आखिर क्यों बढती जा रही हैं किशोर आत्महत्याओं की संख्या? पेरेंट्स के लिए जरूरी है ये जानकारी

वर्तमान समय में देखा जा रहा हैं कि कई किशोर अपनी जिंदगी से इस तरह हताश हो चुके हैं कि वे आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं और अपनी जिंदगी को समाप्त कर लेते हैं। किशोर आत्महत्याओं की यह संख्या लगातार बढ़ते हुए दिखाई दे रही हैं। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चों की हमेशा चिंता लगी रहती हैं कि वह कभी किसी तनाव में आकर कोई गलत कदम ना उठा लें। ऐसे में आज हम आप पेरेंट्स के लिए यह जानकारी लेकर आए हैं कि क्या कारण हैं कि किशोर आत्महत्याओं की संख्या बढ़ती जा रही हैं जिन्हें जान आप अपने बच्चों की अच्छे से समझाइश कर सकेंगे। तो आइये जानते हैं इनके बारे में...

समझें किशोरों का दिमाग

किसी भी किशोर से आत्महत्या के बारे में बात करने से पहले, उसके दिमाग में क्या चल रहा है इस बारे में समझ लें। ज्यादातर माता-पिता की यही शिकायत रहती है कि उनका बच्चा अचानक बात-बात पर बिगड़ने लगता है और आक्रामक होने लगता है। आपको बता दें बच्चों के अंदर ये प्रवत्ति तभी आती है जब जब उनका दिमाग कई तरह के बदलावों से गुजर रहा होता है। तेजी से बढ़ने के कुछ साइड इफेक्ट्स भी होते हैं, जिससे जिद्दीपन भी आने लगता है। परेशानी के दौर में जब उनके पास कोई सपोर्ट नहीं होता तो वो आत्मघाती मुद्दों की ओर झुकने लगते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जब बच्चा मन मुताबिक चीजें हासिल नहीं कर पाता तो उसके अंदर की निराशा के चलते वो आत्महत्या का रास्ता चुन लेता है।

क्यों होता है ट्रिगर

समान्य सी बात है कि जब कोई चीज मन को बार बार ठेस पहुंचाती है तो वो किसी ट्रिगर की तरह हो जाती है। हमारे देश में आत्महत्या के आंकड़ों की बात करें तो लगभग हर रोज तीन सौ से ज्यादा लोग आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं। जिसमें किशोर सबसे ज्यादा होते हैं। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो जब बच्चे किसी परीक्षा में फेल हो जाते हैं और उनके मन में माता-पिता द्वारा डांटे जाने का डर होता है तो उन्हें अपने आत्मसम्मान की चिंता सताने लगती है। ये समय किशोरों के लिए सबसे भारी समस्या होती है। माता-पिता के लिए यहां सबसे ज्यादा जरूरी है, अपने बच्चे को समझना और उसे समझाना। ताकि वो इससे ट्रिगर होकर आत्महत्या का रास्ता ना चुनें।

क्या है सबसे ज्यादा खतरनाक

शोध के मुताबिक एक बच्चे की क्षमता के आधार पर जब उसकी उपलब्धियों को आंका जाता है तो जाहिर है कि उसकी पढाई लिखाई को लेकर भी मुद्दे उठ सकते हैं। परिवार के अंदर बच्चों को एक दूसरे से ज्यादा या कम आंकने के मानों प्रथा सी है। कुछ बच्चों के लिए काफी अपमानजनक हो सकता है। जिसके वजह से वो आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।

दुर्व्यवहार या शोषण में है कारण

बच्चों में सबसे ज्यादा और सबसे आम चिंता या तनाव का कारण यही है कि वो जब भी दुर्व्यवहार, शारीरिक रूप से शोषण का शिकार, या नशे के लती हो जाते हैं। ऐसे में वो चिंता औउर डर की ऐसी खाई में गिरने लगते हैं जिनकी भनक माता-पिता को लग भी नहीं पाती और वो आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसे में बच्चे अपने माता पिता से कुछ भी कहने या शेयर करने में डरते हैं।

क्या पालन पोषण में कमी?

अगर बात किशोरों की आत्महत्या की हो रही है तो माता-पिता के जहन में ये सवाल उठाना आम है कि कहीं उनके द्वारा बच्चे के पालन पोषण में कोई कमी तो नहीं आ रही? विशेषज्ञों की मानें तो आपको ये जानना जरूरी है की आपके बच्चे के जीवन में क्या चल रहा है। आप स्वत्रंत होकर बच्चे से बात करें। बच्चों में आ रहे बदलावों को लेकर जागरूक रहें। उन्हें गाइड करें और उनसे बात करें कि वो अपने जीवन में क्या चाहते हैं। उन्हें थोड़ा स्पेस भी दें। क्योंकि बंदिशें बच्चों के दिमाग बुरी तरह से प्रभावित भी कर सकती हैं। अगर आपको लगे कि बच्चे अब आपसे कंट्रोल नहीं हो सकते तो विशेषज्ञ के पास ले जाने में भी देरी ना करें।