देखा जा रहा हैं कि कोरोना वायरस के चलते लोगों को 'वर्क फ्रॉम होम' करना पड़ रहा हैं जो कि एक सहूलियत हैं लेकिन यह लोगों के लिए तनाव भी बनता जा रहा हैं। जी हां, घर से काम करने वाले अधिकतर लोग ऑफिस आने-जाने के टेंशन और ट्रैफिक के हंगामों से तो बच रहे हैं लेकिन साथ में ही काम पूरा ना हो पाने की वजह से भी मानसिक और शारीरिक थकान का शिकार होते जा रहे हैं। कोरोना के डर से लोग न तो कहीं बाहर जा पा रहे है और न ही घर में काम से ब्रेक ले पा रहे। इस वजह से मानसिक और शारीरिक थकान भी बढ़ रही है। वहीं 115 देशों में की गई नई स्टडी के अनुसार, वर्क फ्रॉम होम की स्थिति में आपको ज्यादा घंटे तक काम करना पड़ता है, उच्च तनाव और सोने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसी वजह से कई लोग मानसिक तनाव और दबाव झेल रहे हैं।
स्टडी के अनुसार, व्रक फ्रॉम होम करने वाले ज्यादा काम कर रहे हैं लेकिन घर से काम करने में उन्हें इस बात का दबाव महसूस होता है कि कहीं उनके मैनेजर ये न समझें कि वो घर में आराम कर रहे हैं। ऑफिस में भी लोग यही काम करते हैं लेकिन घर पर होते हुए लोगों को यह दिखाना पड़ता है कि हम वाकई काम कर रहे हैं। मैनेजमेंट को ऐसा लगता है कि जो घर से काम कर रहे हैं उनके पास कोई और काम नहीं है। कहीं बाहर भी नहीं जाना तो जितना हो सके काम करवा लिया जाए। इस वजह से फिजिकल एक्टिविटी भी काफी कम हो रही हैं। पहले ऑफिस से लौटने के बाद काम खत्म हो जाता था मगर, घर पर काम कब खत्म होगा इसकी कोई सीमा नहीं है।अधिकतर लोगों की मुश्किल यह है कि घर से काम करने पर वो अपने साथी कर्माचारियों से कम्युनिकेशन नहीं बिठा पा रहे। कम्युनिकेशन गैप की वजह से भी लोगों में दवाब बन रहा है। घर से काम करने में अक्सर कम्युनिकेशन गैप की स्थिति बनती है। लोग यह नहीं समझ पाते कि उनके बॉस असल में कैसा काम चाहते हैं जबकि ऑफिस में यह चीजें आसान होती है। अब कोई तय शिफ्ट नहीं है। कितने भी घंटे काम करना पड़ सकता है। पहले जैसे 8 से 9 घंटे की शिफ्ट होती थी। मगर घर से वर्क करने का नुकसान है कि जब तक काम खत्म ना हो बैठे रहो।