ऐतिहासिक फ़ैसला - समलैंगिकता अपराध नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर
By: Priyanka Maheshwari Thu, 06 Sept 2018 12:31:20
समलैंगिकता को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 377 की वैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि सभी जजों की सहमति से फैसला लिया गया है। कोर्ट ने कहा कि LGBTQ समुदाय को भी समान अधिकार है और पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने IPC की धारा 377 को मनमाना और अतार्किक बताते हुए निरस्त किया है। संविधान पीठ ने कहा कि सभी जजों की एक राय है। उन्होंने कहा कि समाज का व्यक्तियों से अलग नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि समलैंगिकता संबंध अपराध नहीं है। अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, कोई भी अपने व्यक्तित्व से बच नहीं सकता है। समाज में हर किसी को जीने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 377 अतार्किक और मनमानी धारा है और समुदाय को भी समान अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद करण जौहर ने ट्वीट किया है और कहा है कि ऐतिहासिक फ़ैसला!!! आज फक्र हो रहा है! समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करना और धारा 377 को ख़त्म करना इंसानियत और बराबरी के हक़ की बड़ी जीत है। देश को उसका ऑक्सीजन वापस मिला है!
कोर्ट ने यह भी कहा कि पुरानी सोच को बदलने की जरूरत है। से चीजें नहीं चल सकती, हमें पुरानी धारणाओं को बदलना होगा। तय करेगी कि दो बालिगों के एकांत में सहमति से बनाए गए संबंध अपराध की श्रेणी में आएंगे कि नहीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि एलजीबीटी समुदाय को हर वो अधिकार प्राप्त है जो देश के किसी आम नागरिक को मिले हैं। हमें एक दूसरे के अधिकारों का आदर करना चाहिए।
कोर्ट का फैसला आते ही एलजीबीटी समुदाय में खुशी लहर दौर गई है। चेन्नई, मुंबई और देश के कोने- कोने से एलजीबीटी समुदाय में खुशी की लहर दौर गई है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए होमोसेक्सुएलिटी यानि समलैंगिकता को क्रिमिनल एक्ट बता चुका था जिसको दोबारा चुनौती देते हुए क्युरिटिव पिटिशन दाखिल की गई थी। बता दें कि कई वर्षों से समुदाय इसे अपराध की श्रेणी में रखे जाने का विरोध करता आ रहा था। जिसपर आज सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए मुहर लगा दी है कि समलैंगिकता अपराध नहीं है।
दरअसल सहमति से दो वयस्कों के बीच शारीरिक संबंधों को फिर से अपराध की श्रेणी में शामिल करने के शीर्ष अदालत के फैसले को कई याचिकाएं दाखिल करके चुनौती दी गई है। जिसे देखते हुए नए सिरे से पुनर्गठित पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चार महत्वपूर्ण विषयों पर सुनवाई शुरू की थी, जिनमें समलैंगिकों के बीच शारीरिक संबंधों का मुद्दा भी है। इस संविधान पीठ में प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के साथ न्यायमूर्ति आर एफ नरिमन, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा शामिल हैं।