कहीं एयर प्यूरीफायर आपकी सेहत पर तो नहीं डाल रहा बुरा असर? डॉक्टरों की चेतावनी ने बढ़ाई चिंता

आज के समय में एयर प्यूरीफायर कई घरों की जरूरत बन चुके हैं। बढ़ते प्रदूषण के बीच यह दावा किया जाता है कि ये डिवाइस घर की हवा को शुद्ध रखते हैं और वायरस, बैक्टीरिया व सूक्ष्म हानिकारक कणों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन हाल ही में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो द्वारा की गई एक नई स्टडी ने इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस रिसर्च में करीब 700 अध्ययनों की गहन समीक्षा की गई, जिसमें एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई। अधिकतर रिसर्च इंसानों पर नहीं, बल्कि खाली कमरों या जानवरों पर की गई थी। यानी वास्तविक जीवन में इंसानी स्वास्थ्य पर एयर प्यूरीफायर का क्या प्रभाव पड़ता है, इस बारे में ठोस और भरोसेमंद प्रमाण अभी भी बेहद सीमित हैं।

इंसानों पर कम रिसर्च, बढ़ती चिंता

स्टडी के अनुसार केवल लगभग 8 प्रतिशत रिसर्च ही ऐसी थीं, जिनमें एयर प्यूरीफायर को सीधे इंसानों पर टेस्ट किया गया। बाकी ज्यादातर अध्ययन लैब, चूहों, गिनी पिग या सिर्फ हवा के सैंपल तक ही सीमित रहे। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि लंबे समय तक एयर प्यूरीफायर के इस्तेमाल से मानव शरीर पर क्या असर पड़ सकता है। रिसर्च में यह भी सामने आया कि कुछ एयर प्यूरीफायर ओजोन और फॉर्मलडिहाइड जैसी खतरनाक गैसें उत्पन्न कर सकते हैं। ओजोन फेफड़ों के लिए बेहद नुकसानदायक मानी जाती है, जिससे अस्थमा के लक्षण बढ़ सकते हैं और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। वहीं फॉर्मलडिहाइड आंखों, नाक और गले में जलन पैदा करती है और अधिक मात्रा में यह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का कारण भी बन सकती है। कुछ प्यूरीफायर में मौजूद ओजोन या आयोनाइजर घर के भीतर पहले से मौजूद केमिकल्स के साथ रिएक्शन करके और भी जहरीले सूक्ष्म कण बना देते हैं, जो सांस के जरिए सीधे फेफड़ों और खून तक पहुंच सकते हैं।

वास्तविक परिस्थितियों में जांच का अभाव

1920 से लेकर 2023 तक की कुल 672 स्टडीज का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि कई आधुनिक तकनीकों पर इंसानों पर पर्याप्त परीक्षण ही नहीं किए गए हैं। उदाहरण के तौर पर, बैक्टीरिया को नष्ट करने वाली कुछ नई तकनीकों पर दर्जनों रिसर्च उपलब्ध हैं, लेकिन इनके इंसानी स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर गिनी-चुनी ही स्टडीज की गई हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि कई कंपनियां अपने प्रोडक्ट को लेकर बड़े-बड़े दावे करती हैं, लेकिन उनके पास इन दावों को साबित करने के लिए ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होते। स्कूल, अस्पताल और ऑफिस जैसी जगहों पर इन डिवाइस को लगाने से पहले यह सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है कि ये न केवल प्रभावी हों, बल्कि पूरी तरह सुरक्षित भी हों।

एक्सपर्ट की राय क्या कहती है?

शहीद हॉस्पिटल, दुर्ग के कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. योगेश्वर देशमुख के अनुसार, “एयर प्यूरीफायर सीधे तौर पर हवा से नमी नहीं हटाते, लेकिन यदि बंद कमरे में इन्हें लगातार तेज सेटिंग पर चलाया जाए, तो कमरे की ह्यूमिडिटी कम हो सकती है। कम नमी के कारण नाक, गले और सांस की नलियों में जलन होने लगती है। इससे सूखापन, खराश, खांसी और आंखों में जलन जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। हवा का साफ होना जरूरी है, लेकिन फेफड़ों की सेहत के लिए साफ हवा के साथ-साथ सही स्तर की नमी भी उतनी ही अहम होती है।”

एयर प्यूरीफायर खरीदते समय रखें ये सावधानियां

डॉक्टर और हेल्थ एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि एयर प्यूरीफायर खरीदते समय जल्दबाजी न करें और कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखें।

ओजोन पैदा करने वाले या केमिकल रिएक्शन पर काम करने वाले प्यूरीफायर से बचें

HEPA फिल्टर वाले एयर प्यूरीफायर को ज्यादा सुरक्षित माना जाता है

कमरे के आकार के अनुसार ही सही क्षमता वाला डिवाइस चुनें

फिल्टर की नियमित सफाई और समय-समय पर बदलाव बेहद जरूरी है

साफ हवा की चाह में लिया गया गलत फैसला आपकी सेहत पर भारी पड़ सकता है, इसलिए सही जानकारी और समझदारी के साथ ही एयर प्यूरीफायर का चुनाव करें।