जब किसी व्यक्ति की सांसें सामान्य रूप से नहीं चल पातीं और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, तब डॉक्टर उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखते हैं। यह एक जीवन रक्षक मशीन है जो फेफड़ों को ऑक्सीजन पहुंचाने और कार्बन डाइऑक्साइड निकालने में मदद करती है। वेंटिलेटर का उपयोग तब किया जाता है जब मरीज के फेफड़े या सांस लेने वाली मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं — जैसे कि गंभीर फेफड़ों की बीमारी, संक्रमण, बड़ी सर्जरी या स्ट्रोक जैसी स्थिति में। डॉक्टर मरीज की ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर, सांस लेने की कोशिश और समग्र स्वास्थ्य का मूल्यांकन करके तय करते हैं कि वेंटिलेटर की आवश्यकता है या नहीं।
कब होती है वेंटिलेटर की ज़रूरत?गंभीर सांस लेने में परेशानी:जब फेफड़े गैस एक्सचेंज यानी ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान को ठीक से नहीं कर पाते, तब शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। ऐसे में वेंटिलेटर की सहायता जरूरी हो जाती है।
गंभीर चोट या संक्रमण:सिर, छाती या शरीर के किसी हिस्से में बड़ी चोट लगने पर, या सेप्सिस जैसे संक्रमण में शरीर की ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित होती है। इस स्थिति में वेंटिलेटर सपोर्ट मरीज की जान बचा सकता है।
न्यूरोलॉजिकल समस्या:स्ट्रोक, रीढ़ की हड्डी की चोट, या मांसपेशियों को प्रभावित करने वाली बीमारियों में सांस लेने वाली मांसपेशियां काम करना बंद कर देती हैं, जिससे वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है।
बड़ी सर्जरी या एनेस्थीसिया के दौरान:ऑपरेशन के दौरान बेहोशी (एनेस्थीसिया) के कारण सांस रुकने का खतरा होता है। ऐसे समय वेंटिलेटर अस्थायी रूप से लगाया जाता है ताकि मरीज की सांसें बनी रहें।
हृदय संबंधी समस्या:हार्ट फेल्योर या हार्ट अटैक के बाद जब शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, तो मरीज को वेंटिलेटर पर रखना जरूरी हो सकता है।
कौन से संकेत बताते हैं कि वेंटिलेटर जरूरी है?डॉक्टर कुछ खास संकेतों के आधार पर निर्णय लेते हैं —
- मरीज को सांस लेने में अत्यधिक कठिनाई होना
- खून में ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होना
- कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ना
- भ्रम या बेहोशी की स्थिति
- सांस लेने वाली मांसपेशियों का थक जाना
ये सभी संकेत बताते हैं कि शरीर अपने दम पर ऑक्सीजन का संतुलन बनाए नहीं रख पा रहा, और ऐसे में वेंटिलेटर का सहारा जरूरी हो जाता है।
वेंटिलेटर के उपयोग से जुड़े खतरेहालांकि वेंटिलेटर जीवन रक्षक उपकरण है, लेकिन इसका लंबे समय तक उपयोग कुछ जोखिमों के साथ आता है —
फेफड़ों में संक्रमण का खतरा: लंबे समय तक मशीन पर रहने से बैक्टीरियल संक्रमण हो सकता है।
फेफड़ों पर दबाव: लगातार प्रेशर से फेफड़ों की संरचना कमजोर हो सकती है।
मांसपेशियों की कमजोरी: लंबे समय तक बेहोशी और निष्क्रियता से मांसपेशियां कमजोर पड़ जाती हैं।
ब्लड क्लॉट का खतरा: शरीर की गतिशीलता कम होने से खून के थक्के बनने की संभावना बढ़ जाती है।
रिकवरी और वेंटिलेटर से हटाने की प्रक्रियाजैसे-जैसे मरीज की हालत में सुधार आता है, डॉक्टर धीरे-धीरे वेंटिलेटर का सपोर्ट कम करते हैं। इस दौरान मरीज की सांस लेने की क्षमता, ऑक्सीजन का स्तर और शरीर की संपूर्ण स्थिति पर लगातार नजर रखी जाती है।
सही समय पर वेंटिलेटर हटाना बेहद जरूरी है —
जल्दी हटाने पर सांस रुकने का खतरा रहता है, जबकि देर से हटाने पर संक्रमण और अन्य जटिलताएं हो सकती हैं। इसलिए, हर कदम पर विशेषज्ञ निगरानी और सावधानी जरूरी होती है। वेंटिलेटर सपोर्ट न केवल शरीर को सांस लेने में मदद करता है, बल्कि यह डॉक्टरों को समय देता है ताकि वे मूल बीमारी का इलाज कर सकें और मरीज को सुरक्षित रूप से रिकवर करने में मदद मिल सके।