राष्ट्रपति का पद देश का सबसे बड़ा पद होता हैं जिन्हें देश का प्रथम व्यक्ति भी कहा जाता हैं। राष्ट्रपति को पद की जिम्मेदारी के साथ कई सुविधाएं भी मिलती है जिसमें से एक हैं रॉयल बग्घी जिसका इस्तेमाल आजादी के बाद से राष्ट्रपति द्वारा खास मौको पर किया जाता हैं। आजादी से पहले देश के वायसराय इसकी सवारी किया करते थे। पहली बार इस बग्घी का इस्तेमाल भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र डॉ. प्रसाद ने गणतंत्र दिवस के मौके पर किया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस बग्घी से जुड़ा इतिहास बेहद रोचक हैं और भारत ने टॉस जीतकर इसे पाकिस्तान से जीता था।
1947 में भारत और पाकिस्तान में जमीन से लेकर सेना तक हर चीज का बंटवारा हुआ। इस बंटवारे में से एक 'गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स' रेजीमेंट भी थी। इस रेजीमेंट का बंटवारा तो शांतिपूर्वक हो गया, मगर रेजिमेंट की मशहूर बग्घी को लेकर दोनों पक्षों के बीच बात नहीं बन पाई। दरअसल दोनों देश इसे अपने पास रखना चाहते थे, ऐसे में तत्कालीन 'गवर्नर जनरल्स बॉडीगार्ड्स' के कमांडेंट और उनके डिप्टी ने इस विवाद को सुलझाने के लिए एक सिक्के का सहारा लिया। टॉस भारत ने जीता और इस तरह की रॉयल बग्घी भारत के हिस्से में आई।शुरुआती सालों में भारत के राष्ट्रपति सभी सेरेमनी में इसी बग्घी से जाते थे और साथ ही 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन के आसपास भी इसी से चलते थे। धीरे-धीरे सुरक्षा कारणों से इसका इस्तेमाल कम हो गया। लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब इसका इस्तेमाल बंद हो गया था क्योंकि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए राष्ट्रपति बुलेटप्रूफ गाड़ीयो में आने लगे।
हालांकि, 2014 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार फिर बग्घी का इस्तेमाल किया। एक बार फिर से बग्घी के इस्तेमाल की परंपरा शुरू हो गई। प्रणब मुखर्जी बीटिंग रिट्रीट कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसी बग्घी में पहुंचे थे। इसके बाद से अब निरंतर इस प्रकिया को निर्वाह किया जा रहा है। वहीं इस बग्घी को खीचने के लिए खास घोड़े चुने जाते हैं। उस समय 6 ऑस्ट्रेलियाई घोड़े इसे खींचा करते थे लेकिन अब इसमें चार घोड़ों का ही इस्तेमाल किया जाता है।