Eid-E-Milad-Un-Nabi 2018: अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्म की खुशी में मनाई जाती है ईद-ए-मिलाद, कुछ खास बातें

By: Priyanka Maheshwari Wed, 21 Nov 2018 09:34:27

Eid-E-Milad-Un-Nabi 2018: अल्लाह के पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्म की खुशी में मनाई जाती है ईद-ए-मिलाद, कुछ खास बातें

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी 2018 (Eid-Milad-Un-Nabi-Eid) या ईद-ए-मिलाद (Eid-Ul-Milad) 21 नवंबर को है। मान्‍यता है कि इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद (Prophet Hazrat Muhammad) का जन्म हुआ था। उन्‍हें इस्लाम धर्म का संस्थापक माना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार इस्‍लाम के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख, 571 ईं. के दिन ही मोहम्मद साहेब जन्मे थे। इस दिन मजलिसें लगाई जाती हैं। पैगंबर मोहम्मद द्वारा दिए गए पवित्र संदेशों को पढ़ा जाता है। उन्हें याद कर शायरी और कविताएं पढ़ी जाती हैं। मस्जिदों में नमाज़ें अदा की जाती हैं। यहां जानिए ईद-ए-मिलाद-उन-नबी और पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में और खास बातें।

क्यों मनाते हैं ईद-ए-मिलाद-उन-नबी?

मुसलमान पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्म की खुशी में ईद-ए-मिलाद-उन-नबी मनाते हैं। इस दिन रात भर प्रार्थनाएं चलती हैं। जुलूस निकाले जाते हैं। सुन्नी मुसलमान इस दिन हजरत मोहम्मद के पवित्र वचनों पढ़ते हैं और याद करते हैं। वहीं, शिया मुसलमान मोहम्मद को अपना उत्तराधिकारी मानते हैं। हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाया जाता है।

कैसे मनाते हैं ईद-ए-मिलाद-उन-नबी?


पैगंबर हजरत मोहम्मद के जन्मदिवस के अवसर पर घरों और मस्ज़िदों को सजाया जाता है। नमाज़ों और संदेशों को पढ़ने के साथ-साथ गरीबों को दान दिया जाता है। उन्हें खाना खिलाया जाता है। जो लोग मस्जिद नहीं जा पाते वो घर में कुरान को पढ़ते हैं। मान्यता है कि ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के दिन कुरान का पाठ करने से अल्लाह का रहम बरसता है।

कौन थे पैगंबर हजरत मोहम्मद?

पैगंबर मोहम्मद का पूरा नाम मोहम्मद इब्न अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब था। वह इस्लाम के सबसे महान नबी और आखिरी पैगंबर थे। उनका जन्म मक्का शहर में हुआ। इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी अमिना था। उनके पिता का देहांत उनके जन्म से पूर्व ही हो गया था। इसलिए उनकी देखरेख उनकी मां ने की। इसके बाद उनकी मां का भी जल्दी देहांत हो जाने के कारण उनके दादा ने उनको पाला पोसा। दादा भी उनकी कम आयु में इस दुनिया से चले गये और उनके चाचा अबु तालिब ने उन्हें अपने संरक्षण में ले लिया। बचपन से ही हजरत मोहम्मद एक निहायत शरीफ, संयम से काम लेने वाले और बुरी बातों से दूर रहने वाले बच्चों में जाने गये। बड़े होकर भी पूरे मक्के के समाज में उनको सादिक और अमीन के नाम से जाना और पहचाना गया। जब वो 25 साल के थे, तो मक्के की बड़ी व्यवसायी और उनसे उम्र में 15 साल बड़ी हजरत ख़दीजा ने विवाह का प्रस्ताव दिया, जो उन्होंने कुबूल कर लिया और इस तरह वो दोनों पति—पत्नी के रिश्ते में बंध गये। उनके बच्चे हुए, लेकिन लड़कों की मृत्यु हो गई। उनकी एक बेटी का अली हुसैन से निकाह हुआ। उनकी मृत्यु 632 ई. में हुई। उन्हें मदीना में ही दफनाया गया। कहा जाता है कि 610 ईं. में मक्का के पास हीरा नाम की गुफा में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। बाद में उन्होंने इस्लाम धर्म की पवित्र किताब कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया।

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