सुधर नहीं सकता पाकिस्तान, पीठ पर वार करने से
By: Priyanka Maheshwari Sat, 22 Sept 2018 7:20:33
गत माह पाकिस्तान में हुए आम चुनावों में पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने जीत हासिल करते हुए प्रधानमंत्री का पद संभाला। उम्मीद की जा रही थी कि अब भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैये में सुधार होगा लेकिन हुआ इसका उल्टा ही है। पिछले दस दिनों में पाकिस्तान ने जो शर्मनाक हरकतें की हैं उससे यह स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान कभी सुधर नहीं सकता है। जैसे ही कोई पाकिस्तानी नेता भारत के साथ रिश्तों में सुधार की बात करता है, वैसे ही दूसरी ओर से उसके पाले हुए अलगाववादी अपनी हरकतें शुरू कर देते हैं।
भारत पाकिस्तान के बीच तभी से कड़वाहट है जब से विभाजन हुआ है। विभाजन के समय से शुरू हुआ यह अलगाववाद 1965 में युद्ध के रूप में परिणित हुआ। 53 साल पहले 5 सप्ताह तक भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध चला था। संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता पर दोनों देश युद्धविराम पर सहमत हुए और उसके बाद ताशकंद समझौता हुआ। 22 सितम्बर 1965 को थमे इस युद्ध को भारत-पाकिस्तान की दूसरी जंग के नाम से ख्यात रहा है। यह संघर्ष पाकिस्तान के ऑपरेशन जिब्राल्टर के तुरंत बाद शुरू हुआ था।
तीन दिन पूर्व ही पाकिस्तानी सैनिकों ने बीएसएफ जवान नरेन्द्र सिंह को 9 घंटे तड़पा-तड़पाकर मार दिया। नरेन्द्र सिंह की एक टांग काट दी गई, आँख निकाल दी गई, करंट से उन्हें झुलसाया गया। इसके बाद उनके शरीर पर तीन गोलियाँ दागी गई। इंटरनेशनल बॉर्डर पर पहली बार ऐसी घटना हुई, हालांकि एलओसी पर पहले भी पाक फौज आतंकियों की टीम ऐसा कर चुकी है। भारत ऐसी घटनाओं का कोई सख्त जवाब नहीं दे पाया है। भारतीय नेता सिर्फ बयानबाजी करते हैं, कठोर कदम उठाने से हिचकते हैं। हद तो यह हो गई कि बीएसएफ ने चुपके से इस शहीद का पोस्टमार्टम करवाकर जवान के शव को उसके घर भिजवाया। सरकार और बीएसएफ की यह हरकत आम जनता की नजरों में नागवार गुजरी है। आम जन सरकार के प्रति आक्रोश में हैं। विशेषकर पाकिस्तान के प्रति उसके रवैय्ये को लेकर। उस पर केन्द्रीय मंत्री का बयान—यह नया नहीं है, पाकिस्तान पहले भी ऐसा करता रहा है। पाक के लिए बर्बरता नई बात नहीं है। पाकिस्तान सीधी जंग में भारत को हरा नहीं सका। जवानों को मारकर हमें कमजोर करने के प्रयास उसकी नीति है।
अभी भारतीय अवाम के जेहन से शहीद हुए जवान नरेन्द्र का चेहरा हटा भी नहीं था कि जम्मू में पाक समर्थित आतंकियों ने एक और ऐसी शर्मनाक हरकत की जिसे कारण भारत ने पाकिस्तान के साथ होने वाली प्रस्तावित वार्ता को रद्द कर दिया। पिछले तीस सालों में ऐसा पहली बार हुआ जब पुलिसकर्मियों को उनके घरों से अगवा कर उनकी नृशंस हत्या कर दी गई। वार्ता की पेशकश के बीच बेशर्मी से आतंकवाद को पनाह दे रहे पाक ने उलटे भारत पर बातचीत न करने का आरोप लगाया। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि वार्ता से इतर भारत की कुछ और प्राथमिकताएँ हैं। दिल्ली में एक ऐसा गुट है जो चाहता नहीं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कोई बातचीत हो।
फिर भी पाकिस्तान के साथ ‘क्रिकेट’ खेलते हैं हम
कितने आश्चर्य की बात है कि तमाम प्रकार के तनावों के बाद भी भारत-पाकिस्तान खेल के मैदान में सद्भाव के साथ आमने-सामने होते रहे हैं। विशेष रूप से क्रिकेट के मैदान में। हाल ही में यूएई में भारत ने पाकिस्तान को शिकस्त दी है। दुबई में यह भारत-पाकिस्तान का पहला मुकाबला रहा है। वैसे भारत पाकिस्तान से क्रिकेट के मैदान में हारता रहा है। जब से दोनों के मध्य क्रिकेट शुरू हुआ है। भारत पाकिस्तान के बीच अब तक 129 मुकाबले हो चुके हैं जिनमें से भारत को सिर्फ 52 मुकाबलों में जीत हासिल हुई है, जबकि 73 में पाकिस्तान को जीत मिली। 4 मुकाबले बेनतीजा रहे। यूएई में भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 26 मैच हुए हैं। इनमें भारत को सिर्फ 7 मैचों में विजय हासिल हुई और पाक को 26 में। पिछले पांच साल में भारत-पाक के बीच यह 5वाँ मुकाबला हुआ है। जिसमें भारत को 3 और पाक को 2 मैचों में जीत मिली है।
उम्मीद की नई किरण
इस बार यूएई में भारत-पाकिस्तान के मध्य जो मैच हुआ उसमें एक नई बात देखने को मिली। जब भारत का राष्ट्र गान बजाया जा रहा था तब कुछ पाकिस्तानी समर्थकों ने स्वर से स्वर मिलाकर उसे गाया। इस गीत का वीडियो भारत से ज्यादा पाकिस्तान में देखा जा रहा है। यह वीडियो इस बात का संकेत देता है कि पाकिस्तानी अवाम भारत के साथ शांति के साथ रहना चाहता है। वर्तमान पाकिस्तानी अवाम की जड़ें भारत में हैं। वह अपनी जड़ों को देखना चाहता है।
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद उम्मीद थी कि भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में कड़वाहट कुछ कम होगी लेकिन जो कुछ पाकिस्तान ने किया है उससे यह उम्मीद पूरी तरह टूट गई है। पाकिस्तान की इन बेजा हरकतों को सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त है, इसका सबूत पाकिस्तान के विदेश मंत्री का वो बयान है जिसमें उन्होंने भारत के ऊपर आरोप लगाया है कि वह पाकिस्तान से किसी प्रकार की बातचीत करना ही नहीं चाहता है।
राजनीति, खेल के बाद ‘सिनेमा’ पर भी ऐतराज
पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों को सरलता से प्रदर्शित नहीं होने दिया जाता है। पाक दर्शक भारतीय फिल्मों का दीवाना है। वहाँ पर उन्हीं भारतीय फिल्मों का प्रदर्शन हो पाता है, जिन्हें पाक सरकार द्वारा मंजूरी मिल जाती है। कहने को तो पाकिस्तान में सेंसर बोर्ड है, लेकिन भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन की झंडी पाकिस्तान सरकार के नुमाइंदों द्वारा मिलती है। पाक सरकार के ग्रीन सिग्नल के बाद फिल्म को प्रदर्शित किया जाता है। इस वर्ष पाकिस्तान में भारतीय फिल्म ‘पैडमैन’ और ‘परी’ का प्रदर्शन नहीं होने दिया गया। कहा गया यह हमारे धर्म के खिलाफ है। सिर्फ ‘सिनेमाई’ मोर्चा ऐसा है जहाँ भारत पाकिस्तान पर हावी रहता है। जहाँ पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों की जबरदस्त काला बाजारी होती है, वहीं भारत में कहीं भी कोई पाकिस्तानी फिल्म प्रदर्शित नहीं होती है। चार-पांच साल पहले जरूर दो-तीन पाकिस्तानी फिल्मों का प्रदर्शन भारत में हुआ था।
सीमा पर पाकिस्तान द्वारा की जा रही बेजा हरकतों से यह तो स्पष्ट हो गया है कि पाकिस्तान भारत की पीठ पर वार करने से कभी बाज नहीं आएगा। वह भारत को अस्थिर करने के लिए कोई न कोई ऐसी हरकत करता ही रहेगा जिससे भारत में अशांति फैले और घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिले। हालांकि हम भारतीय बहुत सहनशील हैं, जो पाकिस्तान की इन हरकतों को बर्दाश्त करते आ रहे हैं। लेकिन एक वक्त आएगा जब हमारा सब्र जवाब दे जाएगा और उस दिन पाकिस्तान का नामो-निशान मिट जाएगा।
राजेश कुमार भगताणी