भारत के इतिहास के पन्नों में अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई एक हिस्सा हैं जो हमेशा याद किया जाता रहेगा। क्योंकि इस आजादी को पाने के लिए कई लोगों ने अपनी जान की कुर्बानी दी हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई आन्दोलन हुए हैं जो इन कुर्बानीयों की याद दिलाते हैं। ऐसा ही एक आन्दोलन था गोरखपुर का चौरीचौरा काण्ड जिसमें 260 व्यक्तियों की मौत हो गई। इस आन्दोलन में शांति मार्च निकाल रहे सत्याग्रहियों पर पुलिस ने चलाई थी गोलियां। आज हम आपको इस आन्दोलन के बारे में बताने जा रहे हैं।
फरवरी 1922 को चौरीचौरा कांड भारत के इतिहास के पन्नों में कभी ना भूलने वाला काला दिन है।
चौरीचौरा थाने के दारोगा गुप्तेश्वर सिंह ने आजादी की लड़ाई लड़ रहे वालंटियरों की खुलेआम पिटाई शुरू कर दी। सत्याग्रहियों जिसके बाद भीड़ पुलिसवालों पर पथराव करने लगी। जवाबी कार्यवाही में पुलिस ने गोलियां चलाई। जिसमें 260 व्यक्तियों की मौत हो गई। पुलिस की गोलियां तब रुकीं जब उनके सभी कारतूस समाप्त हो गए। इसके बाद सत्याग्रहियों का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होनें थाने में बंद 23 पुलिसवालों को जिंदा जला दिया।
महात्मा गांधी ने विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, अंग्रेजी पढ़ाई छोड़ने और चरखा चलाकर कपड़े बनाने का अह्वान किया था। उनका यह सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में रंग ला रहा था। 4 फरवरी 1922 दिन शनिवार को चौरीचौरा के भोपा बाजार में सत्याग्रही इकट्ठा हुए और थाने के सामने से जुलूस की शक्ल में गुजर रहे थे। तत्कालीन थानेदार ने जुलूस को अवैध मजमा घोषित कर दिया। एक सिपाही ने वालंटियर की गांधी टोपी को पांव से रौंद दिया। गांधी टोपी को रौंदता देख सत्याग्रही आक्रोशित हो गए।
उन्होंने इसका विरोध किया तो पुलिस ने जुलूस पर फायरिंग शुरू कर दी। जिसमें 11 सत्याग्रही मौके पर ही शहीद हो गए जबकि 50 से ज्यादा घायल हो गए। गोली खत्म होने पर पुलिसकर्मी थाने की तरफ भागे। फायरिंग से भड़की भीड़ ने उन्हें दौड़ा लिया। थाने के पास स्थित एक दुकान से एक टीन केरोसीन तेल उठा लिया। मूंज और सरपत का बोझा थाना परिसर में बिछाकर उस पर केरोसीन उड़ेलकर आग लगा दी। थानेदार ने भागने की कोशिश की तो भीड़ ने उसे पकड़कर आग में फेंक दिया। इस काण्ड में एक सिपाही मुहम्मद सिद्दिकी भाग निकला और झंगहा पहुंच कर गोरखपुर के तत्कालीन कलेक्टर को उसने घटना की सूचना दी।
गोरखपुर जिला कांग्रेस कमेटी के उपसभापति प। दशरथ प्रसाद द्विवेदी ने घटना की सूचना गांधी जी को चिट्ठी लिखकर दी थी। इस घटना को हिंसक मानते हुए गांधी जी ने अपना असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया था।