चन्द्रयान-2 : इस मिशन से जुड़ी प्रमुख बातें जो आपके लिए जानना बेहद जरुरी

चन्द्रयान-2 (Chandrayaan-2) को आंध्र प्रदेश के श्रीहरीकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन पर पूरी दुनिया की नजर है। इसके सफल होने पर अंतरिक्ष की दुनिया में भारत एक नया कीर्तिमान हासिल करेगा। इस मिशन की ख़ास बात ये है कि ये चंद्रयान उस जगह पर जाएगा जहां अब तक कोई देश नहीं गया है। चंद्रयान चांद के दक्षिणी धुव्र पर उतरेगा। इस इलाक़े से जुड़े जोखिमों के कारण कोई भी अंतरिक्ष एजेंसी वहां नहीं उतरी है। अधिकांश मिशन भूमध्यरेखीय क्षेत्र में गए हैं जहां दक्षिण धुव्र की तुलना में सपाट जमीन है। वहीं, दक्षिणी ध्रुव ज्वालमुखियों और उबड़-खाबड़ जमीन से भरा हुआ है और यहां उतरना जोखिम भरा है। इसरो ने चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले लैंडर मॉड्यूल का नाम अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा है। यह दो मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। चन्द्रयान-2 (Chandrayaan-2) पृथ्वी की कक्षा में यह 16 दिनों तक घूमता रहेगा। 21 दिनों बाद यह चंद्रमा की कक्ष में पहुंच जाएगा। 27 दिनों तक चांद की कक्षा में चक्कर काटने के बाद यह वहां लैंड करेगा। आइये इस मिशन को लेकर कुछ प्रमुख बातों को जानते हैं...

- चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) का ऑर्बिटर चांद से 100 किमी ऊपर चक्कर लगाते हुए लैंडर और रोवर से प्राप्त जानकारी को इसरो सेंटर पर भेजेगा। इसमें 8 पेलोड हैं। साथ ही इसरो से भेजे गए कमांड को लैंडर और रोवर तक पहुंचाएगा। इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने बनाकर 2015 में ही इसरो को सौंप दिया था। लैंडर का नाम विक्रम और रोवर का नाम प्रज्ञान है।

- इस मिशन को पूरा होने में करीब-करीब 54 दिनों का वक्त लगेगा। चंद्रयान को 3.84 लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी है।

- 'चंद्रयान-2' की कुल लागत करीब 12.4 करोड़ डॉलर है जिसमें 3.1 करोड़ डॉलर लांच की लागत है और 9.3 करोड़ डॉलर उपग्रह की।

- पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलते ही रॉकेट चंद्रयान-2 से अलग हो जाएगा। हालांकि, 16 दिनों तक यह यान पृथ्वी की कक्षा में घूमता रहेगा।

- पृथ्वी की कक्षा से निकलने के बाद चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने में चंद्रयान को पांच दिन लगेंगे।

- चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने के बाद यह यान 27 दिनों तक उसकी कक्षा में चक्कर लगाते हुए सतह की ओर बढ़ेगा। 6 सितंबर को इसके चांद पर उतरने की उम्मीद है।

- दक्षिणी सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर (विक्रम) का दरवाजा खुलेगा और रोवर (प्रज्ञान) उससे बाहर निकलेगा। इस प्रक्रिया में चार घंटे का वक्त लगेगा। रोवर के सतह पर आने के 15 मिनट बाद ISRO को वहां की तस्वीर मिलनी शुरू हो जाएगी।

- चांद की सतह पर पहुंचने के बाद लैंडर और रोवर वहां 14 दिनों तक एक्टिव रहेंगे। इस दौरान रोवर सेंटीमीटर/सेकंड की गति से चांद की सतह पर चलेगा।

- सबसे पहले 2008 में तत्कालीन UPA सरकार ने इस मिशन को मंजूरी दी थी। 2009 में डिजाइन तैयार कर लिया गया था। पहले इसे 2013 में लॉन्च किया जाना था। रूस द्वारा लैंडर नहीं मिलने पर इसे अप्रैल 2018 तक टाल दिया गया था। उसके बाद कई बार लॉन्च करने का फैसला टाला गया और आखिरकार 15 जुलाई 2019 को अब इसे लॉन्च किया जाएगा। पिछले दिनों अप्रैल में भी खबर आई थी कि इस मिशन को लॉन्च किया जाएगा।

- भारत के बड़े मिशन चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग को देखने के लिए लोगों में खासा उत्साह है और इसे लाइव देखने के लिए अब तक 7,134 लोगों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया है।

- मिशन का प्राथमिक उद्देश्य चांद की सतह पर सुरक्षित उतरना या कहे कि धीरे-धीरे आराम से उतरना (सॉफ्ट-लैंडिंग) और फिर सतह पर रोबोट रोवर संचालित करना है। इसका मकसद चांद की सतह का नक्शा तैयार करना, खनिजों की मौजूदगी का पता लगाना, चंद्रमा के बाहरी वातावरण को स्कैन करना और किसी न किसी रूप में पानी की उपस्थिति का पता लगाना होगा।

- इस मिशन के लिए भारत के सबसे ताकतवर 640 टन के रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 का इस्तेमाल होगा। यह 3890 किलो के चंद्रयान-2 को लेकर जाएगा। स्पेसक्राफ्ट 13 भारतीय और एक नासा के वैज्ञानिक उपकरण लेकर जाएगा। इनमें से तीन उपकरण आठ ऑर्बिटर में, तीन लैंडर में और दो रोवर में होंगे।

- इसके अलावा चंद्रयान-2 चांद पर अशोक चक्र और इसरो के प्रतीक की छाप छोड़कर आएगा। इसरो के अध्यक्ष के मुताबिक रोवर के एक पैर पर अशोक चक्र और दूसरे पर इसरो का प्रतीक छपा हुआ है जो उसके चलने के दौरान चांद पर छप जाएंगे।