उत्तर प्रदेश: पोस्टमार्टम की नई गाइडलाइंस जारी, अब दुख की घड़ी में परिजनों को नहीं करना पड़ेगा लंबा इंतजार

उत्तर प्रदेश में अब पोस्टमार्टम के लिए पीड़ित परिवारों को घंटों तक शव के इंतजार की पीड़ा नहीं झेलनी पड़ेगी। डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने संवेदनशीलता दिखाते हुए निर्देश जारी किए हैं कि पोस्टमार्टम अधिकतम चार घंटे के भीतर पूरा किया जाए, जिससे शोकग्रस्त परिवारों को कुछ राहत मिल सके। इसी के तहत स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने प्रदेशभर के सभी पोस्टमार्टम हाउस में नई गाइडलाइंस लागू कर दी हैं।

अब जिन जिलों में पोस्टमार्टम की संख्या अधिक है, वहां सीएमओ को निर्देश दिए गए हैं कि वे दो या अधिक डॉक्टरों की टीमें बनाकर कार्य जल्द से जल्द निपटाएं। यह कदम इसलिए उठाया गया है ताकि अंतिम संस्कार के लिए शव का इंतजार न बढ़े। डिप्टी सीएम ने स्पष्ट किया कि सूर्यास्त के बाद नियमानुसार पोस्टमार्टम हो, लेकिन यदि रात में करने की जरूरत हो तो 1000 वॉट की कृत्रिम लाइट, सभी जरूरी उपकरण और स्टाफ की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि प्रक्रिया बिना रुकावट 24 घंटे चल सके।

संवेदनशील मामलों—जैसे हत्या, आत्महत्या, यौन अपराध, क्षत-विक्षत शव या संदिग्ध मृत्यु—में रात में पोस्टमार्टम आमतौर पर न हो, सिवाय अपरिहार्य स्थिति के। यदि मजबूरी हो तो जिला मजिस्ट्रेट या उनके प्रतिनिधि की अनुमति आवश्यक होगी।

वीडियोग्राफी अनिवार्य लेकिन परिवार से पैसा नहीं लिया जाएगा

ऐसे मामलों में, खासकर पुलिस एनकाउंटर, हिरासत में मौत, या विवाह के शुरुआती 10 वर्षों में महिला की मृत्यु जैसी घटनाओं में पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी। शासन ने सख्ती से कहा है कि इसका खर्च पीड़ित परिवार से नहीं लिया जाएगा, बल्कि रोगी कल्याण समिति या अन्य सरकारी स्रोतों से वहन किया जाएगा।

डीएनए सैंपलिंग और तकनीकी पारदर्शिता पर जोर

अज्ञात शवों की पहचान के लिए डीएनए सैंपलिंग कराई जाएगी और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट ऑनलाइन उपलब्ध कराई जाएगी। किसी भी स्तर पर लापरवाही नहीं बरती जाएगी। पोस्टमार्टम हाउस में एक कंप्यूटर ऑपरेटर और दो डाटा एंट्री ऑपरेटर की तैनाती की जाएगी। शव को अस्पताल से पोस्टमार्टम हाउस तक पहुंचाने के लिए वाहन उपलब्ध होंगे—हर जिले में कम से कम दो शव वाहन का प्रबंध किया जाएगा।

महिला संबंधित अपराधों में विशेष ध्यान देते हुए यह अनिवार्य किया गया है कि ऐसे मामलों के पोस्टमार्टम पैनल में कम से कम एक महिला डॉक्टर की मौजूदगी हो। इस पूरी पहल का मकसद यही है कि अंतिम विदाई से पहले परिवार की पीड़ा को कम किया जा सके।