कोरोना वायरस ने ताजा की स्पेनिश फ्लू की यादें, मारे गए थे 10 करोड़ लोग!
By: Priyanka Maheshwari Sat, 14 Mar 2020 10:11:34
कोरोना वायरस (Coronavirus) के पूरी दुनिया में बढ़ते खौफ ने 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू (Spanish Flu) की यादें ताजा कर दी हैं। 1918 में जब पूरी दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के बाद के हालात से उबरने की कोशिश कर रही थी, उसी समय स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दी थी। बताया जाता है कि जितने लोग प्रथम विश्व युद्ध में नहीं मरे थे उससे ज्यादा इस युद्ध के बाद फैले स्पेनिश फ्लू ने ले ली थी। इसे मानव इतिहास की सबसे भीषण महामारियों में से एक माना गया था। कहा जाता है कि इस वायरस से दुनियाभर में तकरीबन 5-10 करोड़ लोगों की मौत हुई थी।
कोरोना और स्पेनिश फ्लू (Spanish Flu) में तुलना इसलिए की जा रही है क्योंकि दोनों महामारियों ने लोगों को अंदर से हिला दिया। यह भी कहा जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के दादा को भी इस फ्लू के शिकार हुए थे। जब स्पेनिश फ्लू फैला था तब दुनिया में हवाई यात्रा की शुरुआत हुई थी। यह बड़ी वजह थी कि उस समय दुनिया के दूसरे देश बीमारी के प्रकोप से अछूते रहे। उस समय बीमारी रेल और नौकाओं में यात्रा करने वाले यात्रियों के जरिए ही फैली इसलिए उसका प्रसार भी धीमी गति से हुआ। कई जगहों पर स्पेनिश फ्लू को पहुंचने में कई महीने और साल लग गए, जबकि कुछ जगहों पर यह बीमारी लगभग पहुंची ही नहीं। उदाहरण के तौर पर, अलास्का। इसकी वजह थी वहां के लोगों द्वारा बीमारी को दूर रखने के लिए अपनाए गए कुछ बुनियादी तरीके। अलास्का के ब्रिस्टल बे इलाके में यह बीमारी नहीं फैली। वहां के लोगों ने स्कूल बंद कर दिए, सार्वजानिक जगहों पर भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक लगा दी और मुख्य सड़क से गांव तक पहुंचने बाले रास्ते बंद कर दिए।
डॉक्टर स्पेनिश फ्लू को 'इतिहास का सबसे बड़ा जनसंहार' बताते हैं। बात केवल यह नहीं है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इससे मारे गए बल्कि यह कि इसका शिकार हुए कई लोग जवान और पूरी तरह स्वस्थ थे। आमतौर पर स्वस्थ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता फ्लू से निपटने में सफल रहती है, लेकिन फ्लू का यह स्वरूप इतनी तेजी से हमला करता था कि शरीर की प्रतिरोधक शक्ति पस्त हो जाती। इससे सायटोकिन स्टॉर्म नामक प्रतिक्रिया होती है और फेफड़ों में पानी भर जाता है जिससे यह बीमारी अन्य लोगों में भी फैलती है।
क्या कोविड-19 की तुलना स्पेनिश फ्लू से करनी चाहिए?
लौरा स्पिननी ने 'द गार्जियन' के एक हालिया लेख में लिखा गया कि 'क्या हमें कोविड-19 की तुलना स्पेनिश फ्लू से करनी चाहिए?' फ्लू और कोविड- 19 का कारण बनने वाले वायरस दो अलग-अलग परिवारों के हैं। Sars-CoV-2 की वजह से कोविड- 19 आया जो कि कोरोना वायरस से संबंधित है। इसमें और SARS (सिविअर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम जो 2002 में चीन में उत्पन्न हुआ) एवं MERS (मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम जो 2012 में सऊदी अरब में शुरू हुआ) के बीच अधिक समानताएं हैं। स्पिननी ने अपने लेख में बताया कि फ्लू का वायरस आबादी के माध्यम से तेजी से और अपेक्षाकृत समान रूप से फैलता है जबकि कोरोनावायरस गुच्छों में संक्रमित होता है। यही वजह है कि सैद्धांतिक तौर पर कोरोना वायरस के प्रकोपों को रोकना आसान होता है। सबसे बड़ी बात कि 1918 से अब तक दुनियाभर में काफी बदलाव आ चुका है। 1918 में बड़ी संख्या में लोग धार्मिक नेताओं पर भरोसा करते थे। उस समय लोग स्वास्थ्य जानकारों की सलाह बहुत कम ही मानते थे। उदाहरण के लिए, स्पेनिश शहर जमोरा में स्वास्थ्य अधिकारियों से अलग स्थानीय बिशप ने संतों के सम्मान में फ्लू के दौरान लगातार नौ दिनों तक शाम की प्रार्थना का आदेश दिया। बता दें कि जमोरा में ही फ्लू से सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई थीं। यहां मरने वालों का आंकड़ा पूरे यूरोप में सबसे अधिक था।