कोरोना मरीज और मौत का खतरा, ब्लड टेस्ट से अब चलेगा इसका पता

कोरोना वायरस का संक्रमण लगातार बढ़ता ही जा रहा हैं जो चिंता बढाने वाला है। कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा भी थमने का नाम नहीं ले रहा हैं। ऐसे में सभी को वैक्सीन का इन्तजार हैं ताकि मौत के इस आंकड़े को रोका जा सकें। ऐसे में डॉक्टर्स द्वारा मरीजों की जांच की जाती हैं और गंभीर मरीजों को ज्यादा प्रायिकता दी जाती हैं। अब एक ताजा शोध में यह सामने आया है कि ब्लड टेस्ट के जरिए यह पता लगाया जा सकता है कि कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज को मौत का खतरा कितना है।

दरअसल, अमेरिका के जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पांच ऐसे बायोमार्कर अणुओं की तलाश की है, जिनका संबंध कोरोना के मरीजों की मौत और क्लीनिकल कंडीशन (नैदानिक स्थिति) को खराब करने से है। ये बायोमार्कर मरीजों के खून में होते हैं, जो मेडिकल इंडिकेटर्स (चिकित्सा संकेतक) का काम करते हैं।

यह शोध जर्नल फ्यूचर मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं ने कोरोना संक्रमित 299 मरीजों पर यह अध्ययन किया है, जो 12 मार्च से 9 मई के बीच संक्रमित होने के बाद जॉर्ज वाशिंगटन अस्पताल में भर्ती हुए थे। कुल 299 मरीजों में से 200 में पांचों बायोमार्कर अणु पाए गए हैं। ये पांचों बायोमार्कर अणु हैं- सीआरपी, आइएल-6, फेरेटिन, एलडीएच और डी-डिमर।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, बायोमार्कर अणुओं की वजह से कोरोना संक्रमित मरीजों के शरीर में जलन, सूजन और रक्तस्राव बढ़ जाता है। इस कारण उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की नौबत आ जाती है। ऐसी हालत में कभी-कभी मरीज की मौत भी हो जाती है।

जार्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और सह-शोधकर्ता जॉन रीस के मुताबिक, चीन में हुए कुछ शुरुआती शोधों में यह पता चला था कि कोरोना संक्रमित मरीजों की खराब स्थिति से बायोमार्कर अणुओं का सीधा-सीधा संबंध है। इस वजह से यह पता करने के लिए अमेरिका में भी शोध किया गया कि क्या यहां भी इसका कारण बायोमार्कर अणु ही हैं। उन्होंने बताया कि चूंकि जब कोरोना मरीज का इलाज किया जाता है तो यह पता नहीं चल पाता था कि किसी की हालत खराब क्यों हो रही है और किसी की हालत में सुधार कैसे हो रहा है।