कोरोना रिसर्च : जिंदा रहने के लिए फेफड़े का प्रत्यारोपण ही होगा एकमात्र विकल्प

पूरी दुनिया कोरोना के कहर से प्रभावित हैं और इसका सामना कर रही हैं। कोरोना को लेकर लगातार रिसर्च जारी हैं ताकि इससे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकें। हाल ही में साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में कोरोना से जुड़ी एक रिसर्च प्रकाशित हुई हैं जिसके अनुसार कोरोना वायरस फेफड़ों को पूरी तरह क्षतिग्रस्त कर रहा है और ऐसी स्थिति में जिंदा रहने के लिए फेफड़े का प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प होगा। शिकागो के नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल अस्पताल के शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि कोविड-19 फेफड़े की स्थायी क्षति और उसमें गंभीर दाग का कारण बनता है, जिसमें फेफड़े के प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है।

कोविड-19 के कारण फेफड़ों का प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों और वायरस से मरने वाले रोगियों के शव के परीक्षण के दौरान शोधकर्ताओं ने उन खतरनाक परिवर्तनों को पाया जो मानव के फेफड़ों पर वायरस के विनाशकारी प्रभाव डालते हैं। इस अध्ययन में अनोखी कोशिकाओं, KRT17 उपकला कोशिकाओं की खोज की गई है, जो अपरिवर्तनीय क्षति वाले रोगियों के फेफड़ों के ऊतकों में हैं और जो पल्मोनरी फाइब्रोसिस के रोगियों में भी देखे गए हैं।

अध्ययन के मुताबिक, गंभीर रूप से बीमार रोगियों के फेफड़ों का प्रत्यारोपण करना सुरक्षित है, यहां तक कि उन लोगों के भी, जो फेफड़े की विफलता के संक्रामक कारणों से पीड़ित हैं, जैसे कोविड-19 और प्रत्यारोपण और क्षतिग्रस्त फेफड़ों को हटाने के बाद, रोगी तीव्र गति से ठीक हो जाते हैं।

भारत में वैसे कई मामले ऐसे देखे गए हैं, जिसमें कोरोना संक्रमित रोगियों के फेफड़े प्रत्यारोपित किए गए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कोरोना वायरस संबंधी फाइब्रोसिस से एक 48 वर्षीय व्यक्ति के फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हुए थे, जिसके बाद उसे चेन्नई ले जाया गया था। वहां उसके फेफड़ों को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया गया था। इसे एशिया का पहला ऐसा केस माना गया है, जिसमें कोरोना वायरस पॉजिटिव रोगी के दोनों ओर के फेफड़ों का प्रत्यारोपण किया गया।