
दक्षिण एशिया की रणनीतिक तस्वीर में बड़ा मोड़ तब आया जब चीन ने पहली बार पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की। यह बैठक न केवल क्षेत्रीय समीकरणों में बदलाव का संकेत देती है, बल्कि भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति और कूटनीतिक प्रभुत्व के लिए भी एक नई चुनौती पेश करती है। बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता और पाकिस्तान के साथ उसके बदलते संबंधों के बीच हुई यह बैठक भारत के लिए एक गहरी चिंता का विषय बन गई है।
बैठक की पृष्ठभूमि और स्वरूपयह ऐतिहासिक त्रिपक्षीय बैठक 20 जून 2025 को चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग शहर में हुई। बैठक में चीन के उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग, बांग्लादेश के कार्यवाहक विदेश सचिव रूहुल आलम सिद्दीकी, पाकिस्तान के एशिया-प्रशांत विभाग के अतिरिक्त सचिव इमरान अहमद सिद्दीकी तथा विदेश सचिव अमना बलोच (वीडियो कॉन्फ्रेंस के ज़रिए) शामिल हुए।
बैठक में व्यापार, निवेश, शिक्षा, स्वास्थ्य, समुद्री मामलों, संपर्क और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग जैसे विषयों पर सहमति बनी। साथ ही, एक विशेष कार्यसमूह (Working Group) गठित करने का निर्णय लिया गया, जो इन विषयों पर अमल सुनिश्चित करेगा।
चीनी बयान और भारत की चिंताहालांकि चीन के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह पहल “किसी तीसरे देश के खिलाफ नहीं” है, लेकिन इसकी टाइमिंग और शामिल देश भारत के लिए चिंता का कारण बनते हैं। बीते कुछ वर्षों में चीन की “चेकबुक डिप्लोमेसी” और पाकिस्तान के साथ उसकी सैन्य-सामरिक नजदीकी को देखते हुए यह समझना मुश्किल नहीं कि चीन इस मंच का इस्तेमाल भारत को घेरने के लिए कर सकता है।
बांग्लादेश-पाकिस्तान समीकरण में आया नया बदलावप्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में बांग्लादेश-पाकिस्तान संबंध बेहद ठंडे रहे। लेकिन 2024 के चुनाव के बाद बदली सत्ता व्यवस्था और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेस इंटेलिजेंस (ISI) की भूमिका ने बांग्लादेश की विदेश नीति को अचानक बदल दिया है।
अब पाकिस्तान नए सिरे से बांग्लादेश के साथ रक्षा और व्यापारिक संबंध बढ़ा रहा है, और चीन इस समीकरण में पुल की भूमिका निभा रहा है।
चीन की रणनीति: बंगाल की खाड़ी में पैठयह त्रिपक्षीय मंच न केवल राजनीतिक बल्कि भू-सामरिक (Geo-strategic) रूप से भी चीन के हितों को साधता है। चीन की मंशा बंगाल की खाड़ी में अपनी उपस्थिति मजबूत करने की है, जहां भारत लंबे समय से एकमात्र प्रभावशाली शक्ति रहा है। चटगांव बंदरगाह से पाकिस्तान के लिए दो मालवाहक जहाजों का रवाना होना इसका प्रमाण है कि चीन इस इलाके में नई समुद्री धुरी स्थापित करना चाहता है।
भारत की रणनीतिक चुनौतियांभारत के लिए बांग्लादेश न केवल भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंच का मुख्य मार्ग है, बल्कि ऐतिहासिक रूप से एक रणनीतिक साझेदार भी रहा है। अब यदि पाकिस्तान और चीन का बांग्लादेश के साथ बढ़ता गठजोड़ मजबूत होता है, तो यह भारत की पूर्वी सीमाओं की सुरक्षा, संपर्क परियोजनाओं और क्षेत्रीय कूटनीति पर सीधा असर डाल सकता है।
एक सतर्क भारत के लिए चेतावनी की घंटीयद्यपि चीन का दावा है कि यह त्रिपक्षीय मंच किसी एक देश को लक्षित नहीं करता, परंतु इसकी राजनीतिक और सामरिक वास्तविकता कुछ और ही कहानी बयां करती है।
भारत को अब न केवल बांग्लादेश के साथ संबंधों को दोबारा मजबूत करना होगा, बल्कि दक्षिण एशिया में अपने पुराने प्रभाव को बनाए रखने के लिए चीन-पाक गठजोड़ का प्रभावी जवाब भी तलाशना होगा।
कुल मिलाकर, यह बैठक एक 'रणनीतिक संकेत' है कि दक्षिण एशिया में कूटनीतिक संतुलन अब पहले जैसा नहीं रहा।