शहीद दिवस : 88 साल पहले आज ही के दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने फांसी के फंदे को चूमा था
By: Pinki Sat, 23 Mar 2019 09:50:58
आज यानी 23 मार्च को ही 88 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर देने वाले भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज देश भर में इन शहीदों को याद किया जा रहा है। देश के प्रधानमंत्री समेत कई बड़े नेताओं ने आज भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को याद कर उन्हें नमन किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी भारत के इन वीरों को याद किया। उन्होंने लिखा, 'आजादी के अमर सेनानी वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद दिवस पर शत-शत नमन। भारत माता के इन पराक्रमी सपूतों के त्याग, संघर्ष और आदर्श की कहानी इस देश को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। जय हिंद!'
आजादी के अमर सेनानी वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद दिवस पर शत-शत नमन। भारत माता के इन पराक्रमी सपूतों के त्याग, संघर्ष और आदर्श की कहानी इस देश को हमेशा प्रेरित करती रहेगी। जय हिंद! pic.twitter.com/IpdJqjhR9q
— Chowkidar Narendra Modi (@narendramodi) March 23, 2019
23 मार्च 1931 को लाहौर (पाकिस्तान) में भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु को फांसी दी गई थी। भगत सिंह को जब फांसी दी गई, उस समय उनकी उम्र मात्र 23 साल की थी। उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों और कदमों से अंग्रेजी हकूमत की जड़े हिला दी थीं। असेंबली में बम फेंककर उन्होंने अंग्रेजी हकूमत में खौफ पैदा कर दिया था।
भगत सिंह कहते थे, 'बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती, क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।' वे कहते थे, 'प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं और देशभक्तों को अक्सर लोग पागल कहते हैं।' उनका कहना था, 'व्यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं।'
अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ पंजाब केसरी लाला लाजपत राय शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। तभी पुलिस अधीक्षक स्कॉट और उसके साथियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई। इसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और अंतत: 17 नवंबर को उनका देहांत हो गया। लाला लाजपत राय के देहांत के बाद आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में ‘सांडर्स-वध’ किया और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी।
शहीद भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे। वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया। सेंट्रल असेम्बली पर बम फेंके जाने की घटना के बाद अंग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता सेनानियों की धर पकड़ शुरू कर दी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी हुई। दोनों पर सेंट्रल असेम्बली में बम फेकने को लेकर केस चला। सुखदेव और राजगुरू को भी गिरफ्तार किया गया। 7 अक्टूबर 1930 को फैसला सुनाया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया जाए जबकि बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा हुई। भगत सिंह ने जेल में करीब 2 साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा।