत धारी पूरे दिन भगवान का ध्यान लगाएं और शाम के समय आरती करने के बाद फलाहार कर लें। अगले दिन भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद गरीब व जरूरतमंद को भोजन कराएं और फिर स्वयं व्रत का पारण करें।
अजा एकादशी व्रत कथा
राजा हरिश्चंद्र को तो सब जानते हैं। सतयुग में जब देवताओं ने राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा ली तो उन्होंने सपने में अपने वचन के खातिर संपूर्ण राज्य ऋषि विश्वामित्र को दान में दे दिया। अगली सुबह विश्वामित्र राजा से पांच सौ स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी तब राजा ने कहा कि आप जितना चाहे ले सकते हैं, तब विश्वामित्र कहा कि आप तो पहले से ही मुझे सब कुछ दे चुके हैं और फिर आप दान की हुई चीज को फिर से दान कैसे दे सकते हैं। तब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी और पुत्र को गिरवी रख दिया और स्वयं को दास के रूप में एक चांडाल के यहां काम करने लग गए। विष्णु भक्त हरिशचंद्र तमाम कष्टों के बाद भी धर्म का रास्ता नहीं छोड़ा।
एक दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को राजा के पूरे परिवार ने कुछ खाया नहीं था और वे वैसे भी हरि नाम लेते रहते थे और उस दिन भी हरि नाम संकीर्तन कर रहे थे और श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। तभी उन्होंने देखा कि राजा की पत्नी अपने बेटे रोहिताश्व का मृत शरीर हाथों रोते हुए श्मशान की तरफ चली आ रही है। इस पर राजा ने अपने पुत्र का दाह संस्कार करने के लिए पत्नी से पैसे मांगे क्योंकि राजा चांडाल के सेवक थे और उन्हें अपने मालिक से आज्ञा प्राप्त थी कि जो भी अंतिम संस्कार कराने आएगा, उससे कुछ न कुछ शुल्क अवश्य लिया जाएगा। लेकिन रानी के पास देने को कुछ नहीं था तो उन्होंने साड़ी का टुकड़ा फाड़कर दे दी। राजा के कर्तव्य परायणता को देखकर भगवान बहुत प्रसन्न हुए और उनके पुत्र को जीवित कर दिया और सारा राजपाट वापस लौटा दिया। इस प्रकार अजा एकादशी का व्रत करने से राजा हरिश्चंद्र के सभी दुखों का अंत हुआ।
(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। lifeberrys हिंदी इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन पर अमल करने से पहले विशेषज्ञ से संपर्क जरुर करें।)