काफी अनूठी रही है नेताजी की प्रेम कहानी, लगती है किसी हिंदी फिल्म की पटकथा

By: Ankur Mundra Mon, 21 Jan 2019 3:32:32

काफी अनूठी रही है नेताजी की प्रेम कहानी, लगती है किसी हिंदी फिल्म की पटकथा

देश को आजादी दिलाने के लिए एक योद्धा के रूप में लड़ने वाले नेताजी को सभी महानायक के तौर पर देखते थे। अपनी सूझबूझ और अच्छी सोच के चलते वे यूरोप में रह रहे भारतीय छात्रों को आजादी की लड़ाई के लिए तैयार करने लगे थे। आपको जानकार हैरानी होगी कि नेताजी की भी एक प्रेम कहानी थी जो कि बेहद ही रोचक थी। आज उनके जन्मदिन के ख़ास मौके पर हम आपको उनकी इस प्रेम कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते है नेताजी की अनूठी प्रेम कहानी के बारे में।

सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस की तबीयत फरवरी, 1932 में ख़राब होने लगी थी। इसके बाद ब्रिटिश सरकार उनको इलाज के लिए यूरोप भेजने पर मान गई थी, हालांकि इलाज का खर्च उनके परिवार को ही उठाना था। विएना में इलाज कराने के साथ ही उन्होंने तय किया कि वे यूरोप रह रहे भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे। इसी दौरान उन्हें एक यूरोपीय प्रकाशक ने 'द इंडियन स्ट्रगल' किताब लिखने का काम सौंपा, जिसके बाद उन्हें एक सहयोगी की ज़रूरत महसूस हुई, जिसे अंग्रेजी के साथ साथ टाइपिंग भी आती हो।

बोस के दोस्त डॉ। माथुर ने उन्हें दो लोगों का रिफ़रेंस दिया। बोस ने दोनों के बारे में मिली जानकारी के आधार पर बेहतर उम्मीदवार को बुलाया, लेकिन इंटरव्यू के दौरान वे उससे संतुष्ट नहीं हुए। तब दूसरे उम्मीदवार को बुलाया गया। ये दूसरी उम्मीदवार थीं, 23 साल की एमिली शेंकल। बोस ने इस ख़ूबसूरत ऑस्ट्रियाई युवती को जॉब दे दी। एमिली ने जून, 1934 से सुभाष चंद्र बोस के साथ काम करना शुरू कर दिया।

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सुगत बोस ने अपनी पुस्तक में एमिली के हवाले से लिखा है, "प्यार की पहल सुभाष चंद्र बोस की ओर से हुई थी और धीरे धीरे हमारे रिश्ते रोमांटिक होते गए। 1934 के मध्य से लेकर मार्च 1936 के बीच ऑस्ट्रिया और चेकेस्लोवाकिया में रहने के दौरान हमारे रिश्ते मधुर होते गए।" 26 जनवरी, 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली के पिता को ये पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय के यहां काम करे लेकिन जब वे लोग सुभाष चंद्र बोस से मिले तो उनके व्यक्तित्व के कायल हुए बिना नहीं रहे।

इन पत्रों में ज़ाहिर अकुलाहट के चलते ही जब दोनों अगली बार मिले तो सुभाष और एमिली ने आपस में शादी कर ली। ये शादी कहां हुई, इस बारे में एमिली ने कृष्णा बोस को बताया कि 26 दिसंबर, 1937 को, उनकी 27वीं जन्मदिन पर ये शादी आस्ट्रिया के बादगास्तीन में हुई थी, जो उन दोनों का पसंदीदा रिजार्ट हुआ करता था।

हालांकि दोनों ने अपनी शादी को गोपनीय रखने का फ़ैसला किया। कृष्णा बोस के मुताबिक एमिली ने शादी का दिन बताने के अलावा कोई दूसरी जानकारी नहीं शेयर की। हां, अनीता बोस ने उन्हें ये ज़रूर बताया कि उनकी मां ने ये बताया था कि शादी के मौके पर उन्होंने आम भारतीय दुल्हन की तरह माथे पर सिंदूर लगाया था।

ये शादी इतनी गोपनीय थी कि उनके बादगास्तीन रहने के दौरान ही उनके भतीजे अमिय बोस भी उनसे मिलने पहुंचे थे, लेकिन उन्हें एमिली महज अपने चाचा की सहायक भर लगी थीं। इस शादी को गोपनीय रखने की संभावित वजहों के बारे में रुद्रांशु मुखर्जी ने लिखा है कि बहुत संभव रहा होगा कि सुभाष इसका असर अपने राजनीतिक करियर पर नहीं पड़ने देना चाहते होंगे। किसी विदेशी महिला से शादी की बात आने पर उनकी छवि पर असर पड़ सकता था।

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