Chaitra Navratri Festival 2018 - अनोखा माँ का मंदिर, दूर होते हैं आँखों के रोग

चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन माँ दुर्गा के स्वरुप माँ कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता हैं। माँ कुष्मांडा अपने भक्तों के विकार हरने के लिए जानी जाती हैं। माँ कुष्मांडा का कानपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लाक में मंदिर हैं जहां नवरात्रा के दिनों में मेला लगता हैं। माता अपने भक्तों के दुखों को दूर करती हैं, ओर इस मंदिर में माता की मूर्ती से निकला जल नेत्र के सभी विकारों को दूर करने के लिए जाना जाता हैं। तो आइये जानते हैं माता रानी के इस मंदिर के बारे में।
कानपुर शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर घाटमपुर ब्लाक में मां कुष्मांडा देवी का करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर हैl मां कुष्मांडा देवी इस प्राचीन व भव्य मंदिर में लेटी हुई मुद्रा में है। यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हैं, जिससे लगातर पानी रिसता रहता हैl माना जाता है कि मां की पूजा-अर्चना के पश्चात प्रतिमा से जल लेकर ग्रहण करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। इस जल को नेत्रों में लगाने से सारे नेत्र रोग दूर होते हैं। आज तक वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए कि ये जल कहां से आता है।

नवरात्रों में मां के मंदिर में मेला लगता है। माता के मंदिर कोई पंड़ित पूजा नहीं करवाता। यहां नवरात्रे हो या अन्य दिन सिर्फ माली ही पूजा-अर्चना करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त यहां माता को चुनरी, ध्वजा, नारियल और घंटा चढ़ाने के साथ ही भीगे चने अर्पण करते हैं।

कहा जाता है कि यहां पहले घना जंगल था। इसी गांव का कुड़हा नामक ग्वाला गाएं चराने जाता था। शाम के समय जब वह दूध निकालने जाता तो गाय एक बूंद भी दूध नहीं देती। ग्वाले ने इस बात की निगरानी की। रात में ग्वाले को मां ने स्वप्न में दर्शन दिए। वह गाय को लेकर गया तभी एक स्थान पर गाय के आंचल से दूध की धारा निकलने लगी। ग्वाले ने उस स्थान की खुदवाई करवाई। वहां मां कूष्मांडा देवी की पिंडी निकली। गांव वालों ने उसी स्थान पर मां की पिंडी स्थापित कर दी अौर उसमें से निकलने वाले जल को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने लगे। चरवाहे कुड़हा के नाम पर मां कूष्मांडा का एक नाम कुड़हा देवी भी है। स्थानीय लोग मां को इसी नाम से पुकारते हैं।

मंदिर में मां कूष्मांडा की अखंड ज्योति निरंतर प्रज्वलित हो रही है। यहां रिसने वाले जल के ग्रहण से सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं। सूर्योदय से पूर्व नहा कर 6 माह तक इस जल का प्रयोग किया जाए तो उसकी बीमारी शत प्रतिशत ठीक हो जाएगी। कहा जाता है कि इसके लिए बहुत नियम की जरूरत होती हैl मंदिर के समीप ही दो तालाब बने हुए हैं। यह तालाब कभी नहीं सुखते हैं। भक्त एक तालाब में स्नान करने के पश्चात दूसरे कुंड से जल लेकर माता को अर्पित करते हैं।