सभी के सामने बच्चों को डांटना नहीं मुनासिब, इन 5 तरीकों से पड़ता हैं बुरा प्रभाव

बच्चे चंचल स्वभाव के होते हैं जिनसे खेल-खेल में कुछ गलतियां हो ही जाती हैं। इसके लिए घर के बड़ों द्वारा बच्चों को डांट भी पड़ती हैं। लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पेरेंट्स बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांटते या उनपर चिल्लाते हैं जो कि सही नहीं हैं। जी हां, बच्चों को समझाने की जरूरत होती हैं लेकिन सभी के सामने बच्चों को डांटना मुनासिब नहीं होता हैं। सार्वजनिक रूप से बच्चों को डांटने पर इसका बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और मानसिक क्षमताओं पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं।

आत्मसम्मान की कमी महसूस करते हैं बच्चे

अक्सर लोगों को लगता है कि बच्चों को सम्मान और आत्मसम्मान की समझ नहीं होगी इसलिए उन्हें कुछ भी बोल दो या कह दो तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन ऐसा नहीं है। आमतौर पर 3-4 साल की उम्र का होने तक बच्चों में आत्मसम्मान की भावना आनी शुरू हो जाती है। एक बार आत्मसम्मान की भावना आ जाने पर जब भी आप उन्हें सार्वजनिक रूप से किसी काम का दोषी ठहराते हैं, बुरा कहते हैं, डांटते हैं या मारते हैं, तो उन्हें मार से ज्यादा दुख अपनी बेइज्जती का होता है। अगर ये बार-बार होता रहा, तो बच्चे आत्मसम्मान की कमी महसूस करने लगते हैं। इसलिए बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांटना, मारना, चिल्लाना नहीं चाहिए।

भरोसा कमजोर होता है

मां-बाप का रिश्ता भले ही बच्चे से सबसे गहरा हो, लेकिन ये रिश्ता भी भरोसे की डोर से ही बंधा होता है। बच्चे अपने मां-बाप या अभिभावक के पास सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि उन्हें उनपर भरोसा होता है। ये भरोसा वक्त के साथ पैदा होता है। लेकिन जब कोई व्यक्ति बच्चों को सार्वजनिक रूप से डांटता, चिल्लाता या मारता है, तो इससे उस व्यक्ति के प्रति बच्चे का भरोसा टूटता है। ऐसे बच्चों के मन में ये बात आती है कि उनके अभिभावक उनकी इज्जत नहीं करते हैं।

बगावत की भावना आती है

बगावत असंतोष से पैदा होता है। और असंतोष का कारण कई बार बेइज्जती बनती है। अगर आप अपने बच्चों को दूसरों के सामने बुरा कहेंगे, उनकी बेइज्जती करेंगे, उन्हें डांटे या चिल्लाएंगे, तो इससे उनमें बगावत की भावना घर करने लगती है। बगावत की भावना का अर्थ है कि ऐसे बच्चों के मन में अपने अभिभावक के फैसलों के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत पैदा होती है। अगर बच्चे डर के मारे फैसले के खिलाफ नहीं भी खड़े हो पाते हैं, तो वो दूसरे तरीकों से इसका बदला चुकाते हैं जैसे- झूठ बोलना, धोखा देना, बिना बताए काम करना, कई बार जानबूझकर गलत काम करना।

भावनात्मक रूप से कमजोर बनते हैं बच्चे

इस तरह के बच्चे जिन्हें अक्सर ही उनके मां-बाप सबके सामने बेइज्जत करते रहते हैं या डांटते-चिल्लाते हैं, भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाते हैं। भावनात्मक रूप से कमजोर होने का मतलब है कि ऐसे बच्चों की भावनाएं मरने लगती हैं और वो डांट या चिल्लाहट के आदी हो जाते हैं। इसकी एक बुरी बात यह भी है कि ऐसे बच्चे अपने ही अभिभावक की ठीक से इज्जत नहीं कर पाते हैं और मौका मिलने पर उन्हें परेशान करने की भी कोशिश करते हैं।

मानसिक क्षमताओं पर पड़ता है बुरा असर

अक्सर गुस्से में मां-बाप बच्चों को सबके सामने ही बुरा, गलत और खराब कहने लगते हैं। इस तरह की बातों से उन्हें लगता है कि बच्चे को गलती का एहसास होगा और वो सुधर जाएगा या गलती दोहराने से बचेगा। कई मामलों में तो सच में ऐसा हो जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चों को सार्वजनिक रूप से गलत, कमजोर, खराब कहने से उनके अवचेतन मन पर इसका बुरा असर पड़ता है। बार-बार कमजोर कहने से बच्चा सच में कमजोर हो जाता है, बार-बार चोर कहने से बच्चा सच में चोरी करने लगता है। इससे बच्चे की मानसिक क्षमताओं जैसे- याद करने, एकाग्रचित्त होने, सोचने और समझने की क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है।