नई दिल्ली। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को उपसभापति ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह प्रस्ताव उपराष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए लाया गया था। विस्तृत आदेश में उपसभापति हरिवंश ने प्रस्ताव को त्रुटिपूर्ण बताया और कहा कि यह प्रस्ताव सभापति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए जल्दबाजी में लाया गया था।
कम से कम 60 विपक्षी सदस्यों ने 10 दिसंबर को धनखड़ को उनके पद से हटाने के लिए नोटिस पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्हें उन पर भरोसा नहीं है और वह पक्षपाती हैं।
उपसभापति ने कहा कि इस व्यक्तिगत रूप से लक्षित नोटिस की गंभीरता तथ्यों से परे है तथा इसका उद्देश्य प्रचार प्राप्त करना है।
हरिवंश ने अस्वीकृति के कारणों की व्याख्या करते हुए कहा कि इस तरह के प्रस्ताव को पेश करने के लिए आवश्यक 14 दिन का नोटिस नहीं दिया गया था। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि नोटिस में धनखड़ का नाम गलत लिखा गया था।
राज्यसभा के महासचिव पी.सी. मोदी द्वारा सदन में प्रस्तुत अपने फैसले में उपसभापति ने कहा कि महाभियोग नोटिस देश की संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने तथा वर्तमान उपराष्ट्रपति की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए जानबूझकर किए गए प्रयास का हिस्सा है।
संविधान के अनुच्छेद 67(बी) के तहत प्रस्तुत इस प्रस्ताव का समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और आप ने समर्थन किया, जिसके कारण संसद के उच्च सदन में हंगामा हुआ।
राज्यसभा के इतिहास में पहली बार सभापति को हटाने का प्रस्ताव पेश किया गया। इंडिया ब्लॉक ने सभापति धनखड़ पर पक्षपातपूर्ण तरीके से काम करने का आरोप लगाया, यह चिंता संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान और बढ़ गई। 25 नवंबर को शुरू हुए इस सत्र में विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के बीच लगातार टकराव देखने को मिला है। उन्होंने यह भी कहा कि यह नोटिस सबसे बड़े लोकतंत्र के उपराष्ट्रपति के उच्च संवैधानिक पद को जानबूझकर महत्वहीन और अपमानित करने का दुर्व्यवहार है। संसद और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा के लिए चिंताजनक बात यह है कि यह नोटिस केवल मौजूदा उपराष्ट्रपति को बदनाम करने के लिए किए गए दावों से भरा हुआ है। अध्यक्ष धनखड़ द्वारा खुद को इस नोटिस से अलग करने के बाद उपसभापति को इस नोटिस से निपटने का जिम्मा सौंपा गया था।