हंसी का तगड़ा डोज है गोलमाल अगेन, पैसा वसूल

असफल फिल्म ‘दिलवाले’ देने के बाद रोहित शेट्टी अपनी जड़ों की तरफ पुन: लौटे और क्या खूब लौटे हैं। अपनी गोलमाल सीरीज की चौथी कड़ी से रोहित शेट्टी ने साबित किया कि वे चूके नहीं हैं। हालांकि उन्होंने अपने हालिया एक बयान में कहा है कि वर्ष 2006 में ‘गोलमाल’ स्वयं को उबारने के लिए बनाई थी। उन्हें विश्वास था कि उनकी यह फिल्म उन्हें उबारेगी लेकिन यह महसूस नहीं किया था कि हर बार उन्हें स्वयं की असफलता को धोने के लिए इसी का सहारा लेना पड़ेगा। ‘गोलमाल अगेन’ पूरी तरह रोहित शेट्टी की घर वापसी है। इस बार उन्होंने इसमें हॉस्य कॉमेडी डाली है जिसे उन्होंने अपनी निर्देशकीय क्षमता से देखने लायक बनाया है। दर्शक हर दृश्य में हंसता है और पेट पकड़ता है। पिछली तीनों कडिय़ों से कहीं ज्यादा सशक्त नजर आए हैं रोहित।

इस फिल्म की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसके पात्रों को बदला नहीं गया है। करीना कपूर के स्थान पर परिणीति चोपडा को शामिल किया गया है, जिसके लिए उनका किरदार नया लिखा गया है और तब्बू को भी नए किरदार के रूप में शामिल किया गया है। शेष सभी किरदार पुराने और इनको अभिनीत करने वाले भी। फिल्म का केन्द्र बिन्दु अजय देवगन हैं लेकिन इस बार वे कॉमिक टाइमिंग में मात खा गये हैं। तब्बू ने सिर्फ अजय देवगन के कहने पर इस फिल्म में काम किया है। उनकी जो भूमिका है वह पूरी तरह से असरहीन है। इसके लिए तो कोई भी नायिका रखी जा सकती थी। शेष कलाकारों में अरशद वारसी, कुणाल खेमू, श्रेयस तलपडे, संजय मिश्रा ने अपनी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

रोहित शेट्टी ने फिल्म की रोचकता को बरकरार रखने के लिए कुछ मिनटों के लिए दो खल पात्रों को भी अपनी फिल्म में शामिल किया है। सिंघम के साथ प्रकाश राज का रिश्ता रोहित शेट्टी ने अच्छा बना है यहाँ भी उन्होंने प्रकाश को लिया है। साथ में युवा खलनायक नील नितिन मुकेश भी हैं। नील की भूमिका संक्षिप्त हैं जिसमें उन्होंने कुछ प्रभाव छोडा है।

फिल्म का पाश्र्व संगीत बहुत ज्यादा लाउड है, जो दृश्यों की प्रभावशीलता को कम करता है। ऐसा ही कुछ गीतों का हाल है। गीतों के बोल काम चलाऊ हैं। अजय देवगन आमिर खान की फिल्म ‘इश्क’ के गीत ‘नींद चुराई तेरी किसने ओ सनम’ को यहाँ रीमिक्स किया गया है, जो अच्छा बन पड़ा है। अपनी हर फिल्म की तरह रोहित ने इसे भी गोवा में फिल्माया है, लेकिन इस बार उसके समुद्र को नहीं बल्कि हरी भरी वादियों को दिखाने का प्रयास किया है। छायांकन खूबसूरत है। किरदारों का पहनावा आकर्षक नहीं है। अजय देवगन के चेहरे पर उगी दाढ़ी उनके असफल भावों को ढकने का काम करती है। वैसे अजय की आँखें बोलती हैं इस फिल्म में उनकी आँखों में भावाभिव्यक्ति का अभाव नजर आता है। अब उम्र के इस पडाव पर आकर अजय देवगन को कुछ नया करने का प्रयास करना चाहिए। कुल मिलाकर त्यौहार की छुट्टियों में यह परिवार के साथ बैठकर देखने लायक फिल्म है। इसे एक बार जरूर देखा जा सकता है।