कुंतेश्वर मंदिर : शिव के इस मंदिर में पूजा करती है एक अदृश्य शक्ति
By: Ankur Sat, 18 Aug 2018 1:44:34
भगवान शिव की महिमा तो सभी जानते हैं और इसलिए ही इस सावन के महीने में सभी भक्तगण भगवान शिव के मंदिरों के दर्शन करने जाते हैं। सभी व्यक्ति चाहते है कि भगवान के सबसे पहले दर्शन वो ही करें और भगवान शिव की पूजा अर्चना सबसे पहले करने का श्रेय उसे मिले। कई भक्तों की यह मुराद पूरी हो जाती हैं। लेकिन एक ऐसा मंदिर हैं जहां भक्तों की यह मुराद पूरी नहीं हो पाती हैं। क्योंकि यहाँ पर एक अदृश्य शक्ति है जो भगवान शिव का पूजन सबसे पहले करती हैं। हम बात कर रहे हैं किंतुर गांव के कुंतेश्वर मंदिर की। आइये जानते है इसके बारे में।
किंतुर गांव का कुंतेश्वर मंदिर अपनी अलग पहचान के लिए जाना जाता है। माना जाता है कि यहां के शिवलिंग पर अदृश्य शक्ति रात 12 बजे के आसपास सबसे पहले पूजा अर्चना कर जाती हैं। इससे किसी का आज तक यहां के शिवलिंग का सबसे पहले पूजा अर्चना करने की ख्वाहिश पूरी नहीं हुई। यह रहस्य इस मंदिर को अहम बना देता है। मान्यता है कि इस मंदिर पर आज भी माता कुंती हैं। यहां मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
इतिहासकार बताते हैं कि यहां दो तरह की मान्यता हैं। पहला, महाभारत काल में माता कुंती अपने पांडव पुत्रों के साथ 13 माह के अज्ञातवाश पर यहां आईं तो उन्होंने महाबली भीम से यहां पर शिवलिंग की स्थापना को कहा था। इस पर भीम पर्वतमालाओं से दो शिवलिंग लाए और यहां स्थापित कर दिया। वहीं दूसरा, शासक भारशिव की मां कनतसा ने शिवलिंग की स्थापना की थी। मंदिर के पुजारी शीतला प्रसाद दास ने बताया कि कहा जाता है कि एक समय माता कुंती और दुर्योधन की मां गांधारी पूजा करने इस स्थान पर पहुंची।
कथा के अनुसार यहां पर दोनों अपने पुत्रों के विजय की कामना करने लगीं। इसपर आकाशवाणी हुई कि कल सूर्योदय से जो पहले प्रथम शिवार्चन स्वर्ण पुष्पों से करेगा वह युद्ध में विजयी होगा। माता कुंती निराश हो गई क्योंकि अज्ञातवास के समय उनके पास कुछ नहीं था, भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हम तुम्हें ऐसा स्वर्ण पुष्प ला कर देंगे जो इस पृथ्वी पर अद्वितीय होगा। तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण इन्द्र की वाटिका को गए और वहां से स्वर्णमई आभा वाले पारिजात वृक्ष की एक डाल तोड़ लाएं और ग्राम बरोलिया में प्रत्यारोपित कर दिया। पारिजात के स्वर्ण पुष्पों से माता कुंती ने प्रथम शिव अर्चन किया और पांडवों को युद्ध में विजय मिली। तभी से कुंतेश्वर धाम और देव वृक्ष पारिजात दोनों अपने अस्तित्व को बनाए हुए हैं।