कोरोना रिसर्च में सामने आया डराने वाला आंकड़ा, दिसंबर तक जा सकती हैं 12 लाख बच्चों और 57 हजार मांओं की जान

कोरोना वायरस का कहर हर दिन के साथ बढ़ता ही जा रहा हैं और संक्रमितों के आंकड़ों में लगातार इजाफा हो रहा हैं। दुनियाभर में कोरोना के कहर के चलते स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं और इसका खामियाजा समान्य रोगियों को भी भुगतना पड़ रहा हैं। कोरोना को लेकर कई रिसर्च सामने आई हैं जो इसके खतरे को दर्शाती हैं। हाल ही में हुई एक रिसर्च में कोरोना को लेकर डराने वाले आंकड़े सामने आए हैं जिसके अनुसार दिसंबर महीने तक 12 लाख बच्चों और 57 हजार मांओं की जान जाने का अनुमान लगाया जा रहा हैं। अमेरिका की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह शोध अध्ययन किया है, जिसके परिणाम चौंकाते भी हैं और डर भी पैदा करते हैं।

शोधकर्ताओं का दावा है कि कोरोना महामारी के इस संकट काल में जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने और खाने के कमी के कारण ढाई लाख शिशुओं की जान जा सकती है। वहीं, गरीब देशों की 10 हजार से अधिक मांओं के लिए जुलाई से दिसंबर तक ये छह महीने चुनौती भरे होंगे। इस दौरान उनकी जान पर संकट रह सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, अगर हालात और अधिक बिगड़े तो साल के अंत तक 118 देशों में 12 लाख बच्चों और 57 हजार मांओं की मौत हो सकती है।

शोधकर्ताओं का यह अध्ययन द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित हुआ है। इस शोध अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आंकड़ों के विश्लेषण से यह जानने की कोशिश की है कि आहार और स्वास्थ्य सिस्टम पर कोरोना का कितना असर पड़ा है और इसके दुष्प्रभाव से कितने लोगों की मौत होने की संभावना है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना महामारी काल में बच्चों को जन्म देने वाली मांओं के लिए सुरक्षित माहौल की कमी तो है ही, कई देशों में तो उन्हें पर्याप्त एंटीबायोटिक भी नहीं मिल पा रहे हैं। इस संकट से उन मांओं की मौत का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस महामारी काल में बच्चों में पोषक तत्वों की कमी पूरी करने और निमोनिया-सेप्सिस से बचाने के लिए पर्याप्त मात्रा में एंटीबायोटिक्स उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। बच्चों में मौत के खतरे का यह एक बड़ा कारण है। शोधकर्ताओं का कहना है कि डायरिया से पीड़ित बच्चों के लिए रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन की कमी भी इसकी वजह बन सकती है।

न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित एक अन्य शोध अध्ययन के मुताबिक, कोरोना से जूझने वाले लगभग सभी बच्चे पेट की समस्या से जूझ रहे थे। अध्ययन में शामिल 171 बच्चों में से 80 फीसदी को हृदय से जुड़ी समस्याएं थी। उन बच्चों को एक हफ्ते के लिए आईसीयू में भर्ती करना पड़ा था। इनमें से चार की मौत हो गई थी।

कोरोना संक्रमित 75 फीसदी बच्चे बीमारी के बारे में अंजान हैं। यानी हर चार में से तीन बच्चों को उनकी बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है। ऐसे मामले इस जोखिम को और भी ज्यादा बढ़ा सकते हैं। शोधकर्ताओं ने उम्मीद जताई है कि नीति निर्धारक इन आंकड़ों पर गंभीरता से ध्यान देंगे ओर जरूरी सुविधाओं के लिए दिशानिर्देश जारी करेंगे।