Women's Day Special- ऋतू जैसवाल ने 3 महीने में बदली गाँव की तस्वीर

By: Priyanka Maheshwari Wed, 07 Mar 2018 6:40:47

Women's Day Special- ऋतू जैसवाल ने 3 महीने में बदली गाँव की तस्वीर

आज हम आपको बिहार के सीतामढ़ी जिले के एक ऐसे ही गांव की कहानी बताने जा रहे हैं जिसकी मुखिया ने गांव की तस्वीर बदल कर रख दी है और उनकी कार्य प्रणाली देखकर लोग कहने लगे हैं गाँव में राम राज्य आ गया है। उस कर्तव्यनिष्ठ महिला का नाम है Ritu Jaiswal.

ऋतु जायसवाल दिल्ली के IAS अरुण कुमार जायसवाल की पत्नी हैं। अब आप सोचिये जिस महिला का पति IAS अधिकारी हो उसका भला किसी सुविधाओं से रहित गाँव से क्या वास्ता होगा, लेकिन बिहार का सिंहवाहिनी गाँव ऋतु का ससुराल है। ऋतु ने जब अपने गाँव की दुर्दशा देखी तो वो दिल्ली के चकाचौंध भरे सुविधायुक्त जीवन को अलविदा कह गाँव की कायाकल्प बदलने का संकल्प लिया। वर्तमान में वह सीतामढ़ी जिले के सोनबरसा प्रखंड की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया है। ऋतु के सशक्त नेतृत्व में सिंहवाहिनी पंचायत विकास की नित नयी इबारत लिख रही है।

अपने परिवार में दो छोटे बच्चों को छोड़कर अपने गाँव की तरफ रुख करना ऋतु के लिए आसान नहीं था लेकिन गाँव के कई परिवारों के विकास के लिए ऋतु ने आखिर यह फैसला लिया। एक बार गांव जाने के दौरान कुछ दूर पहले ही कार कीचड़ में फंस गई। कार निकालने की हर कोशिश बेकार थी उन्हें बैलगाड़ी पर सवार होकर आगे बढ़ना पड़ा। कुछ दूर जाते ही बैलगाड़ी भी कीचड़ में फंस गई। गाँव की ऐसी जर्जर स्थिति देख ऋतु का मन व्यथित हो उठा। तभी उन्होंने फैसला लिया कि वह गाँव की तकदीर बदलेंगी।

मेरे पति और बेटी ने मेरे निर्णय का समर्थन किया, मेरी बेटी ने कहा मम्मी हम हॉस्टल में रह लेंगे और आप गाँव जाकर वहाँ बहुत सारे बच्चों को पढ़ाइये। उसकी बातों ने मुझे हिम्मत दी और मैंने उनका दाखिला रेजिडेंसिअल स्कूल में करा दिया और निकल पड़ी अपनी ग्राम पंचायत के विकास के लिए।

साल 2016 में ऋतु ने सिंहवाहिनी पंचायत से मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ा लेकिन उनके लिए जीत आसान नहीं थी। उनके आगे 32 और उम्मीदवार खड़े थे। ऋतु ने लोगों में जाती के आधार पर तथा रुपयों के लालच में अपने अमूल्य वोट को बेचने से रोकने के लिए जागरूकता फैलाई। गाँव के लोगों को ऋतु की बातें समझ आ गयी और उन्होंने भारी मतों से उन्हें विजयी बना दिया। अब उनके विकास की जिम्मेदारी ऋतु के कंधों पर थी। एक ऐसा गाँव जहाँ न सड़कें थी, न आजादी के बाद से बिजली आई थी, न मोबाइल टावर था, न ही शिक्षा की व्यवस्था थी।

ऋतु ने शपथ ग्रहण करने के अगले ही दिन बिना सरकारी फंड का इंतजार किये अपने निजी खर्च पर काम करना शुरू कर दिया। पहला काम था गाँव में सड़क बनाना। शुरू में लोग सड़कों के लिए अपनी एक इंच जमीं भी देने को तैयार नही थे, लेकिन ऋतु के प्रयासों से लोग मान गए। कई चुनौतियों के बाद सड़क निर्माण का रास्ता साफ़ हुआ और गाँव में पक्की सड़क आई। आज़ादी के बाद पहली बार गाँव में बिजली आई। उसके बाद ऋतु के आगे लक्ष्य था गाँव की शिक्षा को सुदृढ़ बनाना। इसके लिए उन्होंने गाँव की एक डॉक्यूमेंट्री बनाई और उसे कुछ एन.जी.ओ को जाकर दिखाया। उसके बाद उन्होंने कई एन.जी.ओ की मदद से बच्चों के लिए ट्यूशन क्लास शुरू करवाई। इसका असर यह हुआ कि इस बेहद ही पिछड़े गाँव की 12 बेटियों ने एक साथ मैट्रिक पास की। उसके बाद ऋतु ने स्वछता का मिशन आगे बढ़ाया 95 प्रतिशत लोग जिस पंचायत में खुले में शौच जाते थे, उसे खुले में शौच मुक्त बनाया वो भी मात्र 3 महीने में।

ऋतु विकास के काम की खुद निगरानी करती हैं। इसके लिए वह कभी बाइक ड्राइव करती दिखती हैं तो कभी ट्रैक्टर और JCB पर सवार हो जाती हैं। सोनबरसा प्रखंड की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया ऋतु को उनके विशिष्ट कार्यों के लिए इस साल का उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच (मुखिया) पुरस्कार मिल चुका है। ऋतु इस सम्मान को ग्रहण करने वाली बिहार की एकमात्र मुखिया हैं।

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