राफेल सौदे पर लीक रिपोर्ट की गूंज शुक्रवार को संसद में भी सुनाई पड़ी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को जवाब देने के लिए आगे आना पड़ा। रक्षा मंत्री ने कहा कि कांग्रेस को इस मामले में हंगामा करने की जगह उसे यह देखना चाहिए कि उसके तत्कालीन रक्षा मंत्री ने क्या कहा था। बता दें कि राफेल सौदे पर 'इंटरनल नोट' लीक होने पर राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला है। राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि पीएम मोदी PM Modi) फ्रांस से सीधे डील कर रहे थे। उन्होंने कहा कि पीएम ने देश की वायुसेना के हितों के साथ समझौता किया। राहुल (Rahul Gandhi) ने प्रधानमंत्री पर एयर फोर्स को 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाकर अनिल अंबानी को इसका फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया। वहीं सरकार ने आरोप लगाया कि विपक्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों और निहित स्वार्थ से जुड़े तत्वों के हाथों में खेल रहा है और उसका प्रयास गड़े मुर्दे उखाड़ने जैसा है। आपको अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक रक्षा मंत्रालय तो सौदे को लेकर बातचीत कर ही रहा था, उसी दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय भी अपनी ओर से फ्रांसीसी पक्ष से 'समांतर बातचीत' में लगा था।
अखबार के मुताबिक 24 नवंबर 2015 को रक्षा मंत्रालय के एक नोट में कहा गया कि PMO के दखल के चलते बातचीत कर रहे भारतीय दल और रक्षा मंत्रालय की पोज़िशन कमज़ोर हुई। रक्षा मंत्रालय ने अपने नोट में तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का ध्यान खींचते हुए कहा था कि हम PMO को ये सलाह दे सकते हैं कि कोई भी अधिकारी जो बातचीत कर रहे भारतीय टीम का हिस्सा नहीं है उसे समानांतर बातचीत नहीं करने को कहा जाए।
इस रिपोर्ट के आधार पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की ओर सीधे पीएम मोदी पर आरोप लगाया कि उन्होंने इसमें घोटाला किया है। इस रिपोर्ट पर सदन में भी हंगामा हुआ। रक्षा मंत्री ने समाचार पत्र की रिपोर्ट पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि समाचार पत्र को अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन रक्षा मंत्री की राय भी लेनी चाहिए थी। रक्षा मंत्री ने कहा कि समाचार पत्र ने रिपोर्ट के लिए 'सेलेक्टिव तरीका' अपनाया है।
दूसरी ओर समाचार एजेंसी ANI की पहुंच उस दस्तावेज़ तक बनी है, जिसमें तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने रक्षा मंत्रालय के राफेल सौदे से जुड़े असंतुष्टि नोट पर जवाब दिया था - "रक्षा सचिव (जी मोहन) को प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव से सलाह-मशविरा कर इस मुद्दे को हल करना चाहिए।" पूर्व रक्षा सचिव जी। मोहन कुमार ने भी बयान दिया है कि राफेल की कीमत को लेकर रक्षा मंत्रालय ने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। इसी तरह के एक जवाब में मनोहर पर्रिकर ने कहा, ऐसा लगता है कि बैठक के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय और फ्रांस के राष्ट्रपति का ऑफिस सीधे इस मामले में नजर रख रहा है। 5वें अनुच्छेद में लिखी गई जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया है।