संजीवनी बूटी की तरह लाभदायी हैं गेहूं के ज्वारे

गेहूं के ज्वारे सेहत के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। प्रकृति की अनमोल धरोहर माने जाने वाले गेहूं के ज्वारे का नियमित सेवन करने से हमारी सेहत बहुत अच्छी रहती है। इनको आहार शास्त्रियों ने इसे संजीवनी बूटी माना है। इसका कारण यह है कि ऐसा कोई रोग नहीं जिसमें इसका सेवन लाभदायक न हो।

गेहूं के ज्वारों में अनेक अनमोल पोषक तत्व व रोग निवारक गुण पाए जाते हैं, जिससे इसे आहार नहीं वरन अमृत का दर्जा भी दिया जाता है। आहार शास्त्रियों का कहना है कि गेहूं के ज्वारे में क्लोरोफिल नामक तत्त्व पाया जाता है, जिसे सूर्य शक्ति कहा जाता है।
आज हम अपने सुधि पाठकों को यह बताने जा रहे हैं कि किन-किन बीमारियों में गेहूं के ज्वारे का सेवन करना फायदेमंद होता है—

* रक्त व रक्त संचार संबंधी रोगों, रक्त की कमी, उच्च रक्तचाप के दौरान इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। गेहूं के ज्वारे का सेवन करने से शरीर में रक्त का प्रवाह अपनी सामान्य गति से होने लगता है, जिसके चलते रक्त सम्बन्धी कोई समस्या पैदा नहीं होती है।

* सर्दी, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, स्थायी सर्दी, साइनस आदि में इसका सेवन करने से इन बीमारियों से न सिर्फ छुटकारा मिलता है अपितु यह स्वास्थ्य समस्याएँ स्थायी रूप से समाप्त हो जाती हैं।

*पाचन संबंधी रोग, पेट में छाले, कैंसर, आंतों की सूजन, दांत संबंधी समस्याओं, दांत का हिलना, मसूड़ो से खून आना, चर्म रोग, एक्जिमा, किडनी संबंधी रोग, सेक्स संबंधी रोग, शीघ्रपतन, कान के रोग, थायराइड ग्रंथि के रोग व अनेक ऐसे रोग जिनसे रोगी निराश हो गया उनके लिए गेहूं के जवारे अनमोल औषधि हैं।

* हिमोग्लोबिन रक्त में पाया जाने वाला एक प्रमुख घटक है। हिमोग्लोबिन में हेमिन नामक तत्व पाया जाता है। रासायनिक रूप से हिमोग्लोबिन व हेमिन में काफी समानता है। हिमोग्लोबिन व हेमिन में कार्बनए ऑक्सीजनए हाइड्रोजन व नाइट्रोजन के अणुओं की संख्या व उनकी आपस में संरचना भी करीब-करीब एक जैसी होती है। हिमोग्लोबिन व हेमिन की संरचना में केवल एक ही अंतर होता है कि क्लोरोफिल के परमाणु केंद्र में मैग्नेशियम, जबकि हेमिन के परमाणु केंद्र में लोहा स्थित होता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि हिमोग्लोबिन व क्लोरोफिल में काफी समानता है और इसीलिए गेहूं के ज्वारों को हरा रक्त कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

* गेहूं के ज्वारों में रोग निरोधक व रोग निवारक शक्ति पाई जाती है। कई आहार शास्त्री इसे रक्त बनाने वाला प्राकृतिक परमाणु कहते हैं। गेहूं के ज्वारों की प्रकृति क्षारीय होती है, इसीलिए ये पाचन संस्थान व रक्त द्वारा आसानी से अधिशोषित हो जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति वर्तमान में चल रही चिकित्सा के साथ-साथ गेहूं के ज्वारों का प्रयोग करता है तो उसे रोग से मुक्ति में मदद मिलती है और वह बरसों पुराने रोग से मुक्ति पा जाता है। यहां एक रोग से ही मुक्ति नहीं मिलती है वरन अनेक रोगों से मुक्ति मिलती है, साथ ही यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसका सेवन करता है तो उसकी जीवनशक्ति में अपार वृद्धि होती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गेहूं के ज्वारे से रोगी तो स्वस्थ होता ही है किंतु सामान्य स्वास्थ्य वाला व्यक्ति भी अपार शक्ति पाता है। इसका नियमित सेवन करने से शरीर में थकान तो आती ही नहीं है।

* यदि किसी असाध्य रोग से पीडि़त व्यक्ति को गेहूं के ज्वारों का प्रयोग कराना है तो उसकी वर्तमान में चल रही चिकित्सा को बिना बंद किए भी गेहूं के ज्वारों का सेवन कराया जा सकता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि कोई चिकित्सा पद्धति गेहूं के ज्वारों के प्रयोग में आड़े नहीं आती है, क्योंकि गेहूं के ज्वारे औषधि ही नहीं वरन श्रेष्ठ आहार भी है। यदि किसी रोग से रोगी निराश है तो वह इसका सेवन कर श्रेष्ठ स्वास्थ्य पा सकता है।