ईरान-इजराइल जंग में अब पीछे हटने का रास्ता नहीं? ड्रोन कमांडर की मौत से बदला युद्ध का रुख

पश्चिम एशिया की सरजमीं इस समय युद्ध के सबसे भयावह अध्यायों में एक को लिख रही है। ईरान और इजराइल के बीच चल रहा संघर्ष अब ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जहां कूटनीतिक समाधान की संभावनाएं क्षीण होती जा रही हैं। शनिवार को इजराइल ने दावा किया कि उसने ईरान के नए ड्रोन कमांडर अमीन पोर जोदखी को मार गिराया है, जिसने पिछले सप्ताह मारे गए ताहर फुर की जगह ली थी। यह घटना केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि एक सधे हुए रणनीतिक संदेश की तरह देखी जा रही है।

ईरान के सैन्य नेतृत्व को व्यवस्थित रूप से खत्म कर रहा है इजराइल


इस संघर्ष की एक अहम विशेषता है—ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों को क्रमबद्ध तरीके से निशाना बनाना। अब तक ईरान के 12 से अधिक उच्च पदस्थ सैन्य अधिकारी मारे जा चुके हैं, जिनमें जनरल मोहम्मद बाघेरी (सेना प्रमुख) आईआरजीसी प्रमुख होसैन सलामी

जैसे नाम भी शामिल हैं। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि इजराइल केवल जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि ईरान के सैन्य कमांड-सिस्टम को पंगु बनाने की कोशिश में है।

मिसाइलों की बौछार: हमला और पलटवार

शनिवार को ईरान ने तेल अवीव और होलोन शहरों पर मिसाइलें दागीं, जिससे कई इमारतों को नुकसान पहुंचा। इसके बाद इजराइल ने कोम और इस्फहान पर जवाबी मिसाइल हमले किए, जिनमें 2 लोगों की मौत और 4 घायल हुए।

इस संघर्ष में अब तक ईरान में 657 मौतें और 2000 से अधिक घायल, जबकि इजराइल में 24 मौतें और 900 से अधिक घायल हुए हैं। इन आंकड़ों से इस जंग की भयानकता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

डोनाल्ड ट्रम्प की चिंगारी भड़काने वाली टिप्पणी

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बयान में कहा, “जब कोई जीत रहा हो, तो उसे रोकना बेवकूफी है।” उन्होंने इजराइल को जंग रोकने की सलाह देने से इनकार कर दिया। यह बयान ना केवल अमेरिका की विदेश नीति के दोहरेपन की ओर इशारा करता है, बल्कि क्षेत्र में उसकी भूमिका को लेकर भी गंभीर प्रश्न खड़े करता है।

परिणाम और प्रभाव: पूरी दुनिया पर पड़ सकता है असर


1. क्षेत्रीय अस्थिरता


मध्य पूर्व, जो पहले से ही उथल-पुथल से भरा है, अब पूर्ण संघर्ष के मुहाने पर खड़ा है।

2. वैश्विक तेल आपूर्ति पर खतरा


ईरान के जलमार्गों पर संकट के चलते कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त उछाल की आशंका है, जिससे भारत जैसे तेल आयातक देशों को बड़ा झटका लग सकता है।

3. भारत की चिंता: चाबहार और खाड़ी


ईरान स्थित चाबहार पोर्ट, जिसमें भारत की रणनीतिक हिस्सेदारी है, पर खतरा बढ़ गया है।

साथ ही 90 लाख भारतीय प्रवासी, जो खाड़ी क्षेत्र में काम करते हैं, उनकी सुरक्षा पर भी प्रश्नचिह्न लग गया है।

4. परमाणु वार्ता की संभावनाएं धूमिल


अमेरिका और ईरान के बीच जो JCPOA (परमाणु समझौता) दोबारा शुरू होने की उम्मीद थी, वह अब लगभग मृतप्राय दिख रही है।

क्या यह युद्ध और गहराएगा?

विशेषज्ञों की मानें तो यह युद्ध अब प्रत्यक्ष सैन्य संघर्ष की दिशा में बढ़ता जा रहा है। ड्रोन हमले, साइबर युद्ध, दूसरे देशों की घुसपैठ जैसे खतरे अब केवल सैद्धांतिक नहीं, वास्तविक हो चुके हैं।

भारत किस दिशा में जाएगा?

हाल ही में सोनिया गांधी ने भारत सरकार से इस संघर्ष पर स्पष्ट रुख लेने की मांग की है। लेकिन भारत अब भी 'संतुलित चुप्पी' की नीति पर चल रहा है, जिससे न तो ईरान नाराज़ हो और न ही इजराइल। यह संतुलन कितना टिकेगा, यह युद्ध के अगले कदम तय करेंगे।

ये केवल दो देशों की जंग नहीं


ईरान और इजराइल का यह संघर्ष अब एक वैश्विक टकराव की ओर बढ़ रहा है। अमेरिका का समर्थन, रूस और चीन की निष्क्रियता और भारत जैसी शक्तियों की चुप्पी—यह सब इस युद्ध को और अधिक जटिल और घातक बना रहे हैं।

हर गुज़रता दिन इस बात का संकेत है कि यह लड़ाई जल्द थमने वाली नहीं। और जब कोई युद्ध पश्चिम एशिया में गहराता है, तो उसकी आग सिर्फ रेगिस्तान में नहीं जलती—उसकी लपटें पूरी दुनिया को झुलसा सकती हैं।