भारत की पहली महिला WWE पहलवान कविता देवी

कविता देवी भारत की पहली महिला पहलवान हैं जिन्होंने वर्ल्ड रेसलिंग एंटेरटेनमेंट यानी WWE की रेसलिंग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लिया। शोहरत अब मिली है लेकिन एक वक़्त था जब उनके और खेल के बीच इतनी दूरी आई कि इन्होंने अपनी ज़िंदगी खत्म करनी चाही।

34 साल की कविता देवी वेटलिफ्टिंग में स्वर्ण पदक विजेता रह चुकी हैं और अब एक प्रोफ़ेशनल रेसलर हैं। शुरुआत वेटलिफ्टिंग से हुई। सालों तक वेटलिफ्टिंग के साथ जुड़ी रहीं। उसके बाद इनकी शादी हुई और फिर बच्चा। जैसे-जैसे ज़िंदगी आगे बढ़ी खेल और इनके बीच एक दूरी-सी आ गई।

कविता ने बताया, "शादी और बच्चे के बाद मुझे बोला गया था कि मैं खेल छोड़ दूं। ऐसा भी वक़्त आया जब मुझे ज़िंदगी और मौत के बीच चुनना था। मैंने अपनी जान देने की कोशिश की क्योंकि मेरा खेल का करियर लगभग ख़त्म था। एक तो ये समझा जाता है कि आप शादी के बाद घर संभालो। हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है। अगर कोई औरत कामयाब होती है तो कभी-कभी उसका पति भी ये बर्दाश्त नहीं कर पाता।" कविता ख़ुद को रिंग से दूर नहीं रख पाईं। आख़िरकार उन्होंने अपने परिवार को मनाया और एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद इनकी रूचि रेसलिंग में बढ़ी।

अब एक किसान की बेटी कविता देवी वर्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट यानी WWE में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भाग लेने वाली पहली महिला रेसलर बन गई हैं। रिंग में लड़ाई सूट-सलवार में लड़ी और तस्वीरें वायरल हुईं। अब वो कॉन्ट्रैक्ट साइन करने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बन गई हैं। फिलहाल वो 'द ग्रेट खली' की अकादमी में ट्रेनिंग ले रही हैं।

महिला खिलाड़ियों की एक लड़ाई रिंग मे होती है तो रिंग के बाहर लोगों से और उनकी सोच से। कविता बताती हैं कि उनके कुछ रिश्तेदारों ने कहा कि लड़कियों को खेल में नहीं जाना चाहिए। लेकिन खेल में अगर कामयाब होना है तो फोकस ज़रूरी होता है।

कविता ने बताया, "जब मैं उस रिंग में होती हूं तो मैं भूल जाती हूं कि मेरा एक परिवार है या एक बच्चा। तब सिर्फ़ ये खेल होता है और मैं।" खली भी मानते हैं कि अभी भी लोग महिलाओं को खेल में जाने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते, "हमारा समाज ऐसा है कि यहां औरतों पर दबाव बनाया जाता है। अगर कोई लड़की कुछ अलग करना भी चाहे तो काफ़ी मुश्किलें पेश की जाती हैं। घरवाले दिक्कतें पैदा करते हैं। मानसिक तौर पर उन्हें हराया जाता है।"

लेकिन लड़कियां सारे बंधन तोड़कर रिंग में आ रही हैं। खली की अकादमी में ट्रेनिंग ले रहीं रितिका राज कर्नाटक से जालंधर आईं। अब वो 'द ग्रेट खली' की अकादमी में ट्रेनिंग ले रही हैं। रितिका ने बताया ,"मेरी मां ने हमेशा मेरा साथ दिया। मैं ये अपने पिता और भाई के बारे में ऐसा नहीं कह सकती क्योंकि उन्हें लगता था कि रेसलिंग सिर्फ़ लड़कों के लिए होती है।"

इंदोर की दिव्या आले लंदन गईं और वापिस आई रेसलिंग के खातिर, "मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं लड़कों को भी हरा सकती हूं। मैं ताकतवर हूं।" राजस्थान की सन्नी जाट कहती हैं, "लड़कियों से कहा जाता है कि घर में रहो। तो मैंने ये साबित कर दिया कि लड़कियां, लड़कों से कम नहीं हैं।"

कविता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सूट-सलवार पहनकर रेसलिंग की। कविता ने बताया, "मैंने सूट इसलिए पहना ताकि बाकी लड़कियों को किसी तरह की हिचक ना हो कपड़ों को लेकर। साथ ही मैं अपनी संस्कृति को भी दर्शाना चाहती थी।"

ये सब इतना आसान नहीं है कविता के लिए। उन्हें ट्रेनिंग के लिए महीनों अपने परिवार से दूर रहना होता है। पुलिस में काम कर चुकीं कविता अब WWE का ख़िताब जीतना चाहती हैं। सभी चुनौतियों से निपटने के लिए कविता की अराधना जारी है।