बदलते परिवेश और वर्तमान हालातो के मद्देनजर ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि लम्बे समय से घर की चारदीवारी में जकड़ी रहने के बाद आज के दौर की महिलाओं में स्वाबलंबन की इच्छा जागने लगी है।साथ ही पुरुषों ने सारे स्टीरियो टाइप्स बदल दिए हैं। वे अपनी पत्नियों के साथ पूरा सहयोग करते हैं ताकि वे भी अपना करियर बना सकें। परिवार को आर्थिक मदद दे सकें। इसके लिए पुरुषों ने अपनी परंपरागत छवि से बाहर निकलना भी स्वीकार किया है। वे खाना पकाते हैं, बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करते हैं, बाजार से राशन और सब्जी-भाजी खरीदते हैं, बच्चों को खाना खिलाते हैं और कई बार उन्हें सुलाते भी हैं। चूंकि उनकी पत्नियां ऐसी नौकरियों में हैं कि माँ की परंपरागत भूमिका नहीं निभा सकतीं।
बदलते पति लोग जैसे-जैसे संयुक्त परिवारों से निकल रहे हैं, पति और पत्नी के लिए यह जरूरी हो रहा है कि वे एक-दूसरे पर निर्भर रहें। अगर वे एक दूसरे के काम में हाथ नहीं बंटाएंगे, तो घर-परिवार चलाना मुश्किल हो जाएगा।इस बात को आजकल के पति आसानी से समझ है।
बदलते पितापुरुषों की बदलती सोच ने औरतों की जिंदगी बहुत आसान की है। कुछ साल पहले तक वे घर के कामकाज और बच्चों के लालन-पालन के लिए अपनी सास या माँ पर निर्भर रहते थे। अब वे इस नजरिए को बदलना चाहते हैं कि वे पुरुष हैं इसलिए कुछ खास तरह के काम नहीं कर सकते। जैसे औरतें उन क्षेत्रों में जा रही हैं जो कभी पुरुषों के लिए खास माने जाते थे, उसी तरह पुरुष भी वे सभी काम कर रहे हैं जो कभी उनके लिए वजिर्त माने जाते थे।
डे बोर्डिंग स्कूल बन रहे सहारा
डे बोर्डिंग स्कूल में बच्चा दिन भर स्कूल में रहता है।वहां खाने और खेलने की सुविधाएं देने के साथ ही बच्चे को मैनर्स सिखाए जाते हैं.जो वर्किंग मॉम्स की राहें आसान करता है।
क्रैच
आजकल ऑफिसो में वर्किंग मदर की सुविधा के लिए क्रेच खोले जाते है।ताकि काम के साथ-साथ महिलाये अपने बच्चों की देख-रेख भी कर सके।
अपनों का साथ
हम कितना भी महंगा क्रैच क्यों न खोज लें, उस में वह बात नहीं होती जो घर के बड़ेबुजुर्ग में होती है। अपने घर के बड़ेबुजुर्गों की के साथ अगर बच्चा रहेगा, तो वह ज्यादा सुरक्षित रहेगा, उसे अच्छे संस्कार भी मिलेंगे। आज के दौर के दादा-दादी इस बात को और अपनी बहु की जिम्मेदारियों को समझते और बच्चो को संभालने में उनकी मदद करते है।