आखिर क्यों गिरी जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी सरकार, ये बाते हो सकती है वजह
By: Priyanka Maheshwari Tue, 19 June 2018 9:41:18
जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का 40 महीना पुराना गठबंधन टूट गया है। भाजपा ने महबूबा सरकार से मंगलवार को समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद महबूबा मुफ्ती ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया। जम्मू-कश्मीर के हालात को नजदीक से जानने वालों का मानना है कि यह तो होना ही था। बस यह नहीं पता था कि कब? पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा भी इसे बेमेल गठबंधन बताते हैं। लेकिन गठबंधन टूटा क्यों? यह सवाल उतनी ही पेचीदा है जितनी कि जम्मू-कश्मीर की चुनौतियां।
- 87 सीटों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भाजपा के पास 25 सीट और पीडीपी के पास 28 सीटें हैं। समर्थन वापसी के बाद महबूबा मुफ्ती ने अपना इस्तीफा राज्यपाल नरेंद्र नाथ वोहरा को सौंप दिया है। इस बीच, उपमुख्यमंत्री कवींद्र गुप्ता ने भी भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के मंत्रीमंडल में शामिल सभी मंत्रियों के इस्तीफों की पुष्टि करते हुए कहा कि अब हम गठबंधन से अलग हो चुके हैं। इसलिए मंत्रीमंडल और सरकार में बने रहने का कोई औचित्य नहीं हैं। हमने अपने इस्तीफे मुख्यमंत्री को सौंप दिए हैं।
- पीडीपी का राजनीतिक एजेंडा भाजपा से कहीं भी मेल नहीं खाता
भाजपा का जम्मू-कश्मीर में कश्मीर, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र को लेकर अलग नजरिया है। जम्मू में संघ कई दशक से काम कर रहा है। वहां हिंदुओं की अच्छी खासी आबादी है। जम्मू से लगे लद्दाख क्षेत्र की भी भाजपा हिमायती है और यह उसके राजनीतिक एजेंडे में है कि घाटी (कश्मीर) से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की राज्य में वापसी हो, उनका पुनर्वास हो। राज्य में हिंदू हितों की रक्षा हो। जम्मू-कश्मीर के लिए आवांटित विकास का पैसा संतुलित तरीके से कश्मीर, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में प्रयोग में लाया जाए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इन सभी के बीच में संतुलित समीकरण बिठाते हुए लोकतंत्र के साथ-साथ जम्हूरियत और कश्मीरियत की नीति को अपनाया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी की इस नीति से अपने राजनीतिक एजेंडे के हिसाब से भटकती रही है।
पीडीपी का राजनीतिक एजेंडा भाजपा से कहीं भी मेल नहीं खाता। पीडीपी कश्मीर घाटी में कश्मीर की आवाम के लिए और कश्मीरियत पर केंद्रित राजनीति करती है। जम्मू में इसका प्रभाव सीमित रहता है। लद्दाख और जम्मू क्षेत्र को लेकर इसका नजरिया अलग है। दोनों का राजनीतिक एजेंडा करीब-करीब सामानांतर है।
- पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या
श्रीनगर में दिन दहाड़े आतंकवादियों द्वारा पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या से भाजपा की दिक्कते बढ़ने लगी थी। यह एक ऐसा कारण बना, जिसकी आड़ में भाजपा को अलग होने का मौका मिला। पांच दिनों में भी हत्यारों तक पुलिस की पहुंच न होने से भाजपा ने मुख्यमंत्री पर सवाल भी खड़े किए हैं।
- ऑपरेशन ऑलआउट रोकने की मियाद बढ़ाना
रमजान के महीने में सुरक्षा बलों की तरफ से आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ऑल आउट रोकने को लेकर भी भाजपा व पीडीपी में विवाद था। केंद्र सरकार ने रमजान खत्म होते ही आपरेशन ऑल आउट शुरू कर दिया, जबकि पीडीपी इसे आगे बढ़ाने पर जोर दे रही थी। इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ रहीं थी।
- कठुआ मामला
कठुआ में बच्ची के साथ दुष्कर्म व हत्या के मामले में भाजपा व पीडीपी आमने-सामने आ गई थी। भाजपा नेताओं ने आरोपी के समर्थन में रैली भी निकाली। इस मामले में पीडीपी आरोपियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए थी।
- मेजर गगोई का मामला
सेना के मेजर गोगोई ने पत्थरबाजों के जवाब में स्थानीय नागरिक फारुख अहमद डार को जीप के बोनट पर बांध कर घुमाने के मामले में भी भाजपा व पीडीपी आमने सामने आ गई थी। सेना ने गगोई को इनाम दिया था और दूसरी तरफ राज्य सरकार ने गोगोई के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
- अलगाववादियों से चर्चा
महबूबा मुफ्ती की पूरी कोशिश थी कि शांति बहाली के लिए अलगाववादी संगठन हुर्रियत के साथ बातचीत की जाए। जबकि भाजपा का हुर्रियत को लेकर रुख एकदम कड़ा रहा है। दोनों के बीच विवाद निपटाने व समाधान के लिए केंद्र ने वार्ताकार के रूप में दिनेश्वर शर्मा को जम्मू कश्मीर में भेजा था।
- अनुच्छेद 370
गठबंधन के समय ही जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को लेकर दोनों दलों में मतभेद रहा। जहां यह भाजपा का कोर मुद्दा था, वहां पीडीपी इसके लिए कतई तैयार नहीं थी। ऐसे में यह ठंडे बस्ते में रहा, लेकिन भाजपा व संघ को इससे दिक्कतें हो रही थीं।