मोदी सरकार (Modi Government) के कार्यकाल का आखिरी बजट (Budget 2019) आज 1 फरवरी 2019 को पेश होगा। लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) से पहले केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार (PM Narendra Modi Govt) पहले से चली आ रही परंपराओं का पालन करते हुए आज अंतरिम बजट (Budget2019) पेश करेगी। आम चुनाव 2019 से पहले पेश हो रहे अंतरिम बजट पर पूरे देश की नज़र है। परंपरा के तौर पर आम चुनाव से पहले पेश होने वाले बजट में बड़े ऐलान नहीं होते हैं। इसमें नई सरकार के आने तक खर्च चलाने जितनी रकम के लिए संसद की मंजूरी ली जाती है। हालांकि, अगले 3-4 महीने में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में लोगों के मन में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार परंपरा तोड़ कर मोदी सरकार लोक-लुभावन बजट पेश करेगी। इस बजट में सरकार से ये उम्मीद तो कतई नहीं की जाती है कि वो कोई ऐसा ऐलान कर दे, जिससे लोगों की आर्थिक स्थिति पर बहुत बड़ा असर पड़े। क्योंकि, अगर ऐसा होता है, तो इसका असर सीधे चुनाव में दिखेगा। वहीं, जीएसटी संग्रह में कमी, दूरसंचार क्षेत्र में राजस्व, विनिवेश राजस्व और प्रत्यक्ष कर प्राप्तियों में हाल के वक्त में हुई कमी मोदी सरकार के अंतरिम बजट को प्रभावित कर सकती है। चुनाव से पहले किसानों और युवाओं की नाराज़गी दूर करने के लिए मोदी सरकार के पास यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) के रूप में एक विकल्प है। लेकिन, इसे इतने कम वक्त में और इतने बड़े स्तर पर कैसे लागू किया जाए, इसपर बहुत स्टडी और रिसर्च की जरूरत होगी। अगर ये स्कीम लागू हो जाती है, तो ये मौजूदा वितरण प्रणाली की जगह लेगा। सूत्रों का कहना है कि अंतरिम बजट सरकार के लिये उसकी मध्यकालिक कार्य योजना पेश करने का एक बेहतर मौका है जिसमें वह कृषि और ग्रामीण क्षेत्र की आय बढ़ाने के लिये उपायों की घोषणा कर सकती है। इसमें सर्वजनीन न्यूनतम आय योजना की घोषणा भी की जा सकती है। वर्ष 2016- 17 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसकी अवधारणा रखी गई थी।
पीयूष गोयल ने पिछले सप्ताह ही वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला है। अरुण जेटली के इलाज के लिये अमेरिका जाने के बाद उन्हें वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि बजट में व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा को मौजूदा ढाई लाख से बढ़ाकर तीन लाख रुपये किया जा सकता है जबकि 60 से 80 वर्ष की आयु वाले वरिष्ठ नागरिकों के लिये इसे साढे तीन लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।
जिस साल लोकसभा चुनाव होते हैं, उससे पहले मौजूदा सरकार नियमित बजट पेश करने के बजाय अंतरिम बजट पेश करती है। इसमें अलग से अनुदान की मांगों के लिए संसद की मंजूरी लेने के बजाय 'वोट ऑन अकाउंट' के जरिए महज कुछ महीने (अप्रैल-जून) के लिए संचित निधि से धनराशि निकालती है। जानकारों के मुताबिक, चुनाव के मद्देनज़र वित्त मंत्री इस बार अंतरिम बजट में कोई बड़ा ऐलान जरूर करेंगे। हालांकि, ये ऐलान ऐसा नहीं होंगे कि इसे सीधे तौर पर वोट बैंक को खुश करने के तौर पर देखा जाए, मोदी सरकार यही चाहेगी कि अंतरिम बजट में होने वाले घोषणाएं आर्थिक सुधार के रूप में हो। 1 फरवरी को वित्त मंत्री डायरेक्ट टैक्स रिपोर्ट (प्रत्यक्ष कर रिपोर्ट) भी पेश करेगी। वहीं, माना जा सरकार इस अंतरिम बजट में टैक्स स्लैब में भी बदलाव किए जा सकते हैं।
इसके अलावा, पेंशनरों और किसानों को लेकर भी कुछ बड़ी घोषणाएं की जा सकती हैं। एक उम्मीद यह भी है कि होम लोन को लेकर सरकार कुछ रियायत का ऐलान करे। मिडिल क्लास या नौकरी पेशा वर्ग को मोदी सरकार के इस आखिरी बजट से काफी उम्मीदें होंगी। विपक्ष ने बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार को लगातार घेरा है। संभव है कि सरकार युवाओं को लुभाने के लिए बजट में किसी ठोस नीति का ऐलान करे। ऐसा ना करके सरकार वोट बैंक खोना नहीं चाहेगी। इस साल लोकसभा चुनाव के साथ कम से कम पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इनमें आंध्र प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा, जम्मू-कश्मीर चुनावों के लिहाज से अहम हैं। यहां अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं। हाल के चुनाव नतीजों को देखें, तो ग्रामीण तबकों में बीजेपी सरकार को बहुत अच्छा रिस्पॉन्स नहीं मिला।
किसान वर्ग मौजूदा सरकार से खासा नाराज है और जाहिर सी बात है कि अगर अंतरिम बजट में भी सरकार ने उनकी अनदेखी कि तो आम चुनाव में किसानों की नाराजगी साफ दिखेगी। वहीं, बेरोजगारी को लेकर भी सरकार को युवाओं की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। अभी तक के आंकड़ों (नवंबर 2018) पर गौर करें, तो राजकोषीय घाटा पहले से बजट टारगेट के आगे निकल चुकी है। मौजूदा वक्त में ये 114.8 फीसदी है, जबकि पिछली बार ये 1.2 फीसदी था। ऐसे में सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी कि वो चुनाव के मद्देनज़र अपने अंतरिम बजट में सभी वर्गों को कैसे खुश कर पाती है?