कार खरीदने का सपना रखते थे नेताजी, पूरा ना हो पाने की यह थी बड़ी वजह
By: Ankur Mon, 21 Jan 2019 3:32:10
हमारे देश को अंग्रेजों से आजादी पाने में बहुत लम्बा समय लगा और इसके लिए कई लोगों ने अपनी कुर्बानियां दिया हैं। इसी में एक थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जिन्होनें अपनी पूरी जिंदगी देश की आजादी के लिए कुर्बान कर दी थी। आप नेताजी के बारे में कई बातें जानते होंगे, लेकिन क्या आप जानते है कि नेताजी कार के शौक़ीन थे और वे खुद की कार खरीदना चाहते थे। लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया, जिसके पीछे बहुत बड़ी वजह थी। तो आइये जानते है इसकी पूरी कहानी।
नेताजी के पौत्र चंद्र कुमार बोस ने इस बात का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि नेताजी कारों के शौकीन थे। जहां तक मुझे पता है नेताजी ने कभी कोई कार नहीं खरीदी थी। वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी गतिविधियों में इतना व्यस्त रहते थे कि उनके पास इसके लिए समय ही नहीं था कि वे अपने लिए कार खरीद सकें।
उनके बड़े भाई शरत बोस जो कारें खरीदते थे, नेताजी उन्हीं में बैठकर आया-जाया करते थे। शरत बोस को भी कारों का शौक था और उनके पास विलिज नाइट व फोर्ड समेत छह-सात कारें थीं। ऑडी वांडरर डब्ल्यू-24 उन्हीं में से एक थी, जिसमें बैठकर नेताजी एल्गिन रोड स्थित अपने घर में नजरबंदी के दौरान अंग्रेजों को चकमा देकर निकले थे। इस घटना को इतिहास में 'द ग्रेट एस्केप' के नाम से जाना जाता है। नेताजी के भतीजे डॉ। शिशिर बोस उस कार को चलाकर गोमो ले गए थे।
नेताजी पर शोध करने वालों का कहना है कि यूं तो नेताजी भवन में कई कारें रखी हुई थीं, लेकिन वांडरर कार छोटी और सस्ती थी और इस कार का आमतौर पर मध्यम आय वर्ग के लोग ही ग्रामीण इलाकों में इस्तेमाल किया करते थे। नेताजी भवन में रखी वांडरर कार का ज्यादा इस्तेमाल नही होता था, इसलिए जल्दी किसी का ध्यान इस पर नहीं जाता था।
विलक्षण बुद्धि के मालिक नेताजी भली-भांति जानते थे कि किसी और कार का इस्तेमाल करने पर वे आसानी से उनपर नजर रख रही ब्रिटिश पुलिस की नजर में आ सकते हैं, इसी कारण अंग्रेजों की आंखों में धूल झोंकने के लिए उन्होंने इस कार को चुना था। 18 जनवरी, 1941 को इस कार से नेताजी शिशिर के साथ गोमो रेलवे स्टेशन (तब बिहार में, अब झारखंड में) पहुंचे थे और वहां से कालका मेल पकड़कर दिल्ली गए थे।